धार्मिक व आध्यात्मिक गुरुओं और अवतारों ने समाज को भ्रमित किया

कहते हैं जवानी श्रम करके धन कमाने के लिए होती है। और बुढ़ापा होता है ऐश्वर्य भोगने के लिए।
लेकिन क्या यह सिद्धान्त या फिलोसोफी न्यायोचित है ?
जब भोगने की आयु होती है, तब माफियाओं की तिजोरी अर्थात स्विसबैंक में धन, स्वर्ण जमा करने के लिए दिन रात कोल्हू के बैल की तरह काम करते हैं, मजदूरी करते हैं। उसके बाद जब आयु ढल जाती है, शरीर जर्जर हो जाता है, तब भोगने निकलते हैं ऐश्वर्य।
क्या जर्जर शरीर से ऐश्वर्य भोगा जा सकता है ?
सत्य तो यह है कि जिस दुनिया में 15 वर्ष पुराने वाहन कबाड़ में फेंक देने की प्रथा हो, उस दुनिया में 60 वर्ष पुराने शरीर से कौन सा ऐश्वर्य भोगने निकलोगे ?
जिस आयु में आने के बाद डॉक्टर्स, अस्पताल और दवाओं की बैसाखी में जीने लगता है मानव है, उस आयु में कौन सा ऐश्वर्य भोगने निकलोगे ?
सेक्स करने लायक रह नहीं जाओगे और करोगे भी तो वियाग्रा के भरोसे। फिर भोजन में दुनिया-भर के परहेज। कैसे भोगेगे ऐश्वर्य को ?
फिर कहते फिरना कि यह आयु तो सबकुछ त्याग कर भजन, कीर्तन करने का है, प्रभु में मन लगाने का, ताकि स्वर्ग मिले, जन्नत मिले।
और स्वर्ग और जन्नत में क्या मिलेगा ?
वही जो जवानी में भोगना चाहते थे, अर्थात हूरें, अप्सराएँ, छप्पनभोग, शराब, कवाब….. यही सब तो मिलता है न स्वर्ग और जन्नत में ?
क्या कभी सोचा है आपने कि आपके धार्मिक, आध्यात्मिक गुरुओं और अवतारों ने आपको ऐसी उल्टी पट्टी क्यों पढ़ाई कि युवावस्था श्रम करके धन कमाने के लिए होता है और वृद्धावस्था ऐश्वर्य भोगने के लिए ?
क्यों बनाते हैं लोग ऐसे गुरु जो माफियाओं का गुलाम बनाते हैं ?
गुरु-भक्ति की भेड़चाल ने ऐसे-ऐसे गुरुओं को जन्म दिया, जो जनता को जागृत करने, माफियाओं और लुटेरों के विरुद्ध संगठित होने की प्रेरणा देने की बजाय, मूर्ख बनाकर ठगते और लूटते चले आ रहे हैं।
जिन गुरुओं की शिक्षाओं से प्रेरणा लेकर समाज को माफियाओं और लुटेरों से मुक्त बनाना चाहिए था, उन गुरुओं की पूजा, स्तुति-वंदन करके स्वयं को धन्य मानने लगे। आज समाज के लिए गुरु का अर्थ मार्ग-दर्शक या शिक्षक ना होकर मनोकामनाएँ पूरी करने वाला चमत्कारी बाबा हो गया।
अक्सर लोगों को कहते सुनता हूँ कि फलाने बाबा को गुरु बनाया तो मेरी लाटरी लग गयी, मेरी नौकरी लग गयी, मेरे बच्चे विदेशों में सेटल हो गए, मेरी बीमारी दूर हो गयी, मेरे बिगड़े काम बनने लगे…… आदि इत्यादि। चमत्कार के नाम पर ठग और जालसाज लोग गुरु बनकर बैठ गए, लाखों की संख्या में अब शिष्य बनाए जा रहे हैं पाखंडी गुरुओं के द्वारा।
और यदि मनोकामनाए पूरी करने वाले बाबाओं को ही पूजना है, तो फिर ईश्वर को पूजने का ढोंग क्यों ?
और मनोकामनाएँ हैं क्या आपकी सिवाय भौतिक शारीरिक सुख भोगने के ?
आप ईश्वर या गुरु को पूजकर कामना क्या करते हैं ?
यदि आप ऐश्वर्य की कामना नहीं भी करते, तो भी स्वर्ग और जन्नत की कामना तो करते हैं ना ?
और स्वर्ग और जन्नत है क्या सिवाए आपकी अतृप्त वासनाओं को पूरी करने वाला कपनिक लोक ?
