भक्ति कोई सरकारी ढंग नहीं है कि विशेष ढंग से करोगे तो ही पूरी होगी

भक्ति का कोई स्टैंडर्ड ढंग नहीं है, कोई सरकारी ढंग नहीं है कि विशेष ढंग से करोगे, तो ही भक्ति पूरी होगी। तुम्हारी जैसी मौज हो। इसलिए तो कोई पत्थर के किनारे बैठ कर, राह के किनारे, रखे पत्थर के पास बैठ कर भक्ति कर लेता है। यह पत्थर ही है–औरों के लिए; लेकिन जिसने भक्ति-भाव से उस पर दो फूल चढ़ा दिए, उसके लिए भगवान है।
हिंदू इसमें बड़े कुशल हैं। कोई भी पत्थर को, अनगढ़ पत्थर को, पोत देते हैं सिंदूर से–वे हनुमान जी हो गए। पश्चिम के लोग चकित होते हैं कि बड़ी हैरानी की बात है! अभी यह पत्थर था, इन्होंने इसको लाल रंग से पोत दिया, दो फूल चढ़ा दिए, न आंख-कान का कुछ पता, न हाथ का कुछ पता–भगवान हो गए?
मगर समझो हिंदुओं की बात। वे कहते हैं: भगवान आंख, कान, हाथ में थोड़े ही है। कोई बड़ा मूर्तिकार इस पत्थर को बताएगा, तब यह भगवान बनेंगे, तुम समझते हो? नहीं, भगवान बनते हैं भाव से। मूर्तिकार मूर्ति बना देगा, भगवान थोड़े ही बना सकता है। अगर मूर्तिकार का भाव ही न हो…।
एक गांव में मैं ठहरा। उस गांव में एक मंदिर बन रहा था। अक्सर जैसा होता है, संगमरमर के कारीगर अक्सर मुसलमान होते हैं, तो मुसलमान उस मंदिर को बना रहे थे। मंदिर में मूर्ति खोदी जा रही थी, वह भी मुसलमान कारीगर खोद रहे थे। मंदिर को बनाने वाले के घर में मेहमान था। वह मुझे लेकर दिखाने गया कि जरा आप देख लें। मैंने उससे पूछा कि तुम एक बात समझते हो? जो लोग इस मंदिर की मूर्ति बना रहे हैं, उनका कोई भाव तो है नहीं। ये मुसलमान हैं। इन्हें मौका मिले तो यही तोड़ जाएंगे आकर इस मूर्ति को। इनका कोई भाव तो है नहीं। तुमने इनसे कभी पूछा? ये मूर्ति तो बना देंगे, यह सच है; मगर भाव कहां से डालोगे?
वह थोड़े हैरान हुए। उन्होंने कहा: बात तो आप ठीक कहते हैं। यह तो हमने सोचा ही नहीं। लाखों रुपये लगा दिए इस मंदिर पर। यह तो पूरा ही मंदिर मुसलमानों ने बनाया है। ये, सभी कारीगर यहां मुसलमान हैं। इसमें तो पत्थर-पत्थर इन्होंने लगाया है। यह तो बड़ी भूल-चूक हो गई। आपने बड़ी देर से कहा।
हिंदुओं का ढंग ज्यादा सरल-सुगम है। वे कहते हैं: भाव से पत्थर भगवान हो जाता है। और भाव न हो तो भगवान पुनः पत्थर हो जाता है। कैसे तुम करते हो भक्ति, तुम्हारे विधि-विधान में कुछ अर्थ नहीं है। तुम जिसमें भी परिपूर्ण रस से डूब जाओ, वही भक्ति है।
मो़जे़ज एक जंगल से गुजरते हैं और एक आदमी को प्रार्थना करते देखते हैं। एक गड़रिया गरीब आदमी, फटे चीथड़े पहने हुए भगवान से प्रार्थना कर रहा है। महीनों से नहाया नहीं होगा, ऐसी दुर्गंध आ रही है। अब भेड़ों के पास रहना हो तो नहा-धोकर रह भी नहीं सकते। दुर्गंध का अभ्यास करना होता है। बड़ी दुर्गंध आ रही हैं। उस आदमी से–भेड़ की दुर्गंध आ रही है। चारों तरफ भेड़ें मिमिया रही हैं। और वह बैठा वहीं प्रार्थना कर रहा है। वह क्या कह रहा है, वह भी बड़े मजे की बात है। मो़जेज़ ने खड़े होकर सुना। वह बहुत हैरान हुए। उन्होंने बहुत प्रार्थना करने वाले देखे थे, ऐसा आदमी नहीं देखा। वह भगवान से कह रहा है कि हे भगवान, तू एक दफे मुझे बुला ले। ऐसी तेरी सेवा करूंगा कि तू भी खुश हो जाएगा। पांव दबाने में मेरा कोई सानी नहीं। पैर तो मैं ऐसे दबाता हूं तेरा भी दिल बाग-बाग हो जाए। और तुझे घिस-घिस कर नहलाऊंगा और तेरे सिर में जुएं पड़ गए होंगे तो उनकी भी सफाई कर दूंगा।
अब उसके बेचारे के सिर में पड़े होंगे, तो स्वभावतः आदमी अपनी ही धारणा तो भगवान से सोचेगा।
तेरे जुएं पड़ गए होंगे, वे भी बीन दूंगा। पिस्सू इत्यादि तेरे शरीर पर चढ़ जाते होंगे, पता नहीं कोई फिकर तेरी करता है कि नहीं करता…।
मो़जे़ज के लिए तो बरदाश्त के बाहर हो गया कि यह आदमी क्या कह रहा है! और कहा कि मैं रोटी भी अच्छी बनाता हूं, शाक-सब्जी भी अच्छी बनाता हूं। रोज भोजन भी बना दूंगा। थका-मांदा आएगा, पैर भी दाब दूंगा, नहला भी दूंगा। तू एक दफा मुझे मौका तो दे।
मो़जे़ज के बरदाश्त के बाहर हो गया, जब उसने कहा कि जुएं तेरे बीन दूंगा और तेरे शरीर पर गंदगी जम गई होगी, घिस-घिस कर साफ कर दूंगा और पिस्सू इत्यादि पड़ ही जाते हैं, पता नहीं कोई तेरी वहां फिकर करता है कि नहीं…। मो़जे़ज ने कहा: चुप! चुप शैतान! तू क्या बातें कर रहा है? तू किससे बातें कर रहा है? भगवान से?
