शिक्षा जीवन का आधार है, इसके बिना सब बेकार है

सुनता आ रहा हूँ बचपन से कि शिक्षा नहीं तो कुछ भी नहीं। बहुत से स्लोगन सुने मैंने शिक्षा पर जैसे कि….
1. शिक्षा जीवन का आधार है, इसके बिना सब बेकार है।
2. शिक्षा का सार सिखाती है, सभी परेशानीयो से हमें बचाती है।
3. सभी समस्यायों का होगा हल, शिक्षा से होगा एक बेहतर कल।
4. हम सभी का है एक ही नारा शिक्षा है अधिकार हमारा।
5. शिक्षा है जीवन का आधार, जो करती है सबके सपनो को साकार
6. शुरू करो शिक्षा का अभियान जो लाए सबसे जीवन में स्वाभिमान।
7. लड़की लड़का एक सामान सबको शिक्षा सबको ज्ञान।
लेकिन जब पढ़े, लिखों को प्रायोजित महामारी से आतंकित होकर फर्जी सुरक्षा कवच के लिए लाइन लगाए देखा, तब सोच में पड़ गया कि शिक्षा यदि इतनी भी समझ विकसित नहीं कर पाती, तो कि पूछ सकें “जब प्रायोजित महामारी मंदिर, मस्जिद, तीर्थ, स्कूल, कॉलेज, बाजार से लेकर शादी ब्याह तक में पहुँच जाती है शिकार करने, तो फिर दारू के ठेके और राजनैतिक रैलियों पर जाने से क्यों डरती थी ?”
क्या वकील शिक्षित नहीं होते ?
क्या जज शिक्षित नहीं होते ?
क्या एमबीबीएस, यूपीएससी टॉपर्स, आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, आईआएस शिक्षित नहीं होते ?
लेकिन इनकी तो आवाज भी नहीं निकली प्रायोजित महामारी के आतंकियों और उनके द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के विरुद्ध ?
सच तो यह है कि अधिकांश केवल नंबर्स लाने और नौकरी पाने के लिए पढ़ाई करते हैं। शिक्षित होने के लिए पढ़ाई करने वाले दुर्लभ ही होते हैं। जैसे युगांडा का जॉर्डन किनयेरा (Jordan Kinyera )।
युगांडा का युवक वकील बना अपनी पैतृक संपत्ति वापस पाने के लिए
In 1996, my dad got into a land dispute and was subsequently sued. I was 6 years old at the time. I went through 18 years of education, became an Advocate and took charge of the case. Today, Judgment In the final appeal was delivered in his favor. 😊
— Kinyera Jordan (@kinyerajordan) April 1, 2019
Ugandan man becomes a lawyer to win family land back
A Ugandan man, who was only six years old when his father lost his land in a legal dispute, has finally won it back 23 years later, after becoming a lawyer.
युगांडा का युवक जिसके पिता की भूमि छीन ली थी कानून ने जब वह मात्र छः वर्ष का था। 23 वर्ष बाद वकील बनकर अपने पिता की भूमि वापस छीन ली उसी कानून से।
ऐसे होते हैं शिक्षित लोग। आज जिन्हें हम शिक्षित कहते हैं, वे अपने ही देश को लूटने और लुटवाने वालों के लिए किसानों और आदिवासियों से भूमि हथिया रहे हैं। अपने ही देश के आदिवासियों पर गोलियां चला रहे हैं, अपने ही देश की जनता के पैसों पर डकैती डाल रहे हैं, अपने ही गाँव की भूमि बिकवाकर शहरी चिड़ियाघरों में पिंजरा खरीद रहे हैं। क्यों ?
क्योंकि इन्होंने जो शिक्षा अर्जित की है, वह गुलामी की शिक्षा है। और जो समझदार होते हैं, वे इन्हीं स्कूलों में पढ़कर शिक्षित और आत्मनिर्भर हो जाते हैं। जबकि बाकी लोग गुलाम और कोल्हू के बैल बन जाते हैं।
~ विशुद्ध चैतन्य
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