ज्योतिष विज्ञान, होमियोपैथ, स्पर्श-चिकित्सा क्या अंधविश्वास पर आधारित हैं ?

बचपन से देखता आ रहा हूँ कि पढ़ा-लिखा समाज अंधविश्वास से मुक्त करने के अभियान चलाता रहता है। कभी कोई अंधविश्वास उन्मूलन संगठन बना लेता है, तो कभी कोई तांत्रिकों, ज्योतिषियों, बाबाओं को ढोंगी, पाखंडी बताकर समाज को अंधविश्वास मुक्त बनाने का प्रयास करता है।
लेकिन क्या कभी सोचा है किसी ने कि अंधविश्वास के बिना यह संसार चल ही नहीं सकता ?
विश्वास और अंधविश्वास में क्या अंतर होता है ?
विश्वास और अंधविश्वास में अंतर यह होता है कि विश्वास संदेहों के साथ होता है, जबकि अंधविश्वास संदेह मुक्त होता है।
और विश्वास चाहे कोई भी हो, जब तक अंधविश्वास में नहीं बदलता, तब तक वह प्रभावी भी नहीं होता। इसीलिए नेता, बाबा, पार्टी, कंपनी, शासक सभी विश्वास को अंधविश्वास में रूपांतरित करके अंधभक्तों और अंध-समर्थकों की ऐसी भीड़ इकट्ठी करते हैं, जिन्हें मूर्खताओं पर उत्सव मनाने के लिए कहा जाए, तो फर्जी महामारी के स्वागत के लिए थाली, ताली और बर्तन बजाकर नाचने लगते हैं। लाशों पर उत्सव मनाने के लिए कहा जाये, तो पुलवामा कांड के शहीदों की लाशों पर चुनावी उत्सव मनाने लगते हैं। मणिपुर की आग पर झुलसे आदिवासियों की लाशों पर उत्सव मनाने अमेरिका पहुँच जाते हैं।
किसी पर विश्वास करने के लिए आपको किसी तीसरे व्यक्ति की गारंटी चाहिए होगी जैसे कि सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, डिग्री, या किसी परिचित का आश्वासन। लेकिन अंधविश्वास करने के लिए किसी की कोई गारंटी नहीं चाहिए। ना तो आप सर्टिफिकेट, डिग्री, डिप्लोमा पूछेंगे, न ही अनुभव और चरित्र प्रमाणपत्र की आवश्यकता पड़ेगी। केवल भीड़ देखी किसी के पीछे और लग गए लाइन पर। फिर भले वह झूठा हो, मक्कार हो, बेईमान हो, देश व जनता का लुटेरा हो, हत्यारा हो, बलात्कारी हो…..कोई फर्क नहीं पड़ने वाला आपके अंधविश्वास पर।
ज्योतिष विज्ञान, होमियोपैथ, स्पर्श-चिकित्सा क्या अंधविश्वास पर आधारित हैं ?
मेरा उत्तर होगा बिलकुल भी नहीं। ये सभी उसी विश्वास पर आधारित हैं, जिस विश्वास पर लोकतन्त्र, संविधान, न्यायतंत्र, शासनतंत्र, माफिया तंत्र, पार्टी तंत्र, और एलोपैथी चिकित्सा तंत्र आधारित हैं।
उपरोक्त सभी का आधार विश्वास ही होता है लेकिन कब और कैसे अंधविश्वास में रूपांतरित हो जाता है किसी को पता ही नहीं चलने पाता। उदाहरण के लिए लोकतन्त्र लाया गया राजतंत्र और माफिया तंत्र के विरुद्ध और जनता ने पूरा विश्वास किया कि लोकतन्त्र जनता के हितों के लिए ही होगा। लेकिन आज हम जानते हैं कि केवल लेबल बदला है और कुछ भी नहीं।
शासन आज भी माफिया ही चला रहे हैं, शासन आज भी डिक्टेटरशिप यानि तानाशाही पर ही आधारित है, केवल लोकतन्त्र की पिपणी बजाई जा रही है। और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मिला प्रायोजित महामारी के आतंकियों अर्थात फार्मा माफियाओं के आदेश पर पूरे विश्व की जनता को बंधक बनाकर फर्जी सुरक्षा कवच चेपने के लिए विवश करना। और फिर कोर्ट पर जाकर मुकर जाना कि हमने किसी पर कोई दबाव नहीं बनाया, सबने स्वेछा से लिया है। कोर्ट भी ऐसा बेशर्म की मान लेता आँख मूंदकर कि जनता को स्वप्न आया था फर्जी महामारी का फर्जी सुरक्षा कवच लेने का और ले लिया। सरकार को तो पता भी नहीं चला कि कब जनता ने अपनी मर्जी से फर्जी सुरक्षा कवच ले लिया।
जनता ने प्रायोजित महामारी और प्रायोजित सुरक्षा कवच के आतंकियों पर विश्वास क्यों किया ?
