राष्ट्रहित व नैतिकता के विरुद्ध हैं समाज और सरकारें

किसी को लगता है कांग्रेस सत्ता पर हो तो सही है और किसी को लगता है कि भाजपा सत्ता में हो, तो सही है। किसी को सपा पसंद है तो किसी को बसपा, किसी को कोई पार्टी पसंद है तो किसी को कोई नेता। लेकिन यदि ध्यान से समझने का प्रयास करें तो इन राजनेताओं को देखकर, मुझे तो ऐसा बिलकुल नहीं लगता कि इनमें से कोई भी सत्ता में हो, तो जनता का कोई हित होने वाला है या किसानों और आदिवासियों को समृद्ध होने का अवसर मिलने वाला है।
वैसे तो किसी भी राजनैतिक पार्टी से मुझे कोई अपेक्षा नहीं क्योंकि जिनके पास ताकत होती है, वे शोषण व अत्याचार करना अपना नैतिक व धार्मिक कर्त्तव्य समझते हैं। सत्ता पक्ष ही नहीं, सभी धर्मों के ठेकेदार व समाज भी राष्ट्रहित व नैतिकता के विरुद्ध हो चुके हैं। सभी को अपनी अपनी चिंता है, अपना सुख सभी को प्यारा है, भले फिर किसान लुप्त हो जाएँ, भले फिर आदिवासी लुप्त हो जाएँ, भले फिर देश ही क्यों न बिक जाए।
किसी भी राजनैतिक पार्टी को देख लो, किसी भी राजनेता को देख लो, उसे जनता की समस्याओं में कोई रूचि नहीं होती। उसे केवल अपनी कुर्सी, अपनी दौलत और अपनी जय जयकार में रूचि होती। इसीलिए वे आये दिन उलुल जुलूल बयान देते रहते हैं, इसीलिए वे आये दिन ऐसे वक्तव्य देते हैं, जिनसे न राष्ट्र का कोई हित होता है और न ही समाज का। उनके चाटुकार और चमचे भी नेताओ के बकवास को बीजमन्त्र की तरह ढोते रहते हैं।
जबतक विपक्ष में, तभी तक अच्छे
कांग्रेस हो या भाजपा या कोई और राजनैतिक पार्टी, जब तक ताकत उसके पास नहीं होती, तभी तक अच्छे हैं। कांग्रेस राज में ही हुआ था सिख नरसंहार, कांग्रेस के ही राज में हुआ था लाठी चार्ज अन्नाआन्दोलन के समय, कांग्रेस के ही राज में हुए थे कई निर्दोषों की हत्या पुलिस द्वारा और कई निर्दोष जेलों में ठूंस दिए गये जिन्हें पन्द्रह बीस वर्ष लग गये स्वयं को निर्दोष प्रमाणित करने में।
कांग्रेस के ही राज में हुए थे दुनिया भर के घोटाले, लेकिन अब लोग सब भूल गये। क्योंकि कांग्रेस से सत्ता छीन कर जिसको सौंपी, वे उनसे बड़े धूर्त, मक्कार और विश्वासघाती निकले। इनकी तो अपनी ही जबान का कोई भरोसा नहीं कि कब क्या बोल जाएँ और कब मुकर जाएँ। कब महँगाई एफडीआई को डायन बता दें और कब मौसी बना लें। कब गाय इनकी माता हो जाए और कब माँस हो जाए इन्हें स्वयं ही होश नहीं रहता। ये भले कांग्रेस राज में देश बंद तक करके विरोध जता रहे थे, आज अपने खिलाफ बोलने वालों को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे। इनकी मानसिक स्थिति तो कांग्रेस से भी अधिक विकृत है।
लेकिन जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसे गुलामी में जीने की आदत है और कोई एक दो वर्ष की नहीं, हज़ार वर्ष का अनुभव है गुलामी का। इसलिए अब स्वतंत्रता रास नहीं आती इन्हें। इन्हें रास नहीं आते वे नेता, जो जनता के हितों को महत्व दें । इन्हें रास नहीं आते वे नेता जो राष्ट्र को महत्व दें। इन्हें तो बस गुलामी करनी है और नेता नहीं, मालिक खोजते हैं जो इनपर हंटर चलाये, विरोध करने पर जेलों में ठूंस दे।
राष्ट्रहित व नैतिकता क्या है ?
