इस धरती से किसी को प्रेम नहीं, आओ चले इस को नष्ट छोड़, चांद-सितारे ओर ग्रहों पर !

पढ़े-लिखे डिग्रीधारी अशिक्षित साइंटिस्ट चंद्रयान और मंगल ग्रह की यात्रा में इतने निपुण है कि इस धरती पर शिक्षित वर्ग के प्राकृतिक जीवन शैली जीने वाले गरीब पिछड़े वर्ग के जीवन में कितने कष्ट हैं, इस पर किसी का ध्यान नहीं और न ही ध्यान देना चाहते हैं।
फिर भी ये कितने आत्म संपन्न है, मिट्टी और कीचड़ में खेल कितने स्वस्थ संपन्न है, कितने आत्म रक्षक हैं, कितने आनंददायक जीवन से परिपूर्ण है, इस तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है।
और फिर भी यह प्रकृति जीवी, इन्हीं किचड़ों में खेल कर बड़े होते हैं। अपनी प्राकृतिक सौंदर्य को छोड़कर शहरी भेड़ों के समाज में नहीं शामिल होना चाहते थे आदिवासी स्वतंत्र जीवी और यह प्रकृति प्रेमी।
यही इनकी खासियत प्रकृति से जोड़ कर रखी है। अगर यही प्रकृति जीवी इन वनों और जंगलों को छोड़कर भेड़ों की समाज की तरह चल पड़े तो पूरी मानवता सांस भी न ले सकेगी, और न ही शुद्ध पानी से तृप्त हो सकेगी।
क्योंकि इन्हीं प्रकृति जीवियों की वजह से आज ही लुप्त हो रहे बहुत सारे जीव प्राणी और वनों में सुरक्षित है। प्राकृतिक स्वदेशी बीजें कई हजार सुरक्षित है। 5 लाख चावल की वैराइटीज हुआ करती थी, ऐसे ही डाल सब्जियों के कई हजार वैराइटीज हुआ करती थी। आज भी प्रकृति जीवी आदिवासियों के पास कई लाख चावल की वैराइटीज है, जो भेड़ों के समाज को सिर्फ 10 वैराइटीज नसीब होती है।
इन्हीं प्रकृति प्रेमी आदिवासियों की वजह से आज पहाड़ों की शुद्ध पानी के झरने झील नदियां सुरक्षित है। और प्रकृति के बहुत से ऐसे जीव-जंतु, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी इन्हीं की वजह से सुरक्षित है।
नहीं तो इन पढ़ी-लिखी डिग्री धारी अशिक्षित भेड़ों के भरोसे अगर होता तो कब का साइंटिफिक साइंटिफिक कर पूरी प्रकृति की धरा को नष्ट कर दिए होते हैं।
जो कि आज तक शहरी जल को बिना किसी केमिकल के शुद्ध पानी में कन्वर्ट न कर सके। यह सारे साइंटिफिक साइंटिफिक करने वाले केमिकल से ही सब कुछ करते हैं। यह तो जहर में जहर घोलने का काम करते हैं। नई-नई जहरीले रासायनिक पदार्थ मैन्युफैक्चरिंग कर पूरी पर्यावरण को क्षतिकर हर जीव प्राणी मानवता के लिए घातक बन चुके यह साइंटिस्ट।
यहां तक इन साइंटिस्टों ने प्राकृतिक जीवी आदिवासियों की वनों और उनकी जमीनों से खदेड़ कर, उसे पर कब्जा जमा पूंजीवादी व्यवस्था को बेच रहे अनलिमिटेड ईयर के लिए कब्जा जमा दिया है। और इन भेड़ों के गुलाम समाज को कोई फर्क नहीं पड़ना।
इन भेड़ों के समाज की इसीलिए आध्यात्मिकता, नैतिकता, धार्मिकता सब कुछ ढोंग आधारित है।
यह कैसी आध्यात्मिकता पूरी मानवता प्रकृति बिना अधूरी है?
यह कैसी नैतिकता जो आदिवासियों की जमीनों और वनों की सुरक्षा न कर सके मुखर न हो सके?
यह कैसी धार्मिकता जहां न धर्म का पता हो, इस जीवन में हम क्यों आए हैं और हमारे इस प्रकृति के धरा में क्रांतिकारी गुण धर्म क्या है?
हर पशु पक्षी, जीव जंतु, पेड़ पौधे, अपने धर्म कर्म से निस्वार्थ सेवा करते हैं। सिर्फ इस धरती को ही नहीं, बल्कि इस सृष्टि के पूरी विश्व ब्रह्मांड में सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं।
इनका अपने समाज में थोड़ी-मोड़ी, छोटी मोटी सेवा भी अपने खुद के स्वार्थ और घमंड को पूर्ण करती है कि हमने कुछ किया, यह किया, वह किया, हम तो कुछ करते हैं, और तो कोई कुछ नहीं करते।
पर एक मानव ही एक ऐसा प्रजाति है, जो अपने स्वार्थवश जीवन जीने को मजबूर है। भगवान के मंदिरों में भी जाने का मकसद भी सिर्फ अपने स्वार्थ को पूर्ण करना होता है। और यह सारे भक्ति में डुबे वे लोग, ये कीर्तन, भजन, योग, ध्यान, यम-नियम, पांचजन्य, उपवास और साधना करने वाले भी, अपनी स्वार्थवश मोक्ष मुक्ति की कामना लिए ध्यनिष्ट हो रहे। यह सभी इस धरा में आए ही थे अपनी स्वार्थ की पूर्ति के लिए, न कि प्रकृति की स्वर्ग धरा के जीव प्राणियों के कष्ट और नष्ट से उनके जीवन में कोई तालुकात है?
प्रकृति जीवी और प्रकृति प्रेमी ही आध्यात्मिक है, और वही धार्मिक है वही अपने धर्म से इस सृष्टि को उर्जावान बना रहे, उनकी वजह से ही आज मानवता स्वास्थ्य सुरक्षित है, उसका सम्मान करें, बाकी सब ढोंग आधारित जीवन अध्यात्मिक नहीं!
सरिता प्रकाश 🙏✍️💚🥰🌱💧🐝🐞🦉🕊️🦩🐛🐦