सनातन हिन्दू धर्म को समझना है तो संस्कृत सीखो शास्त्रों को पढ़ो

मेरे लेखों ने नास्तिकों, वामपंथियों, अंबेडकरवादियों, मार्क्सवादियों को सर्वाधिक आकर्षित किया और उन्होंने धारणा बना ली की मैं भी नास्तिक या उन्हीं के जैसा हूँ। और जो इस भ्रम में जी रहे हैं कि वे आस्तिक हैं, धार्मिक हैं, सात्विक हैं, वे मुझे वामपंथी, नास्तिक, हिन्दुत्व का शत्रु, पाकिस्तानी मुल्ला, आईएसआई का एजेंट आदि मान कर दूरी बना लिए या फिर सर्विलान्स कैमरे बनकर फ्रेंडलिस्ट में घुसपैठ कर गए।
अब होता यह है कि मैं कभी तिलक लगा लूँ, या आरती, पूजा, कीर्तन में बैठ जाऊँ तो वामपंथियों, अंबेडकरवादियों, नास्तिकों को ढोंगी पाखंडी नजर आने लगता हूँ। और यदि न बैठूँ, तो हिन्दुत्व के ठेकेदारों, साधु-संन्यासियों के भेस में घूम रहे माफियाओं और देश के लुटेरों के एजेंट्स को ढोंगी पाखंडी नजर आने लगता हूँ।
अक्सर ऐसे ही त्यागी, बैरागी, साधु/संन्यासी जो कट्टर मोदीभक्त, भाजपा और आरएसएस और मोदीभक्त होते हैं, मुझे कहते हैं कि आपको सनातन हिन्दू धर्म का रत्तीभर भी ज्ञान। वेदों को पढ़ो, गीता पढ़ो, उपनिषद पढ़ो तब सनातन हिन्दू धर्म के विषय में थोड़ी बहुत समझ में आएगा।

और जब मैं कहता हूँ कि या तो सनातन धर्म की बात करो या फिर हिन्दू धर्म की। दोनों बिलकुल अलग-अलग धर्म हैं। सनातन हिन्दू धर्म जैसा कोई धर्म हो ही नहीं सकता, तो बुरी तरह नाराज हो जाते हैं। फिर संस्कृत के श्लोक उगलने लगते हैं और संस्कृत मुझे बिलकुल भी नहीं आती। तो कहते हैं कि जब देवों की भाषा संस्कृत ही समझ में नहीं आती, तो फिर सनातन हिन्दू धर्म कहाँ से समझ में आएगा ?
वे लोग बिलकुल सही है कि देवभाषा संस्कृत समझ में नहीं आती, तो भला सनातन हिन्दू धर्म अर्थात माफ़ियों, लुटेरों की चापलूसी, देवी, देवताओं की स्तुति वन्दन, पूजा-पाठ, यज्ञ हवन से देश व समाज के कल्याण का भ्रम भला कैसे समझ में आ सकता है ?
भला कैसे समझ में आ सकता है मुझे कि महाबली हनुमान के उपासक को Y श्रेणी की सुरक्षा की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?
कैसे समझ में आ सकता है कि फर्जी महामारी से आतंकित होकर बड़े-बड़े चमत्कारी देवी, देवता, पंडित, पुरोहित, साधु, संन्यासी क्यों फरार हो गए थे मंदिर, तीर्थों पर ताला लगाकर ?
कैसे समझ में आ सकता है कि भभूत और ताबीज से भक्तों की बड़ी से बड़ी बीमारियों को ठीक कर देने वाले सिद्ध बाबाओं को फर्जी महामारी का फर्जी सुरक्षा कवच क्यों लेना पड़ गया ?
कैसे समझ में आएगा कि कृषि योग्य भूमि से युक्त बड़े-बड़े आश्रमों को होटलों और व्यावसायिक केन्द्रों में रूपांतरित करने की आवश्यकता क्यों पड़ गई ?
कैसे समझ में आएगा कि मंदिरों, तीर्थों व आध्यात्मिक स्थलों को व्यवसायिक पर्यटन केन्द्रों में रूपांतरित करने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी ?
कैसे समझ में आएगा
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