यह भारत का दुर्भाग्य ही है कि आज यह बताना पड़ रहा है कि राष्ट्रहित व नैतिकता क्या है ! हम जब स्कूल में पढ़ा करते थे, तभी हमें यह सब बातें सिखाई जातीं थी, लेकिन समय बदला और शायद स्कूलों से ये विषय ही नदारद कर दिए गये। अब शायद स्कूलों में ये विषय नही पढाये जाते, इसलिए आधुनिक युवाओं को नहीं पता कि राष्ट्रहित व नैतिकता क्या है। यही कारण है कि राष्ट्र बेचने वाले नेता भी इनके लिए महान हो गये, यही कारण है कि नागरिकों पर अत्याचार करने वाले, शोषण करने वाले नेता भी इनके लिए भगवान हो गये।
राष्ट्रहित की जब हम बात करते हैं, तो राष्ट्रीय संपत्ति, खनिज, जल, वन, खेत का सदुपयोग व नागरिकों के हितों का विषय केंद्र में होता है। हम इस विषय पर ध्यान देते हैं कि जनप्रतिनिधि जनता की समस्याओं को लेकर जागरूक हैं या नहीं। हम इस विषय पर ध्यान देते हैं कि नागरिकों के साथ नागरिकों के द्वारा चुने गये शासक सम्मानपूर्वक व्यवहार कर रहे हैं या नहीं।
हम इस विषय पर ध्यान देते हैं कि किसी से खेत तो नहीं छीना जा रहा, किसी को बेघर तो नहीं किया जा रहा, किसी निर्दोष को सताया तो नहीं जा रहा । हम इस विषय पर भी ध्यान देते हैं कि वनसंरक्षण पर ध्यान दिया जा रहा है कि नहीं, खनिजो के संरक्षण पर ध्यान दिया जा रहा है कि नहीं। हम इस विषय पर भी ध्यान देते हैं कि देश के नागरिकों को सही मूल्य पर वस्तुएं व सुविधाएं मिल रही हैं या नहीं।
तो राष्ट्रहित किसी व्यक्ति विशेष, पार्टी विशेष या नेता विशेष के महत्व से अधिक सम्पूर्ण राष्ट्र के हितों को महत्व देता है। लेकिन नेता व पार्टी भक्तों को केवल पार्टी व नेता के हितों से ही मतलब रहता है, फिर चाहे उनका अपना या पूरे देश का ही अहित क्यों न हो रहा हो।
हम जैसे देशभक्तों की भक्ति देश के प्रति है
लेकिन हम जैसे देशभक्तों, राष्ट्र के हितैषियों को जब हमें पता चलता है कि देश की संपत्ति बिक रही है, जैसे एयर इण्डिया, जैसे रेलवे स्टेशन, जैसे नेता बिक रहे हैं, तो हमें दुःख लगता है। हमें दुःख लगता है जब नेता, धर्म व जाति के ठेकेदार, प्रशासनिक अधिकारी, सांसद, विधायक, मंत्री आदि अपने ईमान बेच रहे होते हैं, अपने जमीर बेच रहे होते हैं। हम आहत होते हैं जब हमें पता चलता है कि भारत 15 देशों को 34 रुपए लीटर पैट्रोल व 29 देशों को 37 रुपए लीटर डीजल बेच रहा है, जबकि देशवासियों को सरकार द्वारा यही डीजल व पैट्रोल दोगुने से भी अधिक दामों में बेचा जा रहा है। यह खुलासा सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 (आरटीआई) के माध्यम से मिली रिपोर्ट में हुआ है।
हम विरोध करते हैं ऐसे धूर्त मक्कार नेताओं का, जो देशद्रोही कार्यों में लिप्त हैं। क्योंकि हम जैसे देशभक्तों की भक्ति देश के प्रति है, किसी नेता या पार्टी के प्रति नहीं। सत्ता पक्ष और उनके चाटुकार हमें अपना शत्रु समझते हैं, क्योंकि हम लूट-खसोट में उनका साथ नहीं देते, समर्थन नहीं करते।
अब बात करें नैतिकता की तो नैतिकता होती है नीति के अनुरूप आचरण करना। यानि राजनीति करनी है तो राज्य के हितों को ध्यान में रखकर नीति बनाना और उसका अनुसरण करना। यदि पारिवारिक सदस्य हैं तो अपने परिवार की मर्यादा व सम्मान बनाये रखने की नीति का अनुसरण करना।
क्या राजनेता, धर्म व जाति के ठेकेदार और समाज नैतिक व राष्ट्रभक्त हैं ?
