अब लोग दान के नाम पर भीख देते हैं, या फिर व्यवसाय करते हैं
यदि भिखारी समझकर दान देते हैं, तो आप शूद्र वर्ण के हैं और भीख ही दे रहे हैं।
यदि दान देते समय लाभ-हानि योग्य-अयोग्य का विचार करते हैं, या प्रतिफल की अपेक्षा रखते हैं, तो आप वैश्य वर्ण के हैं और व्यवसाय कर रहे हैं।
यदि दान देते समय आप का सर श्रद्धा से झुका हुआ है और ईश्वर के प्रति कृतज्ञ हैं कि उन्होंने आपको दान देने योग्य बनाया, तो आप क्षत्रिय हैं।
यदि दान देते समय दान पाने वाले व्यक्ति के प्रति आभार का भाव है, तो आप ब्राह्मण हैं।
इसलिए दान करते समय होशपूर्ण रहें और किसी को भी दान देने से पूर्व अपने मनोभावों पर चिंतन करें।
बहुत से लोग दान लेने वालों से ईर्ष्या करते हैं लेकिन स्वयं को उनसे श्रेष्ठ और कर्मवादी मानते हैं। ऐसे लोग नहीं जानते कि ईर्ष्या हमेशा अपने से श्रेष्ठ व्यक्तित्वों से होती है, समकक्ष या निकृष्ट व्यक्तित्वों से नहीं।
बहुत से लोग यह देखकर दान करते हैं कि जिसे दान दिया जा रहा है, उनसे भविष्य में कोई लाभ उठाया जा सकता है, या नहीं। जैसे कि फर्जी पीएम केयर को दान करने वाले दानी, धनी व्यापारी, दलाल नेताओं और राजनैतिक पार्टियों को दान देने वाले दानी। ऐसे दानी वास्तव में दान का अर्थ ही नहीं जानते, इंश्योरेंस और इनवेस्टमेंट को दान समझ लेते हैं।
चूंकि वर्तमान समाज और सरकारें वैश्य और शूद्र वर्णों द्वारा संचालित हो रहा है, इसलिए दान भी स्वार्थ आधारित आडंबर और व्यवसाय मात्र बनकर रह गया है। अब लोग दान नहीं करते, दान के नाम पर भीख देते हैं, या फिर व्यवसाय करते हैं।
इसमें आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि विवाह ही जब प्रेम पर आधारित ना होकर स्वार्थ और व्यवसाय पर आधारित हो जाये, तो ऐसे दंपत्तियों से उत्पन्न संताने या तो वैश्य वर्ण की होंगी या फिर शूद्र वर्ण। और इनसे निर्मित संतानों द्वारा वैश्य और शूद्र मानसिकता का समाज और सरकारें आस्तित्व में आएंगी, जो देश की जनता के टैक्स से निर्मित सड़कें तक नीलाम कर देंगी। जिनके लिए दुनिया का हर प्राणी उनका गुलाम है, सेवक है, नौकर है। जो इस धारणा के साथ वयस्क होते हैं कि मानव का जन्म नौकरी, गुलामी या व्यवसाय करने के लिए हुआ और जो यह सब नहीं करता, वह मुफ्तखोर है, हरामखोर है, कामचोर है।
सनातन धर्म में एक नियम है कि व्यक्ति अपनी आय को चार बराबर भागों में बाँटे।
एक भाग परिवार की अनिवार्य आवश्यकताओं के लिए रखें।
एक भाग परिवार के मनोरंजन, पर्यटन व उपहारों के लिए रखें।
एक भाग भविष्य निधि के रूप में रखें।
एक भाग परमार्थ सेवा, सहयोग व दान के लिए रखें।