सिपाही और क्रांतिकारी वही अच्छे लगते हैं जो शहीद हो जाते हैं

यह है मेरे दस वर्षों की मेहनत का परिणाम !


दस वर्ष तो इस एक प्रोफ़ाइल (विशुद्ध चैतन्य) पर हुआ है, इससे पहले वाले सभी प्रोफ़ाइल डिलीट करवा दिये मेरे चाहने वालों ने शिकायत कर कर के।
2015 के बाद से अब तक विश्वभ्रमणकारी महान जुमलेबाज चक्कर-भर्ती सम्राट की बकवासों के पर मेरे लिखे कटाक्ष वाले 3000 से अधिक पोस्ट डिलीट करवा दिये। क्योंकि फ़ेसबुक इंडिया पर जुमलेबाज के चाटुकारों और गुलामों का आधिपत्य है और वे अपने आराध्य जुमलेबाज के विरुद्ध कुछ भी बर्दाश्त नहीं करते।
फिर आया बिलगेट और उनके सहयोगियों द्वारा फैलाया गया प्रायोजित महामारी के आतंक का दौर। फेसबुक सबसे अहम रोल निभा रहा रहा था प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाने में। और चूंकि उसी के प्लेटफार्म पर मैं प्रायोजित महामारी के आतंकियों और उसकी फर्जी सुरक्षा कवच का विरोध कर रहा था, तो मेरी आईडी ही सस्पेंड कर दी 3 महीने के लिए। जिसके कारण मुझे नयी आईडी बनानी पड़ी Vishuddha Reborn के नाम पर।
तीन महीने बाद आईडी खुली भी तो 90 दिनों के लिए रीच डाउन कर दी गयी। और उस 90 दिनों में से एक दिन भी कम नहीं हुआ पिछले डेढ़ वर्षों में। आज तक 90 दिन पर ही अटका हुआ है।
इस प्रकार यह प्रमाणित हो जाता है कि अभियव्यक्ति और विरोध व्यक्त करने की जो स्वतन्त्रता संविधान से हमें प्राप्त था, वह छीन लिया गया फार्मा माफियाओं, भूमाफियाओं, खनन माफियाओं व अन्य माफियाओं और उनकी रखैल सरकारों द्वारा। लेकिन मूर्ख जनता को थाली, ताली और बर्तन बजाकर नाचने, गाने से ही फुर्सत नहीं।
ना तो स्वयं विरोध करने की हिम्मत करते हैं, न हम जैसे विद्रोहियों का सहयोग या समर्थन करते हैं। फिर पड़ोसी के घर शहीद भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद खोजेंगे।
कहते है कि सिपाही और क्रांतिकारी वही अच्छे लगते हैं, जो दुनिया भर के कष्ट सहते हुए शहीद हो जाते हैं। सहयोग मांगे तो भिखारी और खराब भोजन की शिकायत करें तो पागल कहलाते हैं।
मुझे अमीरों से दोस्ती रखना बिलकुल पसंद नहीं !
जानते हैं क्यों ?
क्योंकि उनहोंने जो भी कमाया है, वह उनके अपने परिवार के लिए है। वे अपनी अमीरी और महंगी महंगाई गाड़ियों, सुविधाओं के विषय में बताएँगे, जिससे मुझे या मेरे अभियान को कोई लाभ नहीं। उनके अमीर होने से मेरे आश्रम को भी कोई लाभ नहीं। ना तो वे मेरे विचारों से सहमत होंगे, ना वे मेरा किसी भी प्रकार का सहयोग करेंगे।
मेरे लेख भी उनके सामाजिक, पारिवारिक दायरों से बाहर होते हैं, इसलिए वे शेयर भी नहीं करते। और कर भी दिये, तो अमीरों के समाज में किसी के समझ में आने वाला नहीं।
अब आप ही बताइये अमीरों की दोस्ती से मुझे या मेरा अभियान को क्या लाभ और मुझसे उन्हें क्या लाभ ?
