ऑर्गेनिक लूट के बाजार में गरीब मेहनती कब स्वास्थ्यदायक अनाज खायेंगे ?

विश्व में 9,2 मिलियन हेक्टर ऑर्गेनिक सर्टिफिकेटशन खेती की जा रही, और भारतवर्ष में 2,3 मिलियन हेक्टर ऑर्गेनिक खेती हो रही, पर भारतवर्ष के गरीब मेहनती को स्वास्थ्यदायक अनाज नहीं पूछता है भारत ???
ऑर्गेनिक के नाम पर विश्व के साथ-साथ भारतवर्ष के भी कृषक सिर्फ पैसे के लालच आधार पर, ऑर्गेनिक अनाज निर्यात कर गुलाम हो गये। लेकिन उन सभी कृषकों की पैसे की भूख आज भी खत्म नहीं हुई। चाहे जहरीले खेती करने हेतु कृषि से जुड़ रहे हैं, या ऑर्गेनिक खेती करने को, कृषि से जुड़े रहे। सभी के सभी सिर्फ अपनी आमदनी बढ़ाने हेतु कृषि से जुड़े रहे।
न कोई उनका प्रकृति के प्रति कोई प्रेम है, न दया है, उन सभी पशु पक्षियों के प्रति, या किसी भी जीव जंतुओं के प्रति कोई दया और प्रेम है। बस भेड़ चाल में चल पड़े हैं खेती करने? बिना धरती के प्रेम ही, झंडा उठाकर चल पड़ेंगे, और किसान आंदोलन में दौड़ पढ़ना ही देश प्रेम है?
अभी यहां न्यूज़ में है कि विश्व का सबसे ऑर्गेनिक खेती का बड़ा कृषि क्षेत्र 35 मिलियन हेक्टर ऑस्ट्रेलिया है, दूसरा जर्मनी है और तीसरा फ्रांस है। पर यहां विदेशों में हर एक नुक्कड़ पर ऑर्गेनिक की दुकान है। विदेशों में भी सिर्फ रईस और अमीर वर्ग ही खरीद सकते हैं, सभी प्रकार की वैराइटीज। न कि साधारण गरीब और पिछड़े वर्ग। गरीब वर्ग है या पिछली वर्ग, मध्यम परिवार सिर्फ आधे प्रोडक्ट ही ऑर्गेनिक खरीद सकते हैं। बाकी कोई अपनी सारी फल और सब्जियां खुद से उगा कर खाते हैं।
पर ऑस्ट्रेलिया में रसायनिक अनाज 2 Euro किलों जो मिलता है, वहां ऑर्गेनिक के प्रोडक्ट्स 10 Euro किलो मिलता है। और जर्मनी में जो जैविक अनाज 4 Euro का मिलता है, वह रसायनिक अनाज 1,50 Euro में मिलता है। बल्कि जो कि सबसे बड़ी ऑर्गेनिक प्रोडक्शन खेती होती है विश्व भर में यहां जर्मनी में, फिर भी साधारण लोग सारे प्रोडक्ट ऑर्गेनिक नहीं खरीद पातें। इसका मतलब वहां ऑस्ट्रेलिया का भी अनाज अमेरिका जाता है, और वहां के लोगों को महंगा ऑर्गेनिक प्रोडक्ट खरीदने पड़ते हैं।
और विश्व का सबसे ज्यादा ऑर्गेनिक अनाज चबाने वाला देश स्विजरलैंड है, क्योंकि वह पैसा ही पैसा है। चाहे कितने भी महंगे मिले वहां लोग उसे खरीदने की औकात रखते हैं।
और अमेरिका में ऑर्गेनिक की खेती नहीं होती है। सबसे ज्यादा खरीददार अमेरिका है और जर्मनी है।
पर भारत के हर नुक्कड़ पर ऑर्गेनिक की दुकान क्यों नहीं है?
भारतवर्ष में 10 साल पहले 2.5 मिलियन हेक्टर ऑर्गेनिक की खेती होती थी,
पर आज भारतवर्ष में 9,2 मिलियन हेक्टर सर्टिफिकेटशन के आधार पर खेती की जा रही है। फिर भी भारत के हर एक नुक्कड़ चौराहे पर गांव गांव में, कुपोषित पिछड़े वर्ग के लिए ऑर्गेनिक की साधारण और सस्ती दुकानें क्यों नहीं, सिर्फ बड़े-बड़े मॉल्स में ही क्यों?
जो कि प्राकृतिक और जैविक खेती में तो कोई केमिकल में कोई लागत या खर्च लगा ही नहीं। और सब कुछ तो प्रकृति ने दिया उसे विटामिंस, आपने उसमें कुछ विटामिंस तो खरीद कर डाले नहीं जो दिया धरती मां ने दिया। तो फिर ऑर्गेनिक के नाम पर बाजारीकरण क्यों?
