गांव से शहर कमाने की दौड़ और होड़ में आपने जीवन में क्या खोया क्या पाया ?

🛑हर छोटे-छोटे गांव कस्बों के प्राकृतिक शुद्ध वातावरणों में रहने वाले हर एक युवा वर्ग आज गांव से निकलकर, पढ़-लिखकर डिग्री धारी बन, अप्राकृतिक शहरों में बस जाना चाहता है और शहरों में बस गुलाम हो जाना चाहता है?
🛑और उन शहरों में पढ़ लिख डिग्री धारी बन, अपनी थाली में खा क्या रहे है?
🛑अगर देखा जाए तो हर पढ़ा लिखा डिग्री धारी गांव से निकलकर उस प्रकृति मां की गोद से निकल कर, उस शुद्ध वातावरण से निकल कर शहरों में बस कर, पैसा, धन, दौलत, ऐशों आराम, रईसी कमा कर, शहरों की ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों में फ्लैट खरीद कर, अपनी थाली में खा क्या रहा है?
🛑वही गुलामी भरी नौकरी और पूंजीवादी व्यवसायिक कंपनियों में गुलामी की नौकरी कर, अपने जीवन की मौलिकता को खोकर, अपने जीवन की निजता को खोकर, अपने इस जीवन अहमियत को खोकर, गुलामी भरी भिख के पैसे के खैरात से जहर युक्त अनाज खा रहा है?
🛑वही रिसर्च के आधार पर बना जहरीले रसायन पद्धति से उगाई गई उनकी डिग्री धारी के आधार पर बनी, जहरीले रसायन युक्त अनाज खाकर, उन्ही डिग्री धारी रिसर्च के आधार पर, फार्मा माफिया पर सारे डिग्री धारी आधारित हो रहे, यहीं पूंजीवादी शैतानी व्यवस्था के जीवन चक्र है।
🟢जिस पेट भरने के लिए शुद्ध अनाज के लिए और ऐशों आराम के लिए कमाने निकला था, कि कमा कर, शांति से जिएंगे पर शहरों में जाकर पूरी तरह गुलाम बन गया और जहर युक्त अनाज खाकर फार्मा माफिया पर आधारित हो गया।
🟢उसे जिंदगी भर की पढ़ी-लिखी डिग्री धारी बनने का, यह नतीजा यह हुआ कि प्राकृतिक शुद्ध अनाज उस गांव की छोड़कर, आज शहरों में जहर युक्त अनाज खाकर अशिक्षित, भेड़ और पूंजीवादी व्यवस्था के गुलाम भर बनकर रह गये है।
🛑क्योंकि पढ़ी-लिखी डिग्री धारी भेड़ों को अपने जीवन में बहुत कुछ हासिल करना है, नाम, शोहरत, धन, दौलत, पैसा, बैंक बैलेंस और शहरों के ऊंचे ऊंचे बिल्डिंगों में ऊंची फ्लैट में रहना जो पसंद है, पर सांस लेने के लिए फार्मा माफिया के सिलेंडर गैस ऑक्सीजन जो चाहिए?
🛑आज की भेड़ों के समाज में 5 से 6 बार दिन में खाने की वैरायटी चाहिए, क्योंकि नेगेटिव ऊर्जा से मैन्युफैक्चरिंग किए गए अनाज, रासायनिक पदार्थ दिन भर में साबुन, सर्फ, शैंपू, Deo, कॉस्मेटिक जो यूज कर रहे, इसीलिए इतनी सारी जहरीले पांच टाइम खाने भी पचाने पड़ रहे।
🛑ऊपर से जो लोग गलत नजरियें से देखने के आदी हैं, गलत सोचने के आदि है, गलत सुनने की आदी हो चुके हैं, और अपने जीवन के दिनचर्या में भी गलत चीजें यूज करने के आदि है, ऐसे लोग दिन में 5 से 6 बार आठ बार भी कहते हैं तब भी भूख लगी रहती है, क्योंकि ऐसे लोगों को बहुत एनर्जी लगती है इन चीजों में सोने और करने में।
🟢जो कि उस अपने छोटे से गांव में शुद्ध वातावरण मिलती थी, शुद्ध पानी, शुद्ध हवा मिलती थी, शुद्ध प्राकृतिक अनाज मिलता था और हर गांव मोंहलों और सभी रिश्ते नातों का साथ मिलता था, क्योंकि सभी अपने थे, सकारात्मक ऊर्जा भारी वातावरण थी।
🟢सब कुछ खो दिया, अपनी उस डिग्री धारी और पूंजीवादी व्यवस्था की होड़ में शोर में और दौड़ में खो दिया, परिवार खो दिया, अच्छे लोग खो दिए, अपनी उस प्राकृतिक अपनत्व भरी विश्व बंधुत्व परिवार को खो दिये?
