कौन सा मार्ग या जीवन शैली उचित है मानसिक शांति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए ?

अहंकार-मुक्त भक्ति-मार्ग और अहंकार-युक्त पाषाण-मार्ग में से कौन सा मार्ग श्रेष्ठ है ?
धार्मिक ग्रन्थों और धर्मगुरुओं का कहना है भक्ति-मार्ग ही श्रेष्ठ मार्ग है, क्योंकि भक्ति-मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति अहंकार मुक्त होकर पंख, राजनेता, राजनैतिक पार्टियों, बाबाओं, अभिनेताओं और इन सभी के भक्तों की तरह हवा में उड़ता है।
जबकि पाषाण-मार्ग में चलने वाला व्यक्ति अपने ही अहंकार के बोझ से जल-समाधि ले लेता है।
कर्ण ने पाषाण-मार्ग चुना और मैं कर्ण से सहमत हूँ। क्योंकि मैंने भी अहंकार मुक्त होकर हवा में उड़ने वाले भक्ति-मार्गी मोदीभक्तों, राजनैतिक पार्टियों, नेताओं, अभिनेताओं, बाबाओं, क्रिकेटर्स और इन सभी के भक्तों की तरह बुद्धिहीन बनने की बजाय कर्ण की तरह पाषाण-मार्ग जैसा कठिन मार्ग चुना।
क्या कभी सोचा है आपने कि बड़े-बड़े संगठन, संस्थाएं, पार्टियाँ मौन क्यों थे, जब फार्मा माफिया और उनके गुलाम समस्त विश्व को फर्जी महामारी से आतंकित कर फर्जी सुरक्षा कवच चेपने के लिए बन्धक बना लिए थे ?
क्या कभी सोचा है कि जब मानवों की निजता, मौलिकता और स्वतन्त्रता से जीने के अधिकारों अर्थात मनवाधिकारों का हनन हो रहा था, तब आपके प्रिय राजनेता, अभिनेता, धार्मिक, आध्यात्मिक बाबा, गुरु, महंत, मंडलेश्वर, पोप….आदि मौन क्यों थे ?
क्यों विरोध नहीं किया इनमें से किसी ने, क्यों मंदिरों, तीरथों व अन्य धार्मिक स्थलों पर ताला लगाकर यह प्रमाणित करने का प्रयास किया गया कि ईश्वर/अल्लाह से अधिक शक्तिशाली फर्जी महामारी और फर्जी सुरक्षा कवच के निर्माता और निर्देशक हैं ?
नहीं सोचा होगा, क्योंकि जब इंसान पढ़-लिख लेता है, तब दिमाग से उतना ही पैदल हो जाता है, जितना राजनेताओं, बाबाओं और पार्टियों के अंधभक्त होते हैं।
ये जो पढ़ना-लिखना जरूरी का स्लोगन रटाया जाता रहा है ना, वह भी केवल इसलिए ताकि लोग पढ़-लिखकर अपने अपने खेत बेचें, अपनी ज़मीनें बेचें और शहरी चिड़ियाघरों में पिंजरा किराये पर लेकर गुलामों और कोल्हू का बैल का जीवन जीयें, बिना कोई प्रश्न किए। कभी न पूछें कि जब दारू के ठेके खुले थे, तब मंदिर, तीर्थ, स्कूल, कॉलेज, बाजार क्यों बंद थे।
वराह (सूअर) जीवन शैली सर्वोच्च जीवन शैली है

यदि पूछा जाये कि सर्वोच्च जीवन शैली क्या है, तो अधार्मिक, आध्यात्मिक और पढ़े-लिखे शास्त्रों के ज्ञाता विद्वान कुछ भी कहें, सत्य यही है कि सूअर की जीवन शैली सर्वोच्च जीवन शैली है।
सूअरों ने कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं पढ़ा और ना ही किसी ईश्वर ने उनके लिए कोई आसमानी हवाई किताब उतारी। लेकिन सूअरों का समाज अपने अनुभवों से समझ चुका है कि “मैं सुखी तो जग सुखी” के सिद्धान्त पर जीने से श्रेष्ठ और कोई जीवन शैली नहीं है।
और यही सिद्धान्त आज यूनिवर्सल अर्थात सनातन सिद्धान्त के रूप मानव समाज भी स्वीकार चुका है।
चैतन्य आत्माओं ने जन्म लिया और अपने अनुयाइयों को सिखाया कि दुनिया को भूल जाओ और ध्यान करो, पूजा करो, व्रत-उपवास, रोज़ा-नमाज करो, भजन-कीर्तन करो, नाचो-गाओ, खुशियाँ मनाओ और मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जीते हुए मर जाओ।
ना तो आप देश को लुटने से बचा सकते हैं, ना ही प्राकृतिक सौन्दर्य और सम्पदा को बचा सकते हैं, ना ही वनों, खेतों और बाग-बगीचों को बचा सकते हैं। क्योंकि इन सब पर माफियाओं और लुटेरों का अधिकार है, वही इनके मालिक हैं और वे जब चाहें इन्हें नष्ट कर सकते हैं, जब चाहें प्राकृतिक जंगलों को मिटा कर कंक्रीट के जंगल खड़े कर सकते हैं। और आप कुछ नहीं सकते, क्योंकि आप तो इस दुनिया में सूअरों की तरह मस्त जीवन शैली जीने के लिए आए हैं।
आप ही क्या, सारा मानव समाज ही माफियाओं और प्राकृतिक संपदाओं को लूटने और लुटवाने वालों की दया, कृपा, नौकरी, पेंशन और दिहाड़ी पर आश्रित जीवन जीते हुए सूअरों की जीवन शैली अर्थात “मैं सुखी तो जग सुखी” के सिद्धान्त पर जीने के लिए इस दुनिया में आए हैं।
~ विशुद्ध चैतन्य
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