घर की बहू या मुफ्त की नौकरानी ?
अक्सर पढ़े-लिखे नारीवादियों #feminist से सुनने मिलता है कि घर की बहू फ्री की नौकरानी समझ रखा है समाज ने। इनका मानना है कि पत्नी को वेतन व अन्य भत्ता मिलना चाहिए ससुराल पक्ष से गृहकार्य हेतु।
मेरी धारणा है कि ऐसा कहने वाले वही लोग सबसे अधिक होते हैं, जो शूद्र अर्थात वेतनभोगी अधिकारी या कर्मचारी होते हैं सरकारी या गैरसरकारी संस्थाओं, होटलों और अमीरों की कोठियों में। या फिर वे लोग जो ग़ुलाम और बिकाऊ होते हैं, जैसे कि राजनेता, मंत्री, खिलाड़ी, सरकारी अधिकारी, कर्मचारी।
नारीवादियों की माने तो स्त्री का अपना घर-परिवार नहीं होता। वह घर का काम करे तो भी वेतन और बाहर जाकर काम करे तो भी वेतन। और वेतन पर रखने वाले को हमेशा यह अधिकार होता है कि नौकर पसंद न आने पर वह दो-तीन महीने का नोटिस देकर नौकरी से निकाल सकता है।
क्या कभी सोचा है हमने कि समाज में ऐसी धारणा क्यों जन्म ले रही है ?
सबसे प्रमुख कारण है परिवार में जब भी बहू आती है, तो अधिकांश परिवारों के बाकी सदस्य पैर पसार कर पड़ जाते हैं और सारा काम बहू से करवाते हैं। सास और ननद का व्यवहार तो ऐसा होता है, मानो बहू न आयी हो, किसी युद्ध बंदी को लाया गया हो। बहुत ही कम परिवारों में ऐसा होता है कि घर की बहु को बेटी की तरह रखा जाता है।
दूसरा कारण है आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा पद्धति, जिसमें स्त्री और पुरुषों को बराबर करने के चक्कर में यह सिखाया जा रहा है कि स्त्री और पुरुष नौकरी करने के लिए पैदा होते हैं, न कि घरेलू कार्य करने के लिए। तो पढ़ो लिखो और सरकारी या गैर सरकारी नौकरी करो। और नौकरी यदि रसोइये की कर रहे हो, तो भी सम्मानित हो। लेकिन यदि घर की रसोई संभाल रहे हो, तो शोषण हो रहा है क्योंकि वहाँ वेतन नहीं मिल रहा।
तीसरा कारण है सदियों से बंधक अर्थात ग़ुलाम की तरह रखी गयी स्त्री अब स्वतन्त्र होना चाहती है। अब वह घरों में कैद नहीं रहना चाहती, अब वह भी वही सब करना चाहती है, जो पुरुषों को करते देखती आयी थी। इसलिए अब स्त्री घर से बाहर नौकरी करने जाती है वेतन के लिए और घरेलू कार्यों के लिए नौकर, नौकरानी रखना पसंद करती है।