क्या उपयोगी होने की योग्यता ही है सर्वोच्च योग्यता ?

योग्यता पर बहुत बल दिया गया है। लगभग सभी समाज में, परिवार में, सरकार में, पार्टियों और संगठनों में योगयता को बहुत महत्व दिया जाता है। प्रतियोगी परीक्षाएँ होती हैं, प्रतियोगिताएं होती हैं, सर्टिफिकेट्स, डिप्लोमा, डिग्रियाँ होती हैं प्रमाणित करने के लिए कि कौन योग्य है और कौन अयोग्य।
क्या समाज, सरकार, परिवार, स्कूल, कॉलेज इस योग्य हैं कि वे प्रमाणित कर पाएँ कि कौन योग्य है और कौन अयोग्य ?
यदि समाज और सरकारों की नजर से देखें, तो पाएंगे की सर्वोच्च योग्यता है माफियाओं और लुटेरों के सामने नतमस्तक रहकर चाकरी और गुलामी करने की योग्यता के साथ बीवी-बच्चे पालना, भजन-कीर्तन करना, स्तुति वंदन करना,, पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज करना और मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जीने की योग्यता ही सर्वोच्च योग्यता है।
इन योग्यताओं को हम माफियाओं और लुटेरों के लिए उपयोगी होने की योग्यता कहें या सहयोगी होने की योग्यता ?
मानव का जन्म मवेशियों की तरह कुछ मुट्ठी भर लुटेरों और माफियाओं के लिए उपयोगी होने के लिए हुआ है या सहयोगी होने के लिए ?
यदि हम दुनिया की सर्वाधिक लोकप्रिय और सम्मानित शिक्षण पद्धतियों पर नजर डालें, तो पाएंगे कि सभी इंसान को उपयोगी होना सिखाते हैं, सहयोगी होना नहीं। दुनिया में हर कोई दूसरे का उपयोग करना चाहता है, सहयोगी होना नहीं सिखाता।
उपयोगी होने और सहयोगी होने में बहुत बड़ा अंतर होता है।
राजनैतिक पार्टियां और सरकारें उपयोग हैं अपने भक्तों, समर्थकों का। सत्ता मिल जाने के बाद भक्तों और समर्थकों को झूठे आश्वासनों और 15-15 लाख वाले अच्छे दिनों के सपनों के कुछ नहीं मिलता। हाँ जुगाली करने के लिए 5-5 किलो फ्री का राशन, फ्री की बिजली, फ्री का पानी अवश्य मिल जाता है। बदले में आपसे छीन लिया जाता है, आपकी मौलिकता का अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार, अभिव्यत्क्ति का आधार, विरोध का अधिकार और बना दिया जाता है पालतू दुधारू मवेशी।
जब तक आपको निचोड़कर दूध और खून निकाला जा सकता है, तब आपको बर्दाश्त किया जाता है, लेकिन जैसे ही दूध और खून मिलना बंद हो जाता है, कसाइयों के हाथो बेच दिया जाता है या स्वयं ही मौत के घाट उतार देते हैं मोबलिंचिंग, आगजनी करवाकर। क्योंकि आप उनके लिए उपयोगी हैं और जो उपयोगी होता है उसका उपयोग किया जाता है और जैसे ही उपयोग करने योग्य नहीं रहा, उठाकर बाहर फेंक दिया जाता है कबाड़ की तरह।
बढ़ते वृद्धाश्रम और अनाथालय स्वयं प्रमाण हैं कि जो उपयोगी नहीं रहे, उन्हें अपने घरों में रखने का चलन समाप्त हो रहा है। पहले वृद्ध और अयोग्य व्यक्ति भी घर में रह लेता था और वृद्धों का तो विशेष सम्मान हुआ करता था। लेकिन आज न तो वृद्धों का सम्मान होता है और न ही शिक्षकों, गुरुओं का। क्योंकि अब ये सब उपयोगी मवेशी मात्र हैं, उपयोग करो और फेंक दो।
और ऐसे समाज, सरकार और परिवारों से प्राप्त योग्यता का प्रमाणपत्र वास्तव में योग्यता का नहीं, उपयोगी मवेशी होने का प्रमाणपत्र होता है। ये प्रमाणपत्र यह प्र्माणित होने के लिए होते हैं कि प्रमाणपत्र धारी व्यक्ति एक प्रशिक्षित नौकर या गुलाम बनने की योग्यता रखता है।
जिनके पास समाज, सरकार, परिवार, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों से प्राप्त प्रमाणपत्र नहीं होता, क्या वे अयोग्य होते हैं ?
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