कहते फिरते हैं लोग कि कॉपी पेस्ट वाला ज्ञान चेप रहा है
मध्यमवर्गीय आध्यात्मिक, धार्मिक परिवारों की नजर में नकारात्मकता फैलाने वाला व्यक्ति हूँ मैं। उनका कहना है माफियाओं और उसकी गुलाम सकारों के विरुद्ध लिखने की बजाय बैठकर ध्यान करो, भजन-कीर्तन करो।
अक्सर लोग कहते फिरते हैं कि कॉपी पेस्ट वाला ज्ञान चेप रहा है। और ऐसा कहने वाले अधिकांश वही होते हैं, जो स्वयं को शास्त्रों का ज्ञाता समझते हैं, गीता, कुरान, बाइबल का रट्टा लगा रखा होता है, या फिर गुरुओं से कहीं सुनी बातों को तोतों की तरह रटे चले जा रहे होते हैं।
बहुत से लोग तो ऐसे भी मिले मुझे, जिन्हें यही नहीं पता कि जिन गुरुओं की वे आरधना करते हैं, नामजाप करते हैं, स्तुति वंदन करते हैं, उनका मिशन क्या था, वे क्यों अलग पंथ या संप्रदाय बनाए थे।
लगे हैं नामजाप करने में, स्तुति-वंदन करने में, अपने अपने गुरुओं, पंथों की किताबें बांटने में कि हमारी किताबें पढ़ो, तो जीवन बदल जाएगा।
मेरी समझ में आज तक नहीं आया कि जिन किताबों को पढ़कर बड़े बड़े शास्त्रियों, आलिमों, हाफ़िज़ों, मौलवियों, पादरियों, पंडितों, पुरोहितों, साधु-संतों का जीवन नहीं बदल पाया, जो आज भी पैसों के पीछे दौड़ रहे हैं, जो आज भी राजनेताओं और राजनैतिक पार्टियों के तलुए चाट रहे हैं ईमान, ज़मीर, जिस्म सब गिरवी रखकर, तो कोई और कैसे बदल सकता है उन किताबों को पढ़कर ?
क्या जो धार्मिक ग्रन्थों को रटे और रटाए चले जा रहे हैं तोतों की तरह, वे सब भी कॉपी-पेस्ट वाले ज्ञानी नहीं हैं ?
उन्हें तो यह भी नहीं समझ में आया जा तक कि जिन धार्मिक ग्रंथो को वे रटे चले जा रहे हैं, वे सब राजनेताओं के लिए समाज को परस्पर लड़ाने और दंगा-फसाद करने के काम आते हैं। ना कि उन्हें पढ़कर कोई माफियाओं और देश को लूटने और लुटवाने वालों के विरुद्ध आवाज उठाने योग्य बन पाता है।
विद्रोह वही करते हैं जिनमें सहनशक्ति बहुत कम होती है
कोई इक्का दुक्का कहीं विरोध करने के लिए खड़ा हो जाये, तो उसमें भी धार्मिक ग्रंथो और गुरुओं की वाणी का कोई योगदान नहीं है। सभी प्राणियों में कुछ प्राणी ऐसे अवश्य होते हैं, जो अधर्म, अन्याय, शोषण, अत्याचार को सहन करने की क्षमता नहीं रखते। अर्थात उनकी सहनशक्ति बहुत कम होती है, इसलिए वे विद्रोह कर देते हैं। और फिर माफियाओं और लुटेरों के हाथों मारे जाते हैं या फिर जेलों में ठूंस दिये जाते हैं। बाकी धार्मिक ग्रन्थों का रट्टा लगाने वाले विद्वानों, दुनिया भर की विलायती डिग्रियाँ बटोरे बैठे विद्वान माफियाओं की चाकरी और गुलामी करके स्वयं को धन्य मानते हैं।
मेरे लेख बहुत चोट पहुँचाते हैं मैं जानता हूँ। मैं यह भी जानता हूँ कि आप लोग विवश हैं माफियाओं और लुटेरों की चाकरी करने के लिए। क्योंकि यदि माफियाओं और लुटेरों की चाकरी नहीं करेंगे, तो बीवी बच्चे और परिवार कैसे पालेंगे ?
