हम किसान ही दाता और अन्नदाता न कि मजदूर !

💚💧🌱🐝हम किसान ही देवों के देव, राजा और इस धरती के मालिक है!
न कि पूंजीवादी शैतानी सरकारी व्यवस्था, बल्कि हम जनता ही सरकार हैं, और इस धरा के भगवान है, राजा है, मालिक है।
क्योंकि हम सबों ने खुद को पहचानना छोड़ दिया है, दूसरों को मालिक बना बैठे हैं, दूसरे को राजा बना बैठे हैं, और दूसरे नेता और पूंजीवादी व्यवस्थाओं को भगवान बना बैठे।
क्योंकि हमने सब कुछ उनके हवाले कर दिया है, सारे हम किसानों ने अपनी मेहनत के अनाज उनके हवाले कर दिया है, और खुद को पिछड़ा, गरीब, नौकर, मजबूर और मजदूर साबित कर सब कुछ उनको समर्पित कर दिया हैं उन पूंजीवादी शैतानी सरकारों के मोहल्त पर पलते हैं गरीब किसान!
🌱💚हे किसान तुम मालिक, तुम राजा हो, तुम भगवान, तुम सबके दाता, तुम शक्तियों के भंडार हो और पूरी दुनिया के अन्नदाता हो। सिर्फ मानव ही नहीं, तुम पूरी मानवता के दाता हो, पशु, पक्षी, जीव, जंतु, पेड़, पौधे और हर एक प्राणी के जीवनदाता हो और अन्नदाता हो। तुम्हारी वजह से पूरी सृष्टि धन्य धन्य हो रही, हम भी तुम्हें प्रणाम करते हैं! 🙏💚
रहा बात पूंजीवादी व्यवस्था का और राजनीतिज्ञ का भी हमारे टुकड़ों पर पलते हैं, हमारे बिना यह अधूरे हैं। हम किसानों को अपनी मजबूती करनी होगी। हमें अपनी स्वतंत्र आत्मनिर्भर व्यवस्था करनी होगी। अपने अनाजों का खुद मूल्य तय करना होगा। हर एक गांव में हर छोटी-छोटी किसान को शिक्षित कर, कुटीर उद्योग के आधार पर, बिना सरकारों के सहकारिता बनानी होगी। बिना किसी पूंजीवादी व्यवस्था के दलालों के और बिचौलियों के अपनी छोटी-छोटी कुटीर उद्योग खोल, स्वदेशी बीजों के बीज बैंक बना, हर गांव में स्वरोजगार की व्यवस्था करनी होगी। जहां हमारा अनाज हर गांव में अपना होगा बिना पूंजीवादी व्यवस्था के उन मॉल्स के और सुपरमार्केट के, बल्कि अपने गांव वासियों का अपना स्वरोजगार सहकारिता होगा। जहां हम अपनी दृढ़ता और मजबूती और आत्मनिर्भरता से, और पूरी तरह स्वतंत्रता से हम किसी को भी घुटने टेकने को मजबूर कर सकते हैं।
इसीलिए प्राकृतिक व्यवस्था से प्रेम करें, अपने आत्मनिर्भरता को पहचाने, अपनी प्राकृतिक स्वतंत्रता को पहचाने, अपनी उच्च विचार को पहचाने, और अपनी असीम क्षमताओं को पहचाने!
परमात्मा तो प्राकृतिक संपदाओं के विराट अस्तित्व के जीवन है, क्योंकि परमात्मा इस सृष्टि के कण-कण के सारे अस्तित्व की सांसों में बसते हैं।
👉परमात्मा तो फूलों में खुशबू है,
👉परमात्मा तो पेड़ों में पेड़ है,
👉परमात्मा तो झरने में झरना है,
👉परमात्मा तो वृक्षों में वृक्ष है,
👉परमात्मा तो पक्षियों में पक्षी है,
👉परमात्मा तो स्त्रियों में स्त्री है,
परमात्मा तो पुरुषों में पुरुष है,
👉परमात्मा तो मनुष्यों में मनुष्य है,
👉परमात्मा तो बच्चों में बच्चा है,
इसीलिए सभी जीव प्राणियों से प्रेम और सम्मान करें।
जिस व्यक्ति के जीवन में उनके भीतर वैराग्य हो उठे, वह अपने घर परिवार में, भीड़ में भी साधु है। और जो साधु के संग में रहते हुए भी यदि अपने भीतर एकांत में स्थिर नहीं हो पाते। वह अपने गुरु या भगवान को पाकर के भी जागरूक और चैतन्य नहीं हो पाता।
अगर गुरु के सहारे रहकर भी गुरु की क्रांतिकारी गुणधर्म से वाकिफ नहीं या गुरु की प्रेरणा के बावजूद भी, अगर भक्त स्वयं को पूर्ण रूप से फूलों की तरह खिल नहीं सकता। वह जिंदगी भर इस धरा पर कुछ भी नहीं कर सकता, वह खाली का खाली ही रह जाता है।
जो अपने अंदर के स्वयं असीम भंडार में भी डुबकी नहीं लगा सकता, वह तो खाली हाथ इस धरा में आता है और खाली हाथ ही चला जाता है।
परमात्मा तो इस पूरे विराट अस्तित्व में समाई हुई है। अगर उस प्रकृति की सौंदर्य भरी धरा पर देख सकते हैं तो वह आपके आसपास है और अगर नहीं देख सकते हैं तो वह आपको उसे कहीं भी नहीं हो सकता है।
~ सरिता प्रकाश ✍️🙏🌱💧🐝🐞🪲🌳🌷🐞🪲🦜🐛🦆🦋🐞🪲🦜🦅🦉




