सकारात्मकता और साक्षी-भाव में क्या अंतर है ?
सकारात्मकता वह नशा है, जो बाबाओं, नेताओं, अभिनेताओं, पार्टियों, सरकारों, फार्मा माफियाओं के अंधभक्तों में पायी जाती है।
इस नशे से प्रभावित व्यक्ति अत्याधिक सकारात्मक होता है। यदि ऐसे व्यक्ति का कोई घर जला दे, तो कहेगा कि पुराना हो गया था अब नया बनवाऊंगा।
यदि ऐसे व्यक्ति की कोई बीवी भगा ले जाये, तो कहेगा कि पुरानी हो गयी थी और बहुत चिक-चिक भी करती थी। अच्छा ही हुआ भगा ले गया, अब मैं नयी बीवी लाऊँगा।
यदि ऐसे व्यक्ति का कोई बैंक अकाउंट खाली कर दे, तो कहेगा कि अच्छा ही हुआ सफाई हो गयी। अब नयी करारे करेंसी जमा कराऊंगा।
यदि ऐसे व्यक्ति की नौकरी चली जाये, तो कहेगा कि अच्छा ही हुआ अब मैं नयी नौकरी खोजुंगा।
सारांश यह कि सकारात्मक व्यक्ति के जीवन में कुछ भी नकारात्मक होता ही नहीं, इसीलिए वह हर समय खुश रहता ही सत्ता-पक्ष के भक्तों और सरकारी अधिकारियों, बाबाओं, नेताओं की तरह।
सकारात्मक व्यक्ति हर दुर्घटना में लाभ और हर आपदा में फायदा खोज लेता है। उसके सामने लाशों का ढेर पड़ा हो, तो भी वह उदास या दुखी नहीं होगा, बल्कि वही लाशों के कपड़ों की सेल लगा लेगा और मेडिकल का स्टूडेंट्स को प्रेक्टिकल के लिए लाशें बेचकर मोटी कमाई कर लेगा।
सकारात्मक व्यक्ति और साक्षी-भाव में जीने वाले व्यक्ति में इतना ही अंतर होता है कि सकारात्मक व्यक्ति नकारत्म्क्ता को सकारात्मकता में बदल लेता है। जबकि साक्षी-भाव का व्यक्ति निर्विकार, विचार-शून्य, भावना शून्य हो जाता है।
साक्षी-भाव के व्यक्ति को कोई फर्क नहीं पड़ेगा कोई उसका बैंक लूट ले, उसके घर को आग लगा देगा, उसकी बीवी भगा ले जाये….वह केवल साक्षी-भाव से देखेगा बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए।
सदियों से आध्यात्मिक, धार्मिक, मोटिवेशनल गुरुओं ने निरन्तर सकारात्मकता और साक्षी-भाव का डोज़ दे-दे कर आज मानव जाति को इतना सकारात्मक और साक्षी-भाव का बना दिया है, कि अब किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता देश के लुटने से, पूरे विश्व की जनता को बंधक बनाकर सामूहिक बलात्कार करने से।
सभी सकारात्मकता के साथ साक्षी-भाव में जी रहे हैं। यदि इनके घर के सारे सदस्य नाचते-गाते, हँसते-खेलते कार्डियक अरेस्ट का शिकार होकर परलोक सिधार जाएँ, तब भी चूँ नहीं करेंगे। क्योंकि ये मानते हैं कि जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, जो होगा अच्छा होगा।
विपश्यना, अनुलोम-विलोम, कपालभाती और दाल-बाटी का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि इंसान साक्षी और सकारात्मक भाव से बिलकुल वैसे जीने लगता है, जैसे एलएसडी, अफ़ीम, स्मैक, भांग का नशा करने वाले लोग जीने लगते हैं। जैसे सत्ता पक्ष के समर्थक नेता, अभिनेता और भक्त जी रहे होते हैं। जैसे सरकारी अधिकारी जी रहे होते हैं। जैसे मल्टीनेशनल कंपनी का कर्मचारी जी रहे होते हैं। जैसे साधु समाज, गुलाम समाज, वैश्य समाज और अन्य समाज जी रहा होता है “मैं सुखी तो जग सुखी” के सिद्धांत पर।
लेकिन यदि कोई सकारात्मकता और साक्षी-भाव के साथ “मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धांत पर जीना चाहता है बिना कोई आसन प्राणायाम किए, तो उसे शहर, फेसबुक, ट्विटर, न्यूज चैनल्स, राजनैतिक पार्टियों, धार्मिक, सात्विक, जातिवादी समाजों से दूर किसी एकांत में चले जाना चाहिए।
अपने साथ केवल एक गिटार या अन्य कोई वाद्ययंत्र रखना चाहिए। एक लैपटॉप, बागवानी से संबंधित उपकरण, आत्मरक्षा के लिए हथियार और खाने पीने का आवश्यक समान रखना चाहिए। कुछ ही दिनों में आप पाएंगे कि आपमें सकारात्मकता आ गई और आप साक्षी भाव से “मैं सुखी तो जग सुखी” के सिद्धांत पर जीने लगे नेताओं, अभिनेताओं, खिलाड़ियों, उनके भक्तों और पशु पक्षियों की तरह।