राजतन्त्र का प्रतीक राजदण्ड: सत्ता परिवर्तन इसी को कहते हैं !

प्राचीनकाल में भी ऐसा ही हुआ करता था जब एक कबीला किसी दूसरे कबीले पर, एक एक राज्य दूसरे राज्य पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेता था।
सत्ता परिवर्तन अर्थात शासन हस्तांतरण जब होता है या नए राजा का राज्याभिषेक होता है, तब राजदण्ड अर्थात शासक का प्रतीक नए राजा को सौंपा जाता है। जैसे कि माउंट बेटन ने ब्रिटिश साम्राज्य का प्रतीक राजदण्ड पंडित जवाहर लाल नेहरू को सौंप कर शासन हस्तांतरण की आधिकारिक घोषणा की थी। लेकिन नेहरू ने उस राजदण्ड को walking stick कहकर संग्रहालय में रखवा दिया था। क्योंकि नेहरू भारत को राजतंत्रिक देश से रूपांतरित कर लोकतान्त्रिक देश बनाना चाहते थे।

सत्ता परिवर्तन होगा तो वह सब बदला जाएगा, जो पराजीत सत्ता की पहचान थी। मुद्रा बदला जाएगा, प्रतीक बदले जाएँगे, संविधान बदले जाएँगे। यहाँ तक कि कैसे कब क्या खाना है, क्या पहनना है, कैसे जीना है तक नया शासक तय करेगा।
आज फिर राजदण्ड संग्रहालय से निकल कर संसद पहुँच गया है। अर्थात राजतन्त्र वापस लौट आया है।

अब चूंकि भारत वर्ष का शासक न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के एजेंट्स हैं, तो स्वाभाविक है प्रतीक चिन्ह भी राजदंड होगा। अर्थात राजा का लट्ठ। और राजा वह नहीं, जो दिख रहा है। वह तो केवल जमुरा है भेड़ों द्वारा चुना गया, जिसका काम है जनता का मनोरंजन करना और मूल समस्याओं से ध्यान भटकाये रखना।
वास्तविक राजा वह है, जिसने प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाकर समस्त विश्व को बंधक बनाकर फर्जी सुरक्षा कवच चेप कर प्रमाणित कर दिया कि समस्त विश्व की जनता उसकी गुलाम है और वह जो निर्णय लेगा वही जनता को मानना होगा। और जो विरोध करेगा, वह जेल जाएगा या फिर बेमौत मारा जाएगा।
रही लोकतन्त्र की बात, तो भेड़ों और गुलामों से भरी दुनिया में लोकतन्त्र जैसा कोई तंत्र होता ही नहीं। लोकतन्त्र तो केवल वहीं स्थापित हो सकता है, जहां की जनता जागरूक है, अधर्म, अन्याय और शोषण का विरोध करना जानती हो।
लेकिन अधिकांश देशों में ऐसी जनता नहीं पायी जाती, क्योंकि धार्मिक और आध्यात्मिक गुरुओं ने सीखा दिया है कि विरोध मत करो माफियाओं और लुटेरों का। बल्कि ईश्वर पर ध्यान लगाओ, स्तुति-वंदन, पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास करो ताकि मरने के बाद स्वर्ग मिले, जन्नत मिले, हूरें और अप्सराएँ मिले और मिले दारू की नदियां।
अब तो मुझे भी प्रतीत होने लगा है कि माफियाओं और लुटेरों के भक्तों, गुलामों और भेड़ों की दुनिया में माफियाओं का विरोध करके अपना जीवन नर्क बनाने से अच्छा है आँख, कान, मुँह बंद करके “मैं सुखी तो जग सुखी” के सिद्धान्त पर जीयो।

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