तो गुरु लोग आपको ऐसे लोक की कथाएँ सुनाते हैं, जो इन्होंने स्वयं नहीं देखा केवल सुना है या आसमानी, हवाई, ईश्वरीय किताबों में पढ़ा है। कल्पना लोक की कथाएँ सुनाकर आपको समझाते हैं कि माफियाओं और अपने शोषकों का विरोध मत करो, केवल ईश्वर पर ध्यान लगाओ। और यही सब सुनाने समझाने के एवज में आपसे धन ऐंठ लेते हैं, गुरुदक्षिणा और पूजा-पाठ के नाम पर।
चलिये आपने इन गुरुओं के कहने पर अपनी जवानी बर्बाद कर दी कारपोरेट मजदूर या कोल्हू का बैल बनकर। आपकी मेहनत के कारण स्विसबैंक और अमेरिकी बैंकों की तिजोरियाँ भर गयीं। पारिश्रमिक के रूप में आपको बहुत धन भी मिल गया रिटायर होने पर। अब आप शादी करने निकले, या कोई गर्लफ्रेंड बना लें, तब क्या वे लोग आपको सहजता से स्वीकार पाएंगे, जो अभी जवानी में है लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण कोई गर्ल फ्रेंड भी नहीं पटा पाये ?
क्या वे लोग स्वीकार पाएंगे वृद्धावस्था में आप रोमांस करते फिरें, दुनिया भर की सैर करते फिरें, जिनका दाम्पत्य जीवन कलहपूर्ण है, जिनके सेक्सुअल लाइफ बर्बाद हुई पड़ी है और ढो रहे हैं एक दूसरे को किसी न किसी विवशतावश ?
अब आप कहेंगे कि सेक्स ही सबकुछ नहीं होता, शरीर ही सबकुछ नहीं होता, मन का मेल होना चाहिए, भावनात्मक मेल होना चाहिए। या फिर आप यह कहेंगे कि एक संन्यासी को आत्मा-परमात्मा, ध्यान, मोक्ष आदि की बातें करनी चाहिए, ये क्या बकवास लेकर बैठ गए ?
क्या वास्तव में बकवास कर रहा हूँ मैं ?
क्या मानव शरीर इसलिए मिला है कि अपनी जवानी माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के नाम कर दो और बुढ़ापे में भजमन नारायण करो और अपनी कमाई अस्पताल, डॉक्टर्स, फार्मा माफियाओं और मंदिर, मस्जिद, तीरथों, दरगाहों में पर लुटवाओ ?
“दुनिया की सबसे महंगी चीज है आपका वर्तमान, जो एक बार चली गयी तो दुनिया की सारी संपत्ति भी वापस नहीं ला सकती।” -ओशो
गौतम बुद्ध के अनुयायी दुनिया में सबसे सहनशील प्राणी माने जाते हैं। ये लोग दुनिया के सभी कष्ट सह लेते हैं, लेकिन शोषकों, माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों का कभी विरोध नहीं करते।

क्या कभी सोचा है कि गौतम बुद्ध की प्रतिमाएँ दुनिया में सबसे अधिक पायी जाती हैं, तो क्यों ?
क्योंकि गौतम बुद्ध एकमात्र ऐसे गुरु हुए, जो माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के सबसे अनुकूल रहे। हर राजा, सम्राट चाहता था कि गौतम बुद्ध उनके राज्य में आयें और जनता को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाएँ, ताकि जब उनके सैनिक जनता को लूटने निकलें, तब जनता विरोध या आत्मरक्षा ना कर “बुद्धम शरनम गच्छामी” का मंत्र जाप करते हुए अपने-अपने घरों में दुबक जाये।
बुद्ध को आगे करके राजा, महाराजा से लेकर फिरंगी लुटेरे लूटते आए और अब वर्तमान माफिया और लुटेरे देश व जनता को लूट रहे हैं।
जो विपक्ष में होता है, वह हड़तालें करवाता है जनता का हितैषी बनकर और सत्ता मिल जाये, तो हड़ताल करने वालों पर लाठी चार्ज करवाता है। क्योंकि शासक पक्ष हमेशा चाहता है कि उसके द्वारा की जा रही लूट-पाट के विरुद्ध कोई आवाज न उठाए, केवल बुद्धम शरनम गच्छामी का जाप करे और स्वर्ग, जन्नत की कल्पनाओं में डूबा रहे।
आज कोई भी मजहब हो, कोई भी पंथ हो, कोई भी समाज हो, कोई भी संगठन हो, चाहे वह कितने ही महान गुरु, अवतार या पैगंबर द्वारा स्थापित हो, सभी माफियाओं की गुलाम भेड़ों, बत्तखों का झुण्ड बन चुके हैं।
जिददु कृष्णमूर्ति ने बिलकुल सही कहा था “दुनिया के सभी धर्म, भगवान् और मसीहा इंसानियत के दुश्मन हैं”।
मैं जिददु कृष्णमूर्ति से पूर्णतः सहमत हूँ। ये पंथ, ये गुरु-भक्ति और स्तुति-वंदन की प्रथा इंसान को आध्यात्मिक व मानसिक उत्थान प्रदान नहीं करते, बल्कि भेड़ों और जोम्बियों के झुण्ड में रूपांतरित करते हैं। और माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के अनुकूल बनाते हैं।
बहुत से आध्यात्मिक गुरु ध्यान सिखा रहे हैं… लेकिन किन लोगों को ?
