मैं कोई धर्मगुरु नहीं हूँ और ना ही हूँ किसी भी किताबी धर्म का ज्ञाता

कुछ लोगों ने भ्रम पाल रखा है कि मैं कोई धर्मगुरु गुरु हूँ जबकि मैं किसी भी किताबी धर्म का न तो ज्ञाता हूँ और न ही गुरु हूँ | हाँ मानव के रूप में जन्म लिया इसलिए मानवता को समझता हूँ, जानता हूँ और यह स्वाभाविक है | क्योंकि मैं पैदा होने के बाद से हमेशा यही प्रयास करता रहा कि मैं किसी दड़बे में कैद न हो जाऊं, थोपी गई धार्मिकता से दूर रहूँ और ईश्वर प्रदत्त धर्म व ज्ञान के अनुसार ही अपनी जीवन यात्रा करूँ |
पहले भी कई बार कह चुका हूँ कि मुझे धार्मिकगुरु तो बिलकुल भी न कहें | धर्म यानि जो धारण किया जा सके, ढोया जा सके, थोपा जा सके…. और ऐसे थोपी जाने वाले धर्मों के गुरु ही कहलाते हैं आधुनिक समाज में धर्मगुरु | उनके पास जो ज्ञान होता है वे किताबी होते हैं, रट्टामार ज्ञान होता है |
इसलिए कहता हूँ कि मैं कोई धर्मगुरु नहीं हूँ क्योंकि मैं किताबी ज्ञान नहीं बाँटता और न ही किताबी ज्ञान थोपता हूँ किसी पर | न ही नफरत फैलाने का कारोबार करता हूँ और न ही दंगे-फसाद करवाने के लिए लोगों को उकसाता हूँ |
हाँ आध्यात्मिक कह सकते हैं लेकिन गुरु नहीं क्योंकि मैंने कोई शिष्य या शिष्या नहीं बनाया है | बिना शिष्य या शिष्या के कोई गुरु कैसे हो सकता है ?
यह और बात है कि कुछ चाहने वाले, जिनको मेरी पोस्ट समझ में आतीं हैं और वे मुझसे कोई प्रेरणा पाते हैं, इसलिए यदि वे लोग मुझे गुरूजी कहते हैं, स्वामीजी कहते हैं तो मैं उनको रोक कैसे सकता हूँ ?
मैं तो उनको भी नहीं रोक सकता जो मुझे ढोंगी, पाखण्डी, पाकिस्तानी, मुल्ला, मुफ्तखोर, हरामखोर, कामचोर…आदि संबोधनों से पुकारते हैं।
तो जो लोग मुझे गुरूजी कहते हैं वे एकलव्य हैं… लेकिन मैं गुरु नहीं हूँ |
फिर आत्मिक और अध्यात्मिक ज्ञान का कोई पैमाना भी नहीं है। क्योकि जैसे ही आध्यामिक ज्ञान का पैमाना तैयार हो जायेगा, आध्यात्म समाप्त हो जाएगा और किताबी धार्मिकता अर्थात साम्प्रदायिकता प्रकट हो जाएगा | फिर भी यदि आपको कोई आध्यात्मिक गुरु ही खोजना है जो प्रमाणित हों, तो कृपया जीवित में न खोजें |
क्योकि जीवित आध्यात्मिक व्यक्ति निश्चित नहीं होते और जो निश्चित होते हैं, वे किताबी धार्मिक होंगे, साम्प्रदायिक होंगे, जातिवादी होंगे, लेकिन आध्यात्मिक नहीं हो सकते |
ओशो को मैं आध्यत्मिक गुरु मानता हूँ क्योंकि वे निश्चित नहीं थे, वे निरंतर गतिमान थे | उनकी शिक्षाओं में नवीनता थी, उर्जा थी….लेकिन मैंने उनको केवल सुना, पढ़ा, समझा और आगे बढ़ गया | क्योकि वे ही एकमात्र ऐसे गुरु थे, जिन्होंने आगे बढ़ना सिखाया | कहा कि आगे बढ़ो, जितना मैंने जाना तुम उससे आगे जानो, बहुत कुछ है जानने को इसलिए ठहर मत जाना | जबकि किताबी धार्मिक गुरु आपको किताबें थमा देंगे, कुछ नाम जपने को दे देंगे, कोई मन्त्र रटा देंगे और बस उसी किताब और जाप में आपका जीवन बीत जाएगा | आपकी भीतर की यात्रा समाप्त कर दी जायेगी और जीवन भर भेड़ों की तरह हांके जाते रहेंगे क्योंकि आप तो यह भी भूल चुके होते हैं आप स्वयं ही ईश्वर के अंश हैं |
