बचपन के दिनों में बाबूजी की बेलगाड़ी भर के ₹100 में खरीदे आम गांव में खूब खाए

🙏🌱🥰आज के हर एक पर्व त्यौहार में भी मैं अपने गांव के उस बचपन के जीवन को जर्मनी में रहकर भी उसमें पूरी तरह खोकर-रमकर पूर्ण करती हूं क्योंकि वह इतना खूबसूरत था जो आज भी भुलाए नहीं भूलता।
हमारे बाबूजी एक किसान थे, उनकी कई जगह गांव के बाहर कई खेत थे। जिसमें चावल, दाल, गेहूं, मक्का, तीसी लगा करते थे। सब कुछ अपने खेत का हुआ करता था शुद्ध हुआ करता था।
जब भी खेत से अनाज कट कर आता और जब कटाई होती तो हम अक्सर साइकिल से खेत जाया करते भैया के साइकिल पर बैठकर या बाबूजी के साथ और फिर उस अनाज के बैलगाड़ी के अनाज के काफी ऊपर बैठ कर वापस आते। जैसे एक राजकुमारी हो बहुत मजा आता और फिर पूरे गांव को उस बैलगाड़ी के टॉप पर बैठकर निहारते निहारते हंसते खेलते घर वापस आते।
और फिर घर के सामने अनाज का ढेर लग जाता था फिर बैलगाड़ी से जो बैल आते थे, उनसे चावल या गेहूं या दाल की कुटाई होती थी फिर साफ करके बोरी में भरकर बड़े-बड़े तराजू से अनाज नापे जाते थे फिर बाबूजी हाट बाजार कर अनाज गांव में ही बेचा करते थे। और हम तो बस उन तराजू पर खुद को नापा करते थे, खेला करते थे और उन अनाज की बोरियों के पीछे छुप जाया करते थे, आंख-मिचोली खेला करते थे।
उन अनाज के ढेर पहाड़ के ऊपर चढ़ा फिसला करते थे, उसके अंदर छुप जाया करते थे। बड़े मस्ती और मजे करते थे, अपने गांव मोहल्ले के बच्चों के साथ खूब आंख मिचोली खेला करते थे। कोई जाति भेद नहीं थे, बस अपनापन लिए सबों के साथ गांव में टिकोला जमा कर घर ले आया करते थे, फिर मां-बहनें उसकी आम के अचार बनाया करते थे।
🥭😍आम के सीजन में बैलगाड़ी की बैलगाड़ी आम जब गांव में और भी छोटे-छोटे गांव कस्बों से हमारे गांव में बेचने के लिए जब आते थे और जब नहीं बिका तो बाबू जी ने नीलामी में ₹101 में एक बैलगाड़ी आम🥭🥭 खरीदा फिर उसे हमारे चावल के गोदाम में पुआल के अंदर रख देते बाबूजी फिर हम लोग उसमें से पके हुए आम चुन-चुन कर बाल्टी में पानी भरकर कुछ घंटे उसमें ठंडा कर उस बाल्टी के चारो बगल मोढ़े पर बैठकर खूब आम खाया करते।🥭🥭🥭
जब मैं काफी छोटी थी 6-7 साल की लगभग तो अपने बाबूजी और मझले भैया के साथ अपने खेत जाया करती थी, उनके साइकिल पर बैठकर गांव खेतों के रास्ते में चारों बगल आम के पेड़ हुआ करते थे। और जब आम के सीजनों में जाया करते, साइकिल पर तो ढेले से मार कर भैया आम तोड़ दिया करते और हम आम चुना करते अपनी फ्रॉक में भर लेते फिर जमकर पेड़ के नीचे बैठ कर खाते थे। क्या आनंद के दिन थे वो, आज भी अगर जर्मनी में कभी आम नहीं मिलते तो फिर उस बचपन की यादों को ताजा कर संतुष्ट कर लेती हूं कि सच में हमने बहुत कुछ जिया और बहुत कुछ पाया है, खोया कुछ भी नहीं।
जैसे जैसे बड़े गए सब लोग शहरों की तरफ बढ़ने लगे भैया लोग पटना में आकर बस गए उनका व्यवसाय था फिर भैया ने कहा गांव की जमीन है बाबूजी बेच दीजिए चाइना अटैक करेगा और आप भी बुढ़े हो रहे हैं, अब क्या खेती-बाड़ी करना, आप पटना की दुकान पर बैठियें, यहां आराम कीजिए क्या जरूरत है, काम करने का। फिर क्या था बड़े भैया ने कहा हां बाबूजी गांव वाला जमीन बेच दीजिए और बाबूजी को करना पड़ा फिर उन पैसों को शहरी दुकान में इन्वेस्टमेंट कर दिया गया।
बाबूजी की जमीन बेचकर फिर सारे भाईयों ने कभी अपने जीवन में खेत न खरीद सके और न खेती कर सके। क्योंकि कभी सीखा ही नहीं खेती करना क्योंकि वह छोटे वर्ग का काम है, उससे आमदनी कम है, इसीलिए तो बेच दिया उन्होंने क्योंकि उन जमीन के पैसे से उन्हें अपनी आधुनिकता पूरी जो करनी थी और अपनी आधुनिकता पूरी कर भी जब जमीन नहीं खरीद सकते तो फिर वह आधुनिकता किस काम की?