केवल उन्हें जिनके पास अच्छा बैंक बेलेन्स है या अच्छी फीस चुकाने का दम रखते हैं। क्या यही आध्यात्मिक गुरु उन किसानों, आदिवासियों को ध्यान सिखा पाएंगे, जिनके परिजन जेलों में हैं या माफियाओं के सरकारी और गैर सरकारी गुंडों द्वारा मार दिये गए हैं, घर जला दिये गए हैं, जंगलों से खदेड़ दिये गए हैं, खेत छीन लिए गए हैं ?
नहीं ये जितने भी ध्यान, योग, भक्ति सिखाने वाले गुरु हैं, सभी का मुख्य काम है माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध उठते जनाक्रोश को शांत करना और उसके एवज में माफियाओं से अच्छी कीमत लेना। माफिया ऐसे गुरुओं के प्रचार प्रसार में बहुत खर्च करते हैं। अक्सर ऐसे गुरु आपको सरकारों, डबल्यूएचओ, इकोनोमिक फॉरम के मालिकों के साथ खड़े दिखाई देंगे। इनके ऊपर हजारों केस चल रहे हों, तब भी किसी कोर्ट की हिम्मत नहीं होगी इन्हें सजा दिलाने की।
वहीं जब कोई ऐसा गुरु आस्तित्व में आ जाये, जो समाज को माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध संगठित करने का प्रयास करे, तो जेल भेज दिया जाएगा, या फिर मौत के घाट उतार दिया जाएगा।
क्या शिक्षण संस्थान में बैठे वैश्य और शूद्र सही दिशा दे रहे हैं समाज को ?
नहीं…बिलकुल भी नहीं। नीचे दो तस्वीरें दे रहा हूँ…..

पहली तस्वीरे में एक पिता ने अपने बेटे को आईएएस बनाने के लिए अपना घर बेच दिया। बेटे ने भी अपने पिता के बलिदान की गरिमा रखी और आईएएस गिरोह में अपना नाम दर्ज करवाया। और अब आईएस बनकर करेगा क्या ?
अपने ही देश को लूटने और लुटवाने वाले गिरोह की सेवा और सहायता। बदले में मिलेगा सरकारी बंगला, कार, सेवक, सुरक्षाकर्मी और समाज व सरकार से मान-सम्मान।
दूसरी तस्वीर है मेट्रो ट्रेन की, जिसमें नैतिकता के सिपाही खड़े हैं उन्हें रोकने जो अनैतिक गतिविधि करते हैं मेट्रोज पर।
अब मॉरल पुलिस की आवश्यकता पड़ी क्यों ऐसे समाज में, जहां 90% से कम अंक आने पर छात्र स्वयं को नकारा मानने लगते हैं ?
मेट्रो पर जो अभी अनैतिक या असमाजिक गतिविधियां होती हैं, वह सब कर कौन रहे हैं ? वही युवक युवतियाँ जो स्वयं को सुसभ्य, शिक्षित समाज के सम्मानित सदस्य मानते हैं। विदेशी संस्कृति को ढोने वाले यही युवक युवतियाँ आज तक विदेशियों से यह नहीं सीख पाये कि अपने शहर को स्वच्छ रखना चाहिए, अपने शहर और अपने देश में, अपने लोगों के साथ साथ अपनी ही मातृभाषा में बात करनी चाहिए।
क्यों नहीं सीख पाये ?
क्योंकि शिक्षण संस्थान इस योग्य नहीं कि नैतिकता और देशभक्ति सिखा पाएँ। वे तो स्वयं पाश्चात्य संस्कृति को ढो रहे हैं, उन्हें तो स्वयं अपने ही देश की भाषा बोलने और लिखने में शर्म आती है। तो भला वे छात्रों को कैसे सिखा सकते हैं नैतिकता, देशभक्ति और मातृभाषा के प्रति सम्मान ?
