माफियाओं के विरुद्ध नहीं हैं राजनैतिक पार्टियाँ और सरकारें
इतिहास उठाकर देख लीजिये कि सत्ता, धर्म और जातियों के लिए लड़ने वाले बड़े बड़े-बड़े संगठन, संस्थाएं और पार्टियों ने केवल सत्ता के लिए आंदोलन किए हैं, प्राणों की आहुतियाँ दी हैं। और जब सत्ता मिल जाती है, तो जिन समस्याओं के लिए आंदोलन किए गए थे, वही भूल जाते हैं।
यही कारण है कि संगठन, संस्थाएं और पार्टियां बनाकर कोई महान कार्य नहीं कर सकते। महान कार्य करना हो, तो अकेले ही संघर्ष करना पड़ता है, दशरथ मांझी की तरह। सौभाग्य शाली होते हैं वे, जिन्हें कुछ सहयोगी भी मिल जाते हैं।
ऐसी ही एक महान योद्धा हैं ब्राज़ील की मुंदुरुकु कबीले की मुखिया 39 वर्षीया अलेक्सान्द्रा कोरप मुंदुरुकु (Alessandra Korap Munduruku), जिसने खनन माफियाओं के विरुद्ध अभियान छेड़ा और विजयी हुईं।
भारत में भी विभिन्न राज्यों में खनन माफिया सक्रिय हैं और उनके विरुद्ध स्थानीय जागरूक लोग आवाज उठाते हैं। लेकिन वे लोग गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं। जबकि मुख्यमंत्री स्तर के नेताओं के रिश्तेदार और यार दोस्त होते हैं खनन माफिया, इसलिए कोई कार्यवाही हो नहीं पाती।
आश्चर्य होगा जानकर आपको कि भारत की ही नहीं, दुनिया की कोई भी राजनैतिक पार्टी और सरकारें ऐसी नहीं है, जो माफियाओं के विरुद्ध हो। क्योंकि माफियाओं की कृपा और दया पर ही इनकी पार्टियाँ और सरकारें जीवित हैं। माफियाओं की दया और कृपा से ही राजनैतिक पार्टियों और सरकारों के बीवी बच्चे पल रहे हैं, विदेशों में पढ़ रहे हैं या विदेशों में सेटल होकर ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जी रहे हैं। लेकिन ये लोग ढोंग ऐसा करते हैं, मानो देश की सेवा और जनता की सुरक्षा के लिए ही इस दुनिया में आया हैं।
आदिवासी लड़ रहे हैं माफियाओं से अपने जंगल बचाने के लिए, अपनी मौलिकता में जीने के अधिकार के लिए। हिमांशु कुमार और सोनी सोरी ऐसे ही आदिवासी नेता हैं जो माफियाओं के विरुद्ध निरंतर लड़ रहे हैं अपना सर्वस्व दाँव पर लगाकर।
लेकिन बड़े बड़े राजनैतिक, जातिवादी और धार्मिक संगठन माफियाओं के विरुद्ध कभी मुँह नहीं खोलते, भले माफिया पूरा देश लूट लें, जनता को निचोड़ लें, आदिवासियों से जंगल में जीने का मौलिक अधिकार छीन लें।