क्या शिक्षा वास्तव में इंसान को समझदार और आत्मनिर्भर बनाती है ?
कहते हैं लोग कि शिक्षा इंसान को समझदार और आत्मनिर्भर बनाती है। लेकिन फिर शिक्षित लोग समझदार और आत्मनिर्भर क्यों नहीं बन पाये ?
अब आप कहेंगे कि फलाने ने महंगे स्कूलों से पढ़ाई की, महंगी-महंगी डिग्रियाँ बटोरीं और आज वे करोड़ों का पैकेज लेकर मल्टीनेशनल कंपनी में चाकरी कर रहे हैं। जबकि हम गरीब थे, इसलिए सरकारी स्कूल में पढ़े, या पढ़ ही नहीं पाये।
आप कहेंगे कि फलाने-फलाने लोग पढ़ाई में बहुत तेज थे और आज आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर और इंजीनियर बन गए। लेकिन हमारे दिमाग में तो भूसा भरा था, कुछ समझ में नही आता था, इसलिए मजदूरी कर रहे हैं और बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुगाड़ कर पा रहे हैं।
लेकिन जो आपके आदर्श और आपकी नजर में सम्मानित हैं, क्या वे स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हैं ?
नहीं वे स्वतंत्र नहीं हैं और ना ही आत्मनिर्भर हैं। वे सभी शूद्र (Slave, Servant) अर्थात ग़ुलाम, सेवक हैं अपने-अपने मालिकों के।
और गुलाम होना क्या होता है वह आप पुलिस, सीबीआई, ईडी, सेना आदि को देखकर समझ सकते हैं। किसी नेता के ऊपर दुनिया भर के आरोप लगे हों, और दुनिया भर के केस चल रहे हों, दुनिया भर की शिकायतें दर्ज हो रही हों भ्रष्टाचार, शोषण और अत्याचार के। इन्हें वे दिखाई नहीं देंगे, क्योंकि वे सत्तापक्ष में हैं या सत्तापक्ष के सहयोगी हैं। और सत्तापक्ष में बैठा व्यक्ति इनका मालिक होता है। वहीं यदि विपक्ष या आम नागरिक इन्हीं सब आरोपों से घिरा हो, तो इन्हें बिलकुल भी देर नहीं लगती उनके घर पहुँचने में।
क्यों ?
क्योंकि शूद्र को नैतिक, अनैतिक, धर्म, अधर्म से कोई लेना-देना नहीं होता, वे तो केवल आदेशों के ग़ुलाम होते हैं, आदेशों का पालन करना ही उनका धर्म और कर्तव्य है।
तो जिन्हें आप सम्मानित समझ रहे हैं, वह केवल इसलिए क्योंकि वह सम्मान थोपा गया है स्वाभाविक नहीं है। भले वे अन्याय, अत्याचार, शोषण करने वालों के साथ खड़े हों, उनका सम्मान करना ही होगा अन्यथा मूर्खों की भीड़ आपको देशद्रोही मानकर आपके विरुद्ध खड़ी हो जाएगी।
क्या शूद्र (दास, सेवक, नौकर) होना अपमानजनक है ?
बिलकुल भी नहीं। शूद्र होना ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य होने से कहीं अधिक सम्माननीय है। आज ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो या वैश्य हो, सभी का सपना होता है कि उनकी संतान शूद्र ही बने।
बहुत से परिवार तो अपने खेत, जमीन बेचकर, दुनियाभर का कर्जा लेकर अपने संतानों को केवल इसलिए पढ़ाते हैं, ताकि वे उच्चकोटी के शूद्र बनकर माफियाओं, सरकारों और देश को लूटने और लुटवाने वाले गिरोहों की सेवा कर सकें देशसेवा और समाज के नाम पर।
क्या कभी सोचा है कि पूरी दुनिया में शूद्रों का सम्मान किसी विचारक, चिंतक, दार्शनिक अर्थात ब्राह्मण से अधिक क्यों होने लगा ?