सारे मतभेद सिर्फ मानव जीवन में ही क्यों ?

भगवान तो सभी में है, वे हर रूप, रंग में रहते हैं। हर, पशु पक्षी, पेड़ पौधे और हर एक जीव प्राणी में भी रहते हैं।
इस विश्व ब्रह्मांड के हर कण कण में, हमारे इर्द गिर्द समाये है तो फिर मानवता का इतना भेद और विभेद क्यों?
सभी जीव प्राणियों को लेकर इतनी मतभेद और हेय दृष्टि क्यों?
हम मानव सदाहरण क्यों नहीं हो जाते, परिवार, देश और दुनिया में, जीवन भर असाधारण सिद्ध करने की चेष्टा में क्यों लगे रहते हैं?
हम डिग्री धारी हैं, हम साइंटिस्ट हैं, हम इंजीनियर हैं, हम संत हैं और यह संत, महंत हैं, ले देकर मानवता के लिए कौन सा उद्धार का कार्य किया है?
किसी ने भी निस्वार्थ सेवा करने की जरूरत महसूस की? अगर नहीं तो फिर कैसी धार्मिकता, नैतिकता और आध्यात्मिकता?
सिर्फ मानव जाति के नाम पर पदवी, पद, प्रतिष्ठा, नाम और शोहरत में ही जिंदगी खत्म कर देते हैं।
हमने तो स्वीकार कर लिया है कि मैं एक साधारण हूं जैसे फूल, पत्ते, झरने, पत्थर और एक चट्टान के साथ, हम उस विराट सत्ता के साथ मिलकर हमारी एक छोटी सी दुनिया है।
यह सादगी कुछ विशिष्ट नहीं, यह अपने आप में बहुत ही क्रांतिकारी गुणधर्म है।
जब हम मानव खुद को स्वीकार कर लेते हैं कि मैं कोई विशिष्ट नहीं, मैं भी उस विश्व ब्रह्मांड के विराट फूल, पत्तों, पहाड़ों, नदियों, झरनों, पशु पक्षियों और अनंत जीवाणु के साथ मिलकर, अपनत्व से भरा हमारा एक स्वतंत्र जीवन है। मेरा यहां कुछ खास विशिष्ट जीवन नहीं। क्योंकि हम अनंत से जुड़े हैं तो हम क्षुद्र नहीं, सबों को लेकर, विराट से जुड़कर, जब हम विराट हो जाते हैं, हम वहां एकल सत्ता रह नहीं सकते।
इस आधार से हम पूरे विश्व बंधुत्व से जुड़ एक हो जाते हैं। जिसके कारण हमारी क्षमताएं असीम हो जाती है, और हम काफी ऊर्जावान हो जाते हैं। और यही मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।
प्रकृति के हर जीव प्राणी के साथ घुल मिलकर, शुभ दृष्टि, शुभ विचार भर, प्रेम, सेवा और सत्कर्म करें। और किसी भी जीव प्राणी के साथ हो रहे, शोषण, भ्रष्टाचार और अत्याचार पर खुलकर मुखर हो। अपने इस धरा पर खुद के होने का एहसास दिला, सभी जीवो के प्रति शुभ विचार भरे।
तभी आप सामाजिक प्राणी है, नहीं तो आप असामाजिक प्राणी है, नहीं तो आपके मानव होने और न होने पर इस धरती पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
यह हिंदुत्व के ठेकेदार मानवता को विभेदों में बांटने वाले धार्मिक, आध्यात्मिक और नैतिकता से इनका कोई लेना देना नहीं। यह सभी अंतरराष्ट्रीय पूंजीवादी व्यवस्था के बिके हुए लोग अध्यात्म के नाम पर ढोंग कर पूरी मानवता को गुमराह कर रहे। अपने-अपने सभी धर्म के नाम पर रिलिजन संप्रदायों की व्यवसायिक
केन्द्र चला रोटी सेक रहे।
“ये धर्म के ठेकेदार और माफियाओं तुम कान खोल के सुन लो, हिंदूत्व बनने का नाटक जितना भी कर लो।
अंततः स्वार्थी, क्षुद्र, शूद्र, अछूत और पूंजीवादी व्यवस्था के दलाल ही रहोगे।
इसका सनातन धर्म से कोई लेना-देना नहीं और न ही धर्म से कोई लेना-देना!”
मानव समाज एक है एक ही रहेगा, मानव समाज को बांटने वाले, खंड विखंडित करने वाले, समाज विरोधी ही नहीं बल्कि परमात्मा विरोधी हैं।
और सिर्फ मानव समाज ही नहीं पूरे विश्व ब्रह्मांड से हमारा नाता है, हम सब परम सत्ता से जुड़कर हर कण में समाहित है।
~ @सरिता प्रकाश🙏🌱💚💧🐦🐛🦆🦋🐞🐧🦚🦉🐜🐝☘️🕊️🦜🌴🦩🌳🕷️🦂
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