🟢जिसमें सिर्फ मानव ही नहीं थे, उस प्राकृतिक शुद्ध वातावरण गांव में, बल्कि हर छोटे-छोटे जीव-जंतु, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और रिश्ते नाते परिवार समाज से जुड़कर एक बंधुत्व भरा, और अपनत्व से भरा सम्मिलित परिवार समाज हुआ करता था, कहां खो गया वह परिवार और समाज?
🟢जिसके कारण बहुत सारे हर राज्य हर गांव हर क्षेत्र से पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, जीव-जंतु, बहुत से ऐसे जीव-प्राणी, वन-ज़गलें भी लुप्त हो रहे, क्योंकि कोई आज समाज में निस्वार्थ सेवा करने योग्य मानव समाज बचा ही नहीं, इससे प्रेम करने वाले?
🟢क्या पढ़ लिखकर डिग्री धारी शहरों में या किसी दुनिया के किसी कोने में उसे स्वर्ग भरी गांव की सम्मिलित विश्व बंधुत्व परिवार की अहमियत को खरीद सकेंगे?
🟢उस प्राकृतिक स्वर्ग से भरी गांव में अपने खेत की ताजी सब्जी होती थी, और ताजी कुएं, नदियों और झील की शुद्ध पानी होती थी, उस शुद्ध पानी को हम पीते थे, और हम उसे प्राकृतिक व्यवस्था में उसे गांव में प्राकृतिक साबुन, सर्फ, क्रीम, शैंपू, ही युज करते थे। जो प्रकृति के साथ घुल मिल जाए, न कि प्रकृति से उसे कुछ कोई क्षति पहुंचे।
🟢क्योंकि उस वक्त हम पढ़े-लिखे इतने डिग्री धारी नहीं थे, इसलिए हम ज्यादा शिक्षित और समझदार थे, प्रकृति के कष्ट को गहराई से समझते थे।
🟢क्योंकि उस समय हमें पैसे की दौड़ नहीं थी, धन दौलत, ऐशो आराम की हमें होड़ ही न थी।
🟢क्योंकि उस समय हमें आधुनिकता और भौतिकता भरी जिंदगी की भाग दौड़ में पूंजीवादी सरकारी व्यवस्थाओं की, डिग्री धारी गुलामी मैन्युफैक्चरिंग की कतार जो नहीं थी।
🛑आज तो हर एक मां-बाप अपने बच्चों को बिना डिग्री धारी गुलाम बनाए, जैसे लगता है कि इस धरा में जिंदा ही नहीं रह सकते?
🛑पूंजीवादी कंपनियों की गुलामी भरी नौकरी और पूंजीवादी सरकारों की तलवे चाटने की नौकरी किए बिना कोई भी परिवार आज जिंदा ही नहीं रह सकता?
🛑जैसे लगता है इस धरा में किसी डॉक्टर, साइंटिस्ट या इंजीनियर की नौकरी किए बिना मानव जीवन जैसे विकार और बेकार है?
🛑जैसे लगता है सरकारी नौकरियों की कतारो में आईपीएस, डिएम, डीएसपी, आर्मी, पुलिस अधिकारी, शिक्षक, रेलवे कर्मचारी की नौकरी किए बिना मानव जीवन विकार और बेकार है?
🟢फिर मेरा मानना है कि इस धरा पर कौन सी काबिलियत लेकर के आपने जन्म लिया था, क्या सिर्फ सरकारी नौकरी और पूंजीवादी गुलामी नौकरी के लिए?
🟢क्या आप में रत्ती भर में कोई क्षमताएं नहीं है, इस प्रकृति की स्वर्ग भारी धरा में आपकी कोई अहमियत नहीं?
🟢क्या इस धरा मानव जीवन में किसी भी सरकारी नौकरी या पूंजीवादी नौकरीयों के बिना मानव जीवन नीरस है? निर्लज है? शर्मसार है? अपाहिज है?
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सरिता प्रकाश🙏🌱💧🐝🐞🦋🐛🐌🐟🐧🦃🦚🦩🦆🦢🕊️🦜🦉🦅🐥🐤🐣🐔🐓🐦🐿️🐸🐇🦎🐴🐑🐘🐪🐄🐎
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