आपको यही समझाया जाता है कि ईश्वर कोई अलग चीज है जो आसमान में कहीं रहता है, किसी स्वर्ग या जन्नत में रहता है सारी ऐय्याशियाँ करता है…. और मानव उसके आसपास भी नहीं टिकता | आपको सिखाया जाता है कि ईश्वर ने दुनिया में नाम जपने, उसकी स्तुति-वंदन, जय-जयकार करने के लिए भेजा है |
आपको समझाया जाता है कि ईश्वर उसी से प्रसन्न होता है जो सारे काम छोड़कर बैरागी बन जाए और उसकी स्तुति, प्रशंसा करता दुनिया भर में घूमता रहे | ऐसी धार्मिकता है जो आपको स्वयं से दूर कर देती है, ईश्वर से दूर कर देती है और गुलाम बना देती है धर्मों के ठेकेदारों का | फिर वे ठेकेदार धर्म और जाति के नाम पर इन धार्मिक भेड़ों को आपस में लड़ाते हैं मुर्गों की तरह और तमाशा देखते हैं | जब ये भेड़ें आपस में कट मर जाती है तो आराम से बैठकर कबाब बनाकर खाते हैं, बेचते हैं और मुनाफा कमाते हैं |
अध्यात्म की दुनिया बहुत विशाल है और इसकी कोई थाह ही नहीं है | कब कौन गुरु बन जाए, कौन शिष्य बन जाए कोई नहीं कह सकता | हाँ धार्मिक दुकानों और स्कूलों में यह सब संभव है कि किसी निश्चित व्यक्ति को धर्म-गुरु घोषित कर दिया जाए… जैसे स्कूल में टीचर होते हैं, प्रोफेसर होते हैं…..| एक निश्चित विधि है, प्रोसेस है, पढ़ाई है, डिग्री है |
लेकिन आध्यात्मिक मार्ग में तो कोई अनपढ़ भी गुरु बन जाता है यदि शिष्य में योग्यता हुई गुरु को पहचानने की | पशु-पक्षी भी गुरु बन जाते हैं, ईश्वर बन जाते हैं यदि भक्त में योग्यता हुई समझने की पहचानने की | यहाँ कुछ भी फिक्स नहीं है |
अध्यात्म निरंतर गतिमान है हर क्षण नवीनता है, हर दिन आप नए होते जाते हैं और पुराना खोता जाता है | जो आप कल थे वह आज नहीं रहेंगे और जो आज हैं वह कल नहीं रहेंगे | आप नए होते जायेंगे | आपकी जो उम्र आज है, वही उम्र कल नहीं रहेगी, जो जवानी आज है, वही कल नहीं रहेगी, जो शरीर आपके पास आज है, वही कल नहीं रहेगा |
क्योंकि नवीनता प्रकृति का नियम है और परिवर्तन के बिना नवीनता नहीं आती | जबकि किताबी धार्मिकता परम्परा है | स्थाई है उसे बदला नहीं जा सकता | जो ईश्वरीय किताबों में लिख दिया गया है वही ढोना है, फिर स्वयं ईश्ववर ही आकर बदलना चाहे तो नहीं बदल सकता |
आपको इतिहास में जीना होगा, आपको नवीनता, परिवर्तन से डरना होगा तभी आप धार्मिक कहलायेंगे | और जो जितना अधिक डरा हुआ है, भयभीत है वह उतनी ही अच्छी तरह से दुनिया को डरा सकता है, भयभीत कर सकता है इसलिए उसे धर्मगुरु कहा जाता है | क्योंकि जब तक लोग भयभीत रहेंगे, तब तक उनको भेड़-बकरियों की तरह हाँ जा सकेगा, उनको मुर्गों भेड़ों की तरह आपस में लड़ाया जा सकेगा धर्म और जाति के नाम पर और उनकी चिताओं पर राजनैतिक रोटियाँ सेंकी जा सकेंगी |
मैं धर्मगुरु नहीं हूँ, आध्यात्मिक पथ पर हूँ इसलिए पथिक हूँ | इस जीवन यात्रा में जो कुछ अनुभव करता हूँ, देखता हूँ, वह भी बाँटता जाता हूँ | जो सोये हुए हैं, उनको जगाने का प्रयास करता हूँ कि भोर भई अब तो जागो ! लेकिन जो सोना चाहते हैं उनपर जोर आजमाइश नहीं करता क्योंकि जो जानबूझ कर सोने का ढोंग कर रहे हैं, उन्हें जगाया नहीं जा सकता | मैं किसी से नहीं कहता कि मेरे पीछे आओ, बल्कि मैं कहता हूँ कि स्वयं को जान जाओ |
~विशुद्ध चैतन्य
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