अन्नपूर्णा देश में प्रकृति के प्रति निस्वार्थ प्रेम नहीं, सिवाय जहरीले खेती और बाजारीकरण के ?

प्रकृति तो हमें निस्वार्थ देती है, हम स्वार्थी और राक्षसी मानव उसके बदले में जहर के साथ, बीजों को नपुंसक बना, बाजारीकरण करते?
इसी उद्देश्य से इस धरा पर मानव रूप में जन्म हुआ था कि प्रकृति के स्वर्ग भरी धरा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण करेंगे और जाकर प्रकृति की संपदा को नष्ट करेंगे?
हमारी धरती के श्री कृष्ण भी प्रकृति प्रेमी थे, अपनी बांसुरी से हर जीव-जंतु और हर एक प्राणी को आनंदित करते और हर किसान के घरों से माखन चोर लीलाएं करते। कृष्ण के साथी बलराम तो एक प्रकृति वादी प्रेमी किसान थे।
पर आज दुर्भाग्य है उस आध्यात्मिक देश के लोगों को प्रकृति से प्रेम नहीं, जंगलों से प्रेम नहीं, पेड़ पौधो से प्रेम नहीं, बागवानी के फूलों भरी खुशबू से प्रेम नहीं, हरे भरे प्राकृतिक सब्जियों से प्रेम नहीं?
क्योंकि सिर्फ पर्यटन केंद्रों से प्रेम है और पूंजीवादी सरकारों की भक्ति से फुर्सत मिले तो न कोई प्रकृति से प्रेम करें?
इसीलिए पूंजीवादी व्यवस्था की मॉल्स की जहरीली फ्रेश सब्जियां काफी धड़ल्ले से बिक रही, हर शहरों में या छोटी शहरों में अब मॉल्स की सब्जियां लोग खरीदना ज्यादा पसंद करते हैं।
सारे भक्ति में रमे लोग अपने-अपने भगवान के मंदिरों और घर के पूजा पाठ के लिए जो चढ़ावा चढ़ाते हैं। विश्व की सभी फल सब्जियां, जहरीले रासायनिक पदार्थों से उगाने की वजह से बहुत सारे जीव-जंतु पेड़-पौधे पशु-पक्षी नष्ट हो रहे। उनसे उनके भगवान खुश और संतुष्ट हो कैसे सकते हैं?
सभी अपने मंदिरों और अपने घर के देवी देवताओं को जहरीले फूलों की मालाएं पहना रहे?
अरे उससे भगवान खुश और संतुष्ट हो कैसे सकते हैं, जिन जहरीले फूलों की खेती से पूरी प्रकृति की व्यवस्था तहस-नहस हो रही?
और यह जो सारे धर्म के नाम पर नारायण सेवा करवा रहे हैं लोग, उन जहरीले रासायनिक खेती से उगाए, अनाज जो विटामिन युक्त ही नहीं। बल्कि जहर युक्त है, उससे किसी गरीब या किसी नारायण का स्वास्थ्य ठीक हो कैसे सकता है बल्कि हजार बीमारियों से ग्रसित की जा रही है।
अगर परमात्मा के प्रति इतना ही प्रेम और भक्ति और सेवा के विचार हैं, तो फिर किचन गार्डिंग करें। अपने घर के आस-पास फूल पौधे सब्जियां लगाएं। और अगर आसपास में जमीन मिल सके, तो जमीन लेकर छोटी सी बागवानी खेती करें। जिससे हर एक पशु-पक्षी, जीव-जंतु स्वास्थ्य दायक अनाज खाकर, धन्य धन्य हो सके और वही नारायण सेवा है।
जो भी खेती से जुड़ना चाहते हैं, वह सिर्फ प्रकृति के सेवा की वजह से नहीं जुड़ना चाहते। यह कैसी दुनिया लोगों ने बनाई है, सभी खेतों से जुड़कर सिर्फ पैसे कमाना चाहते हैं। प्रकृति से सब कुछ लूटना चाहते हैं। खेतों से सिर्फ बाजारीकरण करना चाहते हैं?
आज इस धरती पर बिना बाजारीकरण के कोई प्रकृति से प्रेम क्यों नहीं करता?
क्यों कोई बिना बाजारीकरण के सब्जी और पेड़ पौधे फूल क्यों नहीं लगाना चाहता?
क्या प्रकृति से प्रेम कर उगाने से वह भूखा मर जाएगा?
यह कैसी लूट की दुनिया माफियाओं की दुनिया बन चुकी है?
क्यों कोई अपनी मां की तरह निस्वार्थ सेवा इस प्रकृति की धरा से नहीं करता और न करना चाहता है?
यह कैसी राक्षसी और शैतानी दुनिया लोगों ने अपने हाथों से गढ़ डाली? आज की पूंजीवादी राक्षसी व्यवस्था की शिक्षा में कहां कमी रह गई? इसे जागरूक और चैतन्य लोगों को ढूंढ निकालना होगा?
पर जर्मनी में रहकर परमात्मा के बगिया में उस स्वर्ग से फार्म को,
हम लोगों ने हमारे अंदर बैठे परमात्मा की असीम कृपा और क्षमताओं से, बिना किसी नौकर चाकर के, हरी भरी बगिया में अपने हाथों से सब्जी, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, जीव-जंतु और छोटी सी छोटी कीड़े मकोड़े को विकसित करने के लिए हमने नव्य-मानवतावाद आधारित निस्वार्थ सेवा व्यवस्था बनाई है। हमने प्राकृतिक, आत्मनिर्भर, स्वतंत्र व्यवस्था बना डाला।
🦜हर पेड़ पर चिड़ियों की चरचाहट हमें निस्वार्थ गीत सुनाती है,
🐝🐞🪲🦋🐛यह छोटे छोटे जीव हमारे प्रकृति के संरक्षक और हमारे फार्म के मजदूर निस्वार्थ सेवा देते हैं,
🌷🍏🍒🍓हर पेड़ और पौधे फल, मूल हमें निस्वार्थ फल देते हैं,
🌱🌳हर पेड़ जंगल के स्वर्ग भारी धरा हमें निस्वार्थ शुद्ध हवा हमारी सांसों में भर देती है,
☀️🌄🌙✨ये सूरज चांद सितारे का रोज सुबह को उगना और हमें जगाना, और शाम ढल जाना हमें जीवन के स्वास्थ्य दायक नींद को निस्वार्थ पूर्ण करता है,
और पेड़ पौधों हर एक प्राणी को भी अपनी रोशनी से चार चांद लगा देना, क्या हमारे लिए यह सब काफी नहीं? क्या सबों को हमेशा दिमाग में व्यवसायीकरण करने के लिए ही खेती के सोच रखनी चाहिए?
यह जो प्रकृति की संपदा हमें निस्वार्थ मिलती है, उसके बदले में हम मानव इस स्वर्ग की धरा पर क्या मूल्य चुकाये इस पर सोच विचार करनी चाहिए!
क्यों नहीं हम अपने जीवन में भी संकल्प लें, कि हम भी इस प्रकृति की धारा को निस्वार्थ प्रेम भरी नजरों से देखें, हर जीव प्राणी को शुभ दृष्टि प्रदान करें, उनकी संरक्षण करें, प्रकृति को जहर मुक्त करें, और मानवता को स्वास्थ्य दायक जीवन प्रदान करने का संकल्प लें, यही मानव धर्म है बुद्धिजीवी होने का मूल्य अदा करें!
सरिता प्रकाश🙏✍️💚🌱💧🌧️🦜🕊️☘️🐝🐜🦉🦚🐧🐞🦋🦩🦆🐛🐦🦂🕷️