इसका मतलब पूरे भारतवर्ष की कृषि प्रधान देश की जमीनों पर 1.5 % ऑर्गेनिक खेती होती है वह भी सिर्फ एक्सपोर्ट करने के लिए। जिसके कारण भारतवर्ष के गांव या नुक्कड़ पर एक भी ऑर्गेनिक के दुकान आपको कहीं नहीं मिलेंगे, साधारण गरीब वर्ग और पिछड़े वर्ग की जनता के लिए क्यों, क्यों उनकी ऑर्गेनिक अनाज खाने की औकात नहीं? स्वास्थ्य दायक जीवन जीने का नहीं कोई अधिकार नहीं?
कारण क्या उन गरीब और पिछड़े वर्ग के किसान जो देश की सबसे मेहनत करने वाले मजदूर या गरीब वर्ग है। उन्हें स्वास्थ्य दायक अनाज खाने का अधिकार नहीं क्यों? खेतों में मेहनत कर ऑर्गेनिक अनाज उगाते हैं, उन्हें ही स्वस्थ दायक अनाज खाने का अधिकार नहीं क्यों?
सिर्फ ऑर्गेनिक के नाम पर जीवन भर व्यवसाय कर, अच्छे पैसे कमाने के लिए ही उसका आधार बनाया जाए? न कि मेहनती, मजदूर, गरीब, कुपोषित, भूखी, नंगी, पिछड़े मानव जाति को उसके लिए स्वास्थ्य दायक अनाज ऊगाया जाए?
भारतवर्ष की ऑर्गेनिक खेती बिना प्रकृति के श्रद्धा और प्रेम के, सिर्फ ऑर्गेनिक किसानों को अच्छे मूल्य के आधार पर, और अच्छे आमदनी हेतु सिर्फ ऑर्गेनिक खेती से जुड़ना, या विदेशी कंपनियों को अनाज देकर व्यापार बनाना ही और प्राकृतिक खेती, या ऑर्गेनिक खेती की महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करता है?
भारतवर्ष की न्यूज़ में ऐसी जानकारियां दी जा रही है कि भारतीय लोग चैतन्य हो गए हैं, उन्हें जैविक अनाज चाहिए इसलिए ऑर्गेनिक खेती की जा रही। यह बताया जा रहा है।
पर सही मायने में भारतवर्ष के गरीबों और पिछड़े वर्ग के स्वास्थ्य पर कोई कार्य नहीं किया जा रहा। उन्हें विटामिन से भरपूर स्वास्थ्य दायक प्राकृतिक जैविक अनाज नहीं मिल पा रहे क्यों? जो देश का फंडामेंट स्ट्रक्चर है, जो देश का ढाल है, उनकी ही मेहनत से एक एक अनाज की उपज है, अच्छी पैदावार है। और वे ही गरीब पिछड़े वर्ग, मध्यम वर्ग जैविक अनाज खरीद नहीं सकते।
जैविक अनाज, ऑर्गेनिक अनाज के नाम पर इतने महंगे बेचे जा रहे हैं एक कुपोषित, गरीब, पिछड़ा वर्ग तो अपने जीवन में कभी खरीद ही नहीं पाएगा। फिर उसकी मेहनत और लग्न की खून की कीमत कौन चुका पाएगा? जिसे सिर्फ भारतीय नहीं पूरे विश्व ऑर्गेनिक के नाम पर व्यवसाय कर लूट रहा?
भारतवर्ष के पिछड़े गरीब मजदूर जो खेतों में काम करते हैं, मजदूरी करते हैं, उनको स्वास्थ्य की सबसे ज्यादा जरूरत है। क्योंकि वह कुपोषित हैं, निपीड़ित है, अवहेलित हैं, उनको विटामिंस की कमी है न कि रईसों को?
सारे रईस तो जीवन भर जहरीले अनाज खाते है और फिर विटामिंस टेबलेट खा खा कर अपोलो में भर्ती हो रहे। और फार्मा इंडस्ट्री को सपोर्ट कर रहे हैं, हार्ट सर्जरी करवा रहे हैं। जीवन भर डायबिटीज की मेडिसिंस खा रहे हैं। उन्हें और ऑर्गेनिक अनाज की जरूरत नहीं है। उन्हें तो दवा के रूप में मूंगफली जैसी कैप्सूल की भुंजा चाहिए। क्योंकि सारे ऐसे लोग हरित क्रांति के सरकारों का कभी विरोध नहीं किया, बल्कि सपोर्ट ही किया!
~ सरिता प्रकाश ✍️😀



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