और उस आदमी की आंख से आंसू बह गए। वह आदमी तो डर गया। उससे कहा कि मुझे क्षमा करें। कोई गलती बात कही?
मो़जे़ज ने कहा: गलती बात! और क्या गलती हो सकती है–भगवान को जुएं पड़ गए, पिस्सू हो गए! उसका कोई पैर दबाने वाला नहीं! उसका कोई भोजन बनाने वाला नहीं! तू भोजन बनाएगा? और तू उसे घिस-घिस कर धोएगा? तूने बात क्या समझी है? भगवान कोई गड़रिया है?
वह गड़रिया रोने लगा। उसने मो़जे़ज के पैर पकड़ लिए। उसने कहा: मुझे क्षमा करो! मुझे क्या पता, मैं तो बेपढ़ा-लिखा गंवार हूं। शास्त्र का कोई ज्ञान नहीं है, अक्षर सीखा नहीं कभी, यहीं पहाड़ पर इसी जंगल में भेड़ों के साथ ही रहा हूं, भेड़िया हूं, मुझे क्षमा कर दो! अब कभी ऐसी भूल न करूंगा। मगर मुझे ठीक-ठीक प्रार्थना समझा दो।
तो मो़जे़ज ने उसे ठीक-ठीक प्रार्थना समझाई। वह आदमी कहने लगा: यह तो बहुत कठिन है। यह तो मैं भूल ही जाउंगा। यह तो मैं याद ही न रख सकूंगा। फिर से दोहरा दो।
फिर से मो़जे़ज ने दोहरा दी। वे बड़े प्रसन्न हो रहे थे मन में कि एक आदमी को राह पर ले आए–भटके हुए को। वह आदमी फिर बोला कि एक दफा और दोहरा दो। वह भी दोहरा दी। और फिर जब मो़जे़ज जंगल की तरफ अपने रास्ते पर जाने लगे, बड़े प्रसन्न भाव से, तो उन्होंने बड़े जोर की आवाज में गर्जना सुनी आकाश में और भगवान की आवाज आई कि मो़जे़ज, मैंने तुझे दुनिया में भेजा था कि तू मुझे लोगों से जोड़ना, तूने तो तोड़ना शुरू कर दिया!
अभी गड़रिए की घबड़ाने की बात थी, अब मो़जे़ज घबड़ा कर बैठ गया, हाथ-पैर कांपने लगे। उन्होंने कहा: क्या कह रहे हैं आप, मैंने तोड़ दिया! मैंने उसे ठीक-ठीक प्रार्थना समझाई।
परमात्मा ने कहा: ठीक-ठीक प्रार्थना का क्या अर्थ होता है? ठीक शब्द? ठीक उच्चारण? ठीक भाषा? ठीक प्रार्थना का अर्थ होता है: हार्दिक। वह आदमी अब कभी ठीक प्रार्थना न कर पाएगा। तूने उसके लिए सदा के लिए तोड़ दिया उसकी प्रार्थना से मैं बड़ा खुश था। वह आदमी बड़ा सच्चा था। वह आदमी बड़े हृदय से ये बातें कहता था, रोज कहता था। मैं उसकी प्रतीक्षा करता था रोज कि कब गड़रिया प्रार्थना करेगा। ऐसे तो तेरे जैसे बहुत लोग प्रार्थना करते हैं। उनकी प्रार्थना की मैं प्रतीक्षा नहीं करता। वे तो बंधी-बंधाई, पिटी-पिटाई बातें हैं। वे रोज वही-वही कहते रहते हैं। यह आदमी हृदय से कहता था। यह आदमी ऐसे कहता था जैसा प्रेमी कहता है। और फिर बेचारा गड़रिया है, तो गड़रिए की भाषा बोलता है। तू वापस जा, उससे क्षमा मांग। उसके पैर छू, और उसे राजी कर कि वह जैसा करता था वैसा ही करे। तेरी प्रार्थना वापस ले।
यह यहूदी कथा बड़ी प्यारी है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारे शब्द क्या हैं। इससे ही फर्क पड़ता है कि तुम क्या हो। तुम्हारे आंसू सम्मिलित होने चाहिए तुम्हारे शब्दों में। जब तुम्हारे शब्द तुम्हारे आंसुओं से गीले होते हैं, तब उनमें हजार-हजार फूल खिल जाते हैं।
चाहे जैसी करै भक्ति, सब नामहिं केरी।
जाकी जैसी बूझ, मारग से तैसी हेरी।।
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