यह विश्व ब्रह्मांड सबों का है इसकी सुरक्षा और सम्मान करें !

यह धरती ही नहीं यह विश्व ब्रह्मांड हमारा है, हम ही इस धरती को रचने वाले हैं, और हम ही इस धरती को बिगाड़ने वाले हैं। हम सभी इस सृष्टि के रचयिता के पात्र हैं, जैसे – हर जीव जंतु, पेड़ पौधे, पशु पक्षी और हर छोटे से छोटे हर एक जीव प्राणी के कण-कण के मेहनत से बनी है यह सृष्टि। और हम सभी के अच्छे आचार, विचार, और व्यवहार के तरंगों से एक ऊर्जा उत्पन्न होता है इस सृष्टि में, इसीलिए सबों को लेकर सृष्टि निर्धारित होती है।
ऐसे ऐसे मूर्ख लोग हैं कि कोई राष्ट्रीय झंडे पर अगर कोई थूक देता है, तो राष्ट्रीय भक्त पूरी बवाल खड़ा कर मारकाट करने लग जाते हैं। पर राष्ट्रीय झंडा तो राष्ट्रीय का प्रतीक है, तुम तो सड़कों पर रोज थूकते हो और कचरा करते हो, वह देश और समाज कि सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक नहीं?
यहां तक राष्ट्रीय झंडे के कपड़े के टुकड़े के नीचे, धरती पर प्राकृतिक खाद्यान्नों पर रोज हनन हो रहा प्राकृतिक संपदा नष्ट की जा रही है। पर सरकारी भेड़ों के समाज के, देश भक्तों को कोई फर्क नहीं पड़ना? पर अगर वही कोई झंडे पर थूक भी दे तो युद्ध तक हो सकता है। अपने ही देश के जंगल और जमीन से आदिवासियों को खदेड़, सरकारे अदानी अंबानी को बेच रही, पर ऐसे मूर्ख देशभक्तों को दिमाग के ऊपर से निकल जाता है?
पर वहीं अगर राष्ट्र की धरती पर पान,, गुटखा और खैनी की थूक मुंह में भर भर, जब उसी धरती पर थूकाई करते हो, तो राष्ट्र स्वच्छ, स्वच्छ भारत, शुद्ध और पवित्र हो जाता है? और भेड़ों के समाज के भक्तों का मनोबल ओर भी ऊपर उठ जाता है क्या?
और वही राष्ट्रीय ध्वज के आसपास कचरे का ढ़ेर, गंदे पानी का नाला, जमुना जैसी नदियों की जहरीले पानी, हर एक झील कचरे नाले का ढेर और जहरीले इंडस्ट्रीज के गंदे बदबूदार पानी से देश के राष्ट्रीय सम्मान ओर बढ़ जाती है ऐसे स्वच्छ भारत के भेड़ों के समाज के भक्तों का सीना चौड़ा हो जाता है?
मनुष्य साधारण प्रतीकों को इतना मूल्य दे देता है, जितना उनका मूल्य है भी नहीं जो अपनी राष्ट्रीय झंडों पर बताते हैं? उन गंदगी, शोषण और भ्रष्टाचार की बाजार कि वजह से रोज हर एक युवा वर्ग हर आधे घंटे में सुसाइड कर रहा। सिर्फ झूठ की नकाब लगा अपने अंधेपन में लोग, उन राष्ट्रीय झंडे के प्रतीकों में ही अपनी सोच को दफना देते हैं।
मनुष्य तो विचारशील प्राणी था, पर अब न रहा। उससे ज्यादा विचारशील तो आज की कंप्यूटर है, जो गलत और सही का पहचान करने में सक्षम है।
जब मनुष्य की गरिमा उसके विचार में नंही, सिर्फ उनके अनुभव में कैसे हो सकता है। धर्म और भक्ति के स्वाद तो रोम रोम में बसने चाहिए। जो धर्म को पीकर महसूस किया जा सकता है, और वही उसका वास्तविक अनुभव होगा।
पर लोकतंत्र की झूठी गरिमा और देशभक्ति, राष्ट्रीय ध्वज की झूठी गरिमा लिए मानवता को तार-तार कर रहे। वही धर्म के झूठी बुनियाद पर धर्म को नमस्तक कर रहे कि हिंदू राष्ट्र ही हमारा सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र?
पर हमारे ग्रंथों में लिखे हुए हैं कि हमारा नाता तो पूरे विश्व ब्रह्मांड के कण-कण से है। और सरकारी पूंजीवादी व्यवस्था के मूर्ख पढ़े-लिखे डिग्री धारी गधे, बत्तख और भेड़ों का समाज सिर्फ हिंदू राष्ट्र पर अड़ा है किस आधार पर?
जिस राष्ट्र के प्राकृत जीवनशैली अपनाने वाले आदिवासी जनजातियों को खदेड़, उनके पहाड़ों के जंगलों को ध्वस्त कर, खाद्यान्न बनाया जाता हो, उस देश की राष्ट्रध्वज की कैसी झूठी गरिमा?
जिस राष्ट्र ध्वज के नीचे स्वच्छ नदियों को जहरीली रसायनिक खेती द्वारा जहरीला बनाया जाता हो, और जहरीले रासायनिक जेनेटिक मॉडिफाइड खेती की जाती हो। उस परमात्मा की प्राकृतिक स्वस्थ व्यवस्था के पशु-पक्षी, जीव-जंतु, छोटे-छोटे कीड़े मकोड़े नष्ट हो रहे, उस देश की कैसी झूठी गरिमा?
जिस राष्ट्रध्वज के नीचे धर्म के नाम पर मानवता की एकता और अखंडता के आपसी भाईचारे को ही विखंडित किया जाता हो, उस देश की कैसी झूठी गरिमा?
जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय माफियाओं और उनके विश्व भर के गुलाम, दलाल सरकारों ने मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे और कथावाचकों के उन धर्म के व्यवसायिक केन्द्रों में तब्दील कर उनकी आस्था और विश्वास के साथ खिलवाड़ किया जा रहा। जातिवाद, संप्रदायिक दंगा, फसाद, शोषण और भ्रष्टाचार को ही धर्म घोषित कर दिया है। बिल्कुल वैसे ही जैसे विकलांग को दिव्यांग घोषित कर दिया हो, उस देश की राष्ट्रवाद की कैसी भक्ति?
इसीलिए इस धरती की प्राकृतिक व्यवस्था की सुरक्षा करें और पर्यावरण अनुकूल कृषि व्यवस्था को उज्जवल बनावे। धरती की सुरक्षा और प्रकृति की सुरक्षा में ही मानवता का सम्मान है। और हमारी तो सृष्टि चक्र के हर जीव प्राणी से हमारा नाता है, हम सभी पूरे विश्व ब्रह्मांड, तारे और नक्षत्र से जुड़कर पूर्ण होते हैं, उन सभी के बिना हम सब अधूरे हैं, इसीलिए सब का सम्मान करें।
~ सरिता प्रकाश 🙏✍️🌱💧🐛🐝🦋🐞🦢🦆🦩🐦🦜🐧🦚🦉🕊️🦦
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