शायद नहीं क्योंकि ये सभी व्यक्तिगत, सांप्रदायिक व जातिगत स्वार्थों में अंधे हो चुके हैं। इन्हें केवल अपनी पार्टी, अपनी जाति, अपना नेता, अपना संप्रदाय ही दिखाई देता है और कुछ दिखाई नहीं देता। इन्हें केवल अपना नेता, पार्टी सत्ता में चाहिए, सारा विरोध सत्तापक्ष का ये लोग इसी लिए करते हैं। इनका अपना नेता, अपनी पार्टी सत्ता में आ जाये, फिर वह घोटाले करे, मूर्खतापूर्ण तरीके से नोटबंदी करे, महँगाई और एफडीआई को मौसी बना ले, शिक्षकों पर लाठियाँ चलवाए, आदिवासियों को बेघर करे, उनकी भूमि हथियाए, किसानों को मरने के लिए छोड़ दे, लेकिन उद्योपतियों के करोड़ों के कर्ज व टैक्स माफ़ कर दे…….सब कुछ स्वीकार है इन्हें।
मुझे तो आश्चर्य होता है उन ब्रम्हचारियों पर, साधू, संन्यासियों व त्यागियों पर, जो सत्ता पक्ष की चाटुकारिता में लिप्त हैं। धन, शोहरत, जयजयकार के लोभ में पड़े ये त्यागी बैरागी केवल स्त्री से परहेज को सात्विकता मानते हैं। फिर चाहे दुनिया भर के झूठ बोलें, ढोंग करें, ऐशो आराम भोगें, हेरा-फेरी करें, ऐय्याशियाँ करें…..सब कुछ पुण्य है इनके लिए। और इनके अराध्य, इनके ईश्वर भी इनकी ही तरह कमीना है जो ऐसे कर्मों को करने पर भी इन्हें स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करता है, सारे सुख वैभव उपलब्ध करवाता है। और आज समाज इन्हें नैतिक मानता है, इनके क़दमों में बिछा जाता है।
नहीं ये नैतिकता नहीं है मेरी नजर में।
नैतिकता स्त्रियों से परहेज नहीं है, बल्कि स्त्रियों का अपमान है। और स्त्रियों का अपमान कभी भी नैतिक नहीं हो सकता क्योंकि स्त्रियाँ ईश्वर की वह महान रचना है, जो पुरुषों को जन्म देती है। स्त्रियाँ वह महान रचना है जो जीवन के कठिन संघर्ष में शीतलता व सहयोग प्रदान करती है। स्त्री के बिना पुरुष अधुरा है और अधूरा पुरुष कभी पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकता अध्यात्मिक या मोक्ष की यात्रा में।
नैतिकता यह भी नहीं कि शपथ ले ली राष्ट्रभक्ति की, समाज के हितों की और अपने चार पाँच दोस्तों, शुभचिंतकों के हितों में सारा देश लूटने निकल पड़े।
नैतिकता यह भी नहीं है कि धूर्त मक्कार नेताओं के चाटुकारिता में लिप्त हो गये और चाटुकारिता को भक्ति कहकर महिमंडित कर दिया।
इसीलिए आज समाज को, युवाओं को, बच्चों को और विशेषकर शिक्षकों व अभिभावकों को यह जानना आवश्यक है कि राष्ट्रहित व नैतिकता क्या है। जब तक समझ में नहीं आयेगा यह, तब तक तो देश की बागडोर धूर्त, मक्कार, जुमलेबाज ठेकेदारों, और व्यापारियों के ही हाथों में रहेगी। फिर चाहे पार्टी कोई भी हो, किसी भी जाति या धर्म की हो, सिद्धांत सभी का एक ही रहेगा और वह है देश लूटना और बेचना।
~विशुद्ध चैतन्य
देश की सेवा
अधार्मिक हैं समाज
सम्प्रदाय व राजनैतिक पार्टियाँ
भारत दूसरे देशों को आधे दाम पर बेच रहा पेट्रोल व डीजल, RTI में खुलासा
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