और जब सारा समाज ही पाश्चात्य संस्कृति को ढो रहा हो, विदेशी शिक्षा पद्धति थोप रहा हो अपनी आने वाली पीढ़ी पर, तो देश के प्रति सम्मान का भाव पैदा होगा कहाँ से ?
यही कारण है कि देश के नेता, राजनैतिक पार्टियां, सरकारें, न्यायालय, शैक्षणिक संस्थान से लेकर आश्रम और आध्यात्मिक केंद्र तक समाज को नैतिकता और देशभक्ति नहीं सिखा पाये।
पाश्चात्य शिक्षण केन्द्रों से शिक्षा प्राप्त साधु-संन्यासियों के हाथों जब आश्रम आता है, तब वे आश्रमों को होटल में रूपांतरित कर देते हैं। आश्रम की भूमि किराये या लीज़ पर दे देते हैं और स्वयं भगवान बनकर भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करने निकल पड़ते हैं। अधिकांश साधु-संन्यासी समाज को यही संदेश देते हैं कि प्राकृतिक, आयुर्वेदिक, होमियोपैथिक चिकित्सापद्धति अनपढ़ों, जाहिलों की चिकित्सा पद्धति है। अधिकांश आश्रम के अध्यक्ष अपने अपने आश्रम की कृषि भूमि पर कंक्रीट के जंगल खड़े करवा देते हैं। ना स्वयं कृषि सम्बन्धी कोई कार्य करते हैं और न ही समाज को कृषि संबन्धित कोई ज्ञान देते हैं।
और ऐसा केवल इसलिए हुआ, क्योंकि शैक्षणिक संस्थान माफियाओं द्वारा संचालित होते हैं। वे पाठ्यक्रम ऐसे बनाते हैं, जिससे आने वाली पीढ़ी केवल गुलाम मानसिकता की बने, यह मानकर ज़िंदा रहे कि उनका जन्म माफियाओं की चाकरी और गुलामी करने के लिए हुआ है। अमेरिकी देश जो भी चिकित्सा पद्धति और औषधि देंगे, वही अमृत है और बाकी सभी व्यर्थ कूड़ा-कर्कट। जल्दी ही विश्व के सभी देशों की कृषि भूमि केवल माफियाओं के पास होगी और वे ही तय करेंगे कि उनकी गुलाम जनता क्या खाएगी क्या पीएगी। मंदिर और तीर्थ तो पहले ही व्यावसायिक पर्यटन केन्द्रों में रूपांतरित हो चुके हैं, भविष्य में आध्यात्मिक और चैतन्य आत्माओं का जन्म लेना भी असंभव हो जाएगा।
सारांश यह कि यदि आपका समाज, आपका गुरु, आपका आराध्य माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध नहीं है, जंगलों और नदियों को बर्बाद करने वाले माफियाओं के विरुद्ध नहीं है, मैं सुखी तो जग सुखी पर जीने के सिद्धान्त पर जी रहा है ताकि बुढ़ापा चैन से कट जाए….तो निश्चित मानिए वह माफियाओं का एजेंट है या फिर समर्थक और सहयोगी।
मैं यह नहीं कह रहा कि आपको कोई संगठन बनाकर आंदोलन करना है सरकार और माफियाओं के विरुद्ध, या दुनिया बदलना है। क्योंकि मेरा अनुभव है कि संगठन जितने भी बने हैं, सभी माफियाओं के सहयोग से ही बने हैं। एक माफिया सत्ता-पक्ष के माफिया को गिराकर स्वयं सत्ता चाहता है, इसलिए आंदोलनकारी गिरोह का गठन करवाता है। लेकिन जब उसे सत्ता मिल जाती है, तो वह भी वही करता है जो पहले वाले ने किया। केवल तरीका अलग अलग हो सकता है।
मैं तो केवल यह कह रहा हूँ कि दुनिया को बदलने वाले संगठनों, पार्टियों के चक्कर में नहीं पड़ना है, केवल स्वयं को बदलना है और इस योग्य बनाना है कि माफियाओं, सरकारों की गुलामी, चाकरी ना करनी पड़े, उनपर आश्रित रहने की आवश्यकता न पड़े। और जब आप माफियाओं के गुलाम मजदूर, कोल्हू का बैल बनने की बजाय स्वतन्त्र व आत्मनिर्भर इंसान बन जाएँगे, तब आपको ऐश्वर्य भोगने के लिए बुढ़ापे की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी और न ही स्वर्ग, जन्नत में प्लाट बुक करवाने के लिए मंदिरों, मस्जिदों, तीरथों और रिश्वतखोर, कमीशनखोर देवी-देवताओं, बाबाओं के दरबारों में हाज़िरी लगानी होगी।
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