उसके बाद घर में लोगों को जहरीले अनाज खरीद के खाने पड़ते, खेती की शुद्ध अनाज की जमीन खत्म कर दी गयी, शहरों की जहरीले अनाज खा कर जी रहे थे फिर क्या था बाबूजी भी बीमार पड़े डॉक्टर ने कहा बाबूजी को टीवी हो गया 6 महीने टीवी की दवा खाते रहे, डॉक्टर ने गलत ट्रीटमेंट कर दिया फिर पता लगा कि उन्हें लंगस कैंसर हो गया। बाबूजी 2001 में हमारी शादी के 2 साल बाद चले गए सबों को छोड़कर।
पर बाबूजी को कष्ट था, अपने खेती की जमीन अपने गांव छोड़ने का। क्योंकि वह उस समय बहुत ही शुद्ध वातावरण में रह रहे थे। जो वह कभी छोड़ना नहीं चाहते थे, पर घर के सदस्यों ने बोल बोल कर उन्हें छुड़ा दिया, वहां से हटवा दिया। उस गांव से जिसका कष्ट उन्हें बीमारी का रूप ले दिया। और शहरी जिंदगी की भाग दौड़ और जहरीले पर्यावरण और आधुनिकता भरी मानसिक ग्रसित समाज के लोगों के साथ जीने को मजबूर हो गए, ऐसी जिंदगी में उन्हें रहना पड़ा क्योंकि वह अपने गांव की खेती के साथ गांव के लोगों में जो अपनापन और सम्मान कमाया था, उसमें वह अपने आप में काफी खुश और आनंदित और संतुष्ट थे पर सबको कहां समझ में आनी थी और सबको अपनी आधुनिकता की पड़ी थी।
इसीलिए कभी भी अपने पूर्वजों को जबरदस्ती घसीट कर शहरों की तरफ नहीं मोड़ना चाहिए क्योंकि उन्होंने जीवन जिया है, उसी गांव से शानों शौकत कमाया है। उसी गांव से, और शहरी जिंदगी जेल की मुर्गी खाने में लाकर आप उन्हें कभी आनंदित नहीं कर सकते। अपने पूर्वजों को चाहे सोने के महल में ही क्यों न रखें आप उन्हें वो आनंद नहीं दे सकते।
हमारे घर के रिश्ते नाते के साथ आसपास गांव के हर लोग हमारे भाई-बहन, चाचा-चाची, दादा-दादी हुआ करते थे। सबों के साथ इतना अपनत्व और सम्मान हुआ करता था। और हमारे बाबूजी उस गांव के बहुत ही सम्मानित व्यक्ति थे। उस गांव की सम्मान को आप शहर में सम्मान नहीं दिला सकते, चाहे वह आपका शहर कितना भी बड़ा हो या आपका महले क्यों न हो?
हम अपने भाई बहनों से सबसे छोटी बहन थे, इसके कारण मां बाबूजी की सबसे लाडली थी, जिसके कारण मां बाबूजी की सेवा करने का भी मुझे बहुत सौभाग्य प्राप्त हुआ। मां बाबूजी जहां भी जाते, जिन भाई बहनों के पास जाते, मुझे अपने पास रखते जिससे मैं अपने मां बाबूजी और छोटे भाई की सेवा कर सकूं, उनके कपड़े धोने से लेकर उन्हें खाना बनाने और खिलाने के लिए हमेशा वे हमें अपने पास रखते। सच में मैं बहुत खुशनसीब हूं कि मैं अपने मां बाबूजी की बहुत सेवा कर पाई, मैं जर्मनी इतनी दूर रहकर भी आज उस आनंद भरी जिंदगी जो भी मैंने जिया और जो कुछ सीखा अपने मां-बाबुजी से फुले न समाती।
मुझे आज फिक्र नहीं उन रिश्ते नाते कि जिसे मैं काफी पीछे छोड़ आई हूं मैं किसी से न मिल सकती और न किसी से बात कर सकती क्योंकि मुझे पता है आज हर लोग बदल चुके हैं, पर उस बचपन के हर एक पल को याद कर आनंद के उस भीनी भीनी खुशबू की महक से झूम उठती हूं। मंद मंद मुस्काए उठती हूं, यही एहसास मुझे जिंदगी की हर पल को एक नई उमंग और एक नई आशा की किरण दे जाती है।
जिसके कारण ही आज भी हम अपने मां बाबूजी की तरह एक छोटे लेबल का किसानी जिंदगी जर्मनी में रहकर गुजार रहे और बहुत ही संतुष्ट और शांतिपूर्ण आनंददायक जीवन जी रहे।
क्योंकि हमें पता है एक गांव का महत्व, एक खेती का महत्व, आज की गिरते प्रदूषित शहरी पर्यावरण, स्वास्थ्य शुद्ध अनाज का महत्व और गांव की शुद्ध वातावरण का महत्व।
आज भी हम अपने #मां_बाबूजी की तरह एक छोटे लेबल के #किसानी #जिंदगी #जर्मनी में रहकर गुजार रहे और बहुत ही सुंदर #प्राकृतिक #स्वास्थ्यदायक व्यवस्था में #आत्मनिर्भर, #स्वतंत्र, #संतुष्ट, #शांतिपूर्ण और #आनंददायक #जीवन जी रहे, वह भी अपनी उसे परमात्मा की कृपा असीम क्षमताओं से अपने हाथों सी परमात्मा की बगिया बनाकर।
~ सरिता प्रकाश 🙏🌱🥰
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