मायावी संसार में झूठ ही आधार है सुखी समृद्ध जीवनका
वैश्यों की दुनिया में यदि खरीदना/बेचना ना आता हो, जीवन व्यर्थ है।
आप सच बोलकर कुछ भी नहीं बेच सकते। सच भी बेचना हो, तो झूठ का सहारा लेना पड़ता है।
क्योंकि माफियाओं ने समाज ही ऐसा बना दिया है, जो झूठ पर ही विश्वास करता है। नेता जब तक झूठ ना बोले, जनता विश्वास नहीं करती। सरकारें जब तक झूठ न बोले जनता विश्वास नहीं करती। लाइफ इंश्योरेंस से लेकर टेलीकॉम सर्विसेस तक झूठ न बोलें, तो जनता विश्वास नहीं करतीं।
और विश्वास दिलाने के लिए सच नहीं, झूठ बोलना पड़ता है।
क्योंकि झूठ ही बिकता है और झूठ ही खरीदा जाता है।
और दुनिया चाहे वैश्यों की हो, या शूद्रों की, विश्वास झूठ पर ही किया जाता है।
सरकारें, मीडिया, फार्मा कंपनियाँ, अस्पताल, डॉक्टर्स, साइंटिस्ट्स सभी झूठ पर आश्रित हैं, क्योकि झूठ ही पढ़ा है, झूठ ही पढ़ा रहे हैं और झूठ से ही कमा रहे हैं। एक पढ़ा-लिखा होने का अर्थ ही झूठ पर आश्रित जीवन जीने की कला सीख लेना।
एक सुप्रसिद्ध डायलॉग है, “क्या तुम डॉक्टर हो, जो दवाई अपनी मर्जी से ले ली या दूसरों को दे दी ?”
और आश्चर्य तो तब होता है, जब होमियोपैथी या आयुर्वेदिक या अन्य कोई घरेलू इलाज ले रहा हो अपनी मर्जी से, तब भी यही प्रश्न उठाते हैं लोग।
आदिवासी समाज अपना इलाज स्वयं करता आया है सदियों तक एलोपैथ के आने से पहले तक। आज भी कई लोग ऐसे हैं, जो एलोपैथिक इलाज लेना पसंद नहीं करते और वे रोगों से मुक्त स्वस्थ जीवन जी रहे हैं।
लेकिन एलोपैथिक इलाज लेने वाले लोग कई नए रोगों से ग्रसित हो चुके हैं। अपनी कमाई का अधिकांश भाग डॉक्टर, दवा और अस्पताल में खर्च कर रहे हैं।
यदि एलोपैथिक डॉक्टर और अस्पतालों का उद्देश्य मनुष्य को स्वस्थ करना होता, तो डायबिटीज़ जैसी बीमारी का इलाज क्यों नहीं खोज पाये आज तक ?
क्यों यह धारणा लोगों के मन में बैठा दी गयी है कि डायबिटीज़ ऐसी बीमारी है, जिसकी दवा यानि इंसुलिन का इंजेक्शन आजीवन लेना पड़ेगा ?
सत्य तो यह है कि एलोपैथिक चिकित्सा एक ऐसा व्यवसाय है, जिसमें अरबों खरबों का खेल हो रहा है। इलाज के नाम पर नए-नए मरीज पैदा किए जा रहे हैं।
एक फर्जी महामारी का आतंक फैलाकर एक ऐसा इंजेक्शन दिया गया, जिससे न जाने कितने लोग बेमौत मारे गए। पूरे विश्व को बंधक बनाकर फर्जी सुरक्षा कवच लेने के लिए विवश किया गया। कोई विरोध नहीं हुआ।
और आज छोटे-छोटे बच्चे बेमौत मर रहे रहा हैं कार्डियक अरेस्ट से, तो कोई पूछने नहीं जा रहा कि प्रायोजित सुरक्षा कवच से पहले लोग ऐसे ही हँसते, खेलते, नाचते, गाते, वरमाला पहनाते क्यों नहीं मर रहे थे ?
जैसे बाबाओं, मंदिरों, मस्जिदों, तीरथों के अंधभक्त होते है, वैसे ही फार्मा माफियाओं, डॉक्टर और अस्पतालों के अंधभक्त होते हैं। कोई अंतर नहीं होता इनमें। भले लाखों लोग बेमौत मारे जाएँ, इनकी आँखें नहीं खुलेंगी।
वर्षों तक इंसुलिन लेने वाले और विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त रहने वाले भी यही प्रश्न कर रहे हैं कि डॉक्टर से सलाह लिए बिना दवा क्यों ली ?
लेकिन जब इन्हीं डॉक्टर्स ने फर्जी महामारी से आतंकित कर फर्जी सुरक्षा कवच चेपकर कर करोड़ों लोगों को मौत के मुंह में धकेल दिया, तो कोई प्रश्न ही नहीं उठा रहा। कोई नहीं पूछ रहा सरकार से कि जब फर्जी महामारी का सुरक्षा कवच लेना अनिवार्य नहीं था, तो एसडीएम, डीएम ने जबर्दस्ती सुरक्षा कवच किसके आदेश से चेप दिया लोगों को ?
और जब लोग बेमौत मरने लगे, तो फिर उन सभी अधिकारियों, कंपनियों, स्कूलों, कोलेजस पर केस दर्ज क्यों नहीं हुआ ?
क्या डॉक्टर की डिग्री ले लेने के बाद उन्हें लाइसेन्स मिल जाता है लोगों को बेमौत मारने का ?
वहीं कोई व्यक्ति स्वेच्छा से होमियोपैथि या आयुर्वेदिक चिकिसा लेना चाहता है, तो उन्हीं डॉक्टर्स की पर्मिशन क्यों चाहिए, जो डबल्यूएचओ से पूछकर फर्जी महामारी का इलाज करते हैं ?
बहुत बड़ी भ्रांति फैलाई गयी है कि आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, साइंटिस्ट, सरकारी अधिकारी, नेता, मंत्री आदि देश व समाज की सेवा करने के लिए पढ़ाई करते हैं। वास्तविकता यह है कि ये सभी कमाई करने के लिए पढ़ाई करते हैं। यही कारण है कि आज तक न भ्रष्टाचार मुक्त हो पायी दुनिया, न बीमारियों से मुक्त हो पायी। उल्टे नए नए भ्रष्टाचारी, अपराधी, और बीमारियाँ पैदा हो रहीं हैं। और उनसे बचाव के लिए महंगे महंगे उपाए और उपचार भी मार्किट में लांच हो रहे है।
पंडिताई हो, या तयागी, बैरागी साधु, संत….सभी पैसों के ही पीछे दौड़ रहे हैं। कोई इक्का दुक्का अपवाद देखने को मिल जाये तो अलग बात है। इस मायावी दुनिया में या तो वैश्य बनकर जी सकते हो, या फिर शूद्र बनकर। ब्राह्मण और क्षत्रिय तो अब लुप्त होने के कागार पर पहुँच चुके हैं।