सीख इतनी गहरी बैठ गयी है कि स्वरोजगार करने वाले लोग निकृष्ट दिखाई देते हैं
फिर मान सम्मान भी तभी मिलता है समाज में जब माफियाओं और देश को लूटने और लुटवाने वालों की चाकरी करो यूपीएससी, नीट क्लियर करके, #MBA, #MBBS, #MCA क्लियर करके। यदि मेरी बातों को स्वीकारेंगे, तो नौकरी चली जाएगी और नौकरी चली जाएगी तो फुटपाथ पर आ जाओगे। और फिर बचपन से ही सिखाया गया है कि मानव का जन्म चाकरी और गुलामी करने के लिए होता है।
यह सीख इतनी गहरी बैठ गयी है कि स्वरोजगार करने वाले लोग निकृष्ट दिखाई देते हैं और चाकरी करने वाले लोग श्रेष्ठ दिखाई देते हैं। अपने घर का काम करने वाले लोग नौकर दिखाई देते हैं, और सरकार या मल्टीनेशनल कंपनी की चाकरी करने वाले लोग मालिक दिखाई देते हैं।
जानते हुए भी लिखता हूँ कि लिखने से मेरा ही अहित होगा
यह सब समझता हूँ अच्छी तरह से, फिर भी लिखता हूँ कटाक्ष। जानता हूँ कि मुझे पढ़ने वाले अधिकांश लोग सरकारी या मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं। बहुत से लोग किसी न किसी पार्टी के कार्यकर्ता या नेता भी हैं और कई लोग तो ऐसी पार्टियों के भक्त और समर्थक हैं, जो देश को लूटने और लुटवाने में दिन रात व्यस्त हैं। फिर भी लिखता हूँ कटाक्ष क्योंकि और कुछ लिखना नहीं आता।
लिखता हूँ चोट पहुंचाने के लिए ताकि सोई हुई आत्मा जागे लोगों की। लिखता हूँ यह जानते हुए भी कि मुझे कोई लाभ नहीं होने वाला क्योंकि मेरे लेखों से मनोरंजन नही होता कुठाराघात होता है आत्मा पर। जानता हूँ कि अधिकांश शुभचिंतक मुझे पढ़ना छोड़ चुके हैं, क्योंकि वे विवश हैं और मेरे लेखों को पढ़ने से उन्हें कोई लाभ नहीं होने वाला।
यह जानते हुए भी लिखता हूँ कि लिखने से मेरा ही अहित होगा, लेकिन जिन्हें जगाने के लिए लिखता हूँ, उनपर कोई असर नहीं पड़ेगा। और पड़ा भी असर आज से हज़ार दो हज़ार वर्ष बाद, तो उस असर का कोई लाभ भी नहीं। यह तो बिलकुल वैसी ही बात हो जाएगी जैसे गैलीलियो की हत्या करने के पाँच सौ वर्ष बाद इसाइयों के धर्मगुरुओं ने अपने अपराध के लिए क्षमा माँगा। यह तो बिलकुल वैसी ही बात हो जाएगी, जैसे प्रायोजित महामारी के आतंकियों और फर्जी सुरक्षा कवच के निर्माताओं के गुलाम माफी माँगें हज़ार वर्ष बाद सुनियोजित सामूहिक नरसंहार के लिए।
क्या कोई लाभ होगा तब मांगे गए क्षमा/माफी से ?
फिर भी लिखता हूँ और लिखता ही रहूँगा जब तक जीवित हूँ।
और हाँ कॉपी पेस्ट वाले प्रवचन, सत्यवान सावित्री की कथा, रामायण, कुरान, बाइबल की कथा, शहीदों की कथाएँ मनभावन होती हैं, सदियों तक सुनाते रटाते रहो लोग भेड़-बकरी ही बनेंगे। लेकिन मेरे लेख चोट पहुंचाएंगे और बहत गहरे चोट पहुंचाएंगे। क्योंकि मेरे लेख मलहम लगाने या भेड़ बकरी बनाने के लिए नहीं होते। मुर्दा हो चुके लोगों को ज़िंदा करने के लिए होते हैं और यह काम बहुत कठिन और आत्मघाती है।
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