क्योंकि फार्मा माफियाओं के गुलाम वैज्ञानिकों, सरकारों, और डॉक्टर्स पर अंधविश्वास करती थी। जनता मानती थी कि उनके पास डिग्रियाँ है, इसलिए वे लोग गलत कर ही नहीं सकते। और यही अंधविश्वास ले डूबा बहुतों को। कितनों की नौकरी गयी, कितनों का रोजगार गया और कितनों को अपने प्राणों से ही हाथ धोना पड़ गया।
अब चूंकि फार्मा माफियाओं, सरकारों, डॉक्टर्स पर अंधविश्वास करना पढ़ा-लिखा और सभ्य होना माना जाता है, इसलिए लाखों की मौत हो गयी, तब भी किसी को कोई आपत्ति नहीं। जबकि किसी झाड़-फूँक करने वाले, किसी ऐसे होमियोपैथिक या आयुर्वेदिक चिकित्सक की चिकित्सा से कोई मारा जाता, जो फार्मा माफियाओं से प्रमाणित न हो तो तुरंत कानून सक्रिय हो जाता और उसे गिरफ्तार करके जेल भिजवा देता।
अंधविश्वास यदि करोड़ों की जान ले सकता है, तो करोड़ों की जान बचा भी सकता है। अंधविश्वास यदि किसी को बर्बाद कर सकता है, तो किसी को जीवन भी दे सकता है। जैसे कि एक बच्चा अपने माता-पिता पर अंधविश्वास करता है और जीवन पाता है। लेकिन माता-पिता पर किया गया अंधविश्वास बहुत से बच्चों को मानसिक तनाव में जीने के लिए भी विवश कर देता है। जैसे कि माता-पिता की मर्जी से किया गया विवाह किसी को सुखी जीवन देता है, तो किसी को दहेज की आग में जला देता है या फिर कोर्ट कचहरी के चक्कर लगवा देता है। और यह सब होता है अपने माता-पिता, परिजनों पर अंधविश्वास के कारण।
अंधविश्वास चमत्कार कर सकता है यदि प्रकृति, ईश्वर और स्वयं पर किया जाये
यदि आप ईश्वर पर अंधविश्वास करते हैं, स्वयं पर अंधविश्वास करते हैं, प्रकृति पर अंधविश्वास करते हैं, तो आश्चर्यचकित करने वाले चमत्कार देखने मिल सकता है।
प्रायोजित महामारी काल में जब फार्मा माफियाओं, सरकारों, डबल्यूएचओ और डॉक्टर्स पर अंधविश्वास करने वाले जहां बेमौत मारे जा रहे थे, उस समय मेरे जैसे बहुत से लोग स्वयं पर, ईश्वर पर और प्रकृति पर अंधविश्वास करने वाले लोग निश्चिंत बैठे हुए थे।
जब विश्व की अधिकांश जनता प्रायोजित महामारी से आतंकित होकर जिंदा रहने के लिए प्रायोजित सुरक्षा कवच ले रही रही थी लाइन लगाकर, हम बिना अस्पताल गए, बिना कोई सुरक्षा कवच लिए भी आज तक जीवित हैं।
क्या आपने Surgeon Dr. James Esdaile (1808-1859) का नाम सुना है ?

Surgeon Dr. James Esdaile ईस्ट इंडिया कंपनी में सर्जन थे और कलकत्ता में नियुक्त थे। वे सर्जरी अर्थात ऑपरेशन करने के लिए एनेस्थीसिया का प्रयोग नहीं करते थे, बल्कि सम्मोहन विज्ञान का प्रयोग करते थे। वे सम्मोहन विज्ञान में इतने पारंगत थे कि बड़े से बड़ा ऑपरेशन के लिए सम्मोहन से बेहोश करके कर देते थे।
और सम्मोहन क्या है ?
दूसरे व्यक्ति को अपने आदेशों का अनुसकरण करने के लिए विवश कर देना। अर्थात विश्वास से अंधविश्वास में ले जाना और फिर उससे वह सब करवा लेना जो वह होश में रहकर नहीं कर सकता था।
यही सब होता है जब कोई व्यक्ति किसी बाबा पर, साधु-संन्यासी पर अंधविश्वास कर लेता है। फिर वह भभूत दे, तो भी दवा बन जाएगा, सादा पानी भी मंत्र फूँककर दे दे, तो अमृत बन जाएगा।
तो यहाँ अंधविश्वास वरदान हो गया है। और यही अंधविश्वास जब फार्मा माफियाओं पर किया जाए, सरकारों पर किया जाए, या धूर्त ठग बाबाओं पर किया जाये, तो अभिशाप बन जाता है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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