हमारे पुर्वज स्वतंत्र और आत्मनिर्भर थे

*यह है पूंजीवाद का मुर्गी का बाड़ा, जहां गड़ेरिया चारे के लिए इसमें रहते है, फिर पढ़-लिखकर डिग्रीधारक, डाक्टर, साइंटिस्ट, साइंटिफिक, रिसर्चर, डीएम, डीएसपी, यूपीए, यूपीएससी, पुलिस, अधीक्षक, आर्मी, इंजीनियर, इंजीनियरिंग कॉलेज के स्टूडेंट्स, अधिकारी, सेक्रेटरी और काॅल सेंटर के युवा पीढ़ीयों के गुलाम, दलाल, अध्यक्ष, चपरासी, सिक्योरिटी, गार्ड इन्हीं चिड़िया घरों में कैद रहते हैं।*
*🛑जहां ये पूंजीवादी गड़ेरिये पूरी विश्व चैंपियन, फुटबॉल, क्रिकेट्स के द्वारा उन्हीं पूंजीवाद TV show, Chanal, Stream Media क्रिमिनल माफियाओं द्वारा पूरे विश्व की मानवता को हांकने का कार्य करते हैं, हिप्नोटाइज करते हैं!
*🛑इसलिए जीवन भर पढ़ाई किये थे कि भेड़ बन जायेंगे, उन पूंजीवादी सरकारी गड़ेंड़ियों से हकवायेंगे?*
*🛑ये पूंजीवादी के ये गड़ेरिये पूरी विश्व फैले हुए है, वे अलग-अलग बहरूपिए के रूप में है, जैसे सारे धर्म ठेकेदार ये पुरोहित, पंडित, महंत और ये कुकूरमुत्ते की तरह उगे अचानक से कथावाचकों की झुंड, और विश्व भर के संगठन, संस्था, सम्प्रदायों में घुसे ये उनके दलाल, वहीं मानवता को हांक रहे।*
*🛑न कि ये सभी धर्म के ठेकेदार मानवता को प्रकृति के सुरक्षा हेतु प्रभावित कर रहे? बल्कि अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु सारे धार्मिक , आध्यात्मिक केन्द्रों को पर्यटन स्थल बना, उस पूंजीवादी व्यवस्था के अन्तर्गत व्यावसायिकिकरण स्थापित किया जा रहा।*
*🛑और मां बाप ने भी अपने बच्चों के लिए खेत खलिहानों को गिरवी रख, उसे बेच पढ़वाया था, गांव के वन-जंगलों को बेच इसी बाड़े-भाड़े और मुर्गीखानों में खुशी खुशी कैदी बनवाया था?*
*🛑कि तुम इस प्रकृति की स्वर्ग धरा से निकल कर, सिर्फ तुम उसे नष्ट होते जीवन भर, उस ऊंची-ऊंची कंक्रीट के जंगलों से देखना मजा आयेगा।*
*🛑क्योंकि तुमने तो उस प्रकृति की स्वर्ग भरी धरा को अपने हाथों बनाया नहीं, तुम्हारी एनर्जी तो खर्च हुए नहीं उसे तैयार होने में*
*🛑इसलिए इन स्वर्ग सी प्रकृति को नष्ट होने दें, सिर्फ खुद की बनाई आधुनिकता, भौतिकता, पैसा, रुपया, बैंक बैलेंस, धन, दौलत, नाम, शौहरत को जीवन भर समेटों।*
*🛑क्योंकि इसीलिए तो पढ़ाई की थी, ऊंची उड़ान, ऊंची डिग्रियां इसलिए तो हासिल की थी कि ये सिविलाइजेशन को ध्वस्त कर, फिर नयी सिविलाइजेशन पर रिसर्च करेंगे?*
*🛑प्रकृति मां के कोख को उजाड़ कर, जहरीली रसायनिक पदार्थ से मानवता को नष्ट होते देखते रह जाएंगे? जहरीली खेती से बंजर हो रही धरती को नष्ट कर, झंडा ऊंचा रहेगा हमारा गीतों से शुद्ध वातावरण बनायेंगे?*
*🛑पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, जीव-जंतुओं के लुप्त और नष्ट होते देखते रहेंगे। और नष्ट होते पर्यावरण, नदी, झरने, तालाब, झीलों को नष्ट कर, प्रकृति मां के सीने में खंजर भोंक 26 जनवरी और 15 अगस्त को सिर्फ गुलामी की झंडा लिये स्वतंत्रता की फूंक मार विजय का पताका लहरायेंगे?*
*🛑इसे ही कहते हैं विकास, मानवता का उत्थान, क्रान्तिकारी, परिवर्तन, कल्याणकारी, उज्जवल भविष्य और विजयीभव:???*
🟢इसलिए हम उस समय स्वतंत्र और आत्मनिर्भर थे , हमारे पुर्वज किसी के गुलाम नहीं थे, क्योंकि हमारे पुर्वज डिग्रीधारी नहीं थे, बल्कि जानकर थे, शिक्षित थे, जागरूक और चैतन्य थे, उन्हें किसी पूंजीवादी व्यवस्था के गुलामी के सार्टिफिकेट की जरूरत नहीं थी।
🟢अब सारी दिखावटी दुनिया से जागरूक, नैतिक और चैतन्य लोगों द्वारा भेड़-बकरियां के पूंजीवादी गड़ेरियों को लात मारने का समय आ गया है!
🟢अपनी आत्मनिर्भर कृषि कुटीर उद्योग व्यवस्था आधारित, स्वतंत्र जीवन को अपनाकर अपने बच्चों की भविष्य उज्जवल बनावें!
सरिता प्रकाश🙏✍️🌱💧
यदि कहा जाये कि आत्मनिर्भर बनो, तो लोगों को ऐसा लगता है मानो आत्महत्या करने के लिए कहा जा रहा हो। और इसका प्रमुख कारण है कि स्कूल में जब पहली बार कदम रखा था, तभी से यह बात मन में बैठा दी गयी थी कि तुम्हारा जन्म डिग्रियाँ बटोरकर चाकरी या गुलामी करने के लिए ही हुआ है।
आज आत्मनिर्भरता गाली बन गयी। पढ़ा-लिखा व्यक्ति यदि आज आत्मनिर्भर होने के लिए मोमोज़, पकौड़े या चाय बेचने लगे, तो यह मानकर करता है कि विवशता थी। यदि विवशता न होती, तो किसी सरकारी या गैर सरकारी कंपनी में माफियाओं की चाकरी या गुलामी करते शान से। और दुनिया भी बड़ा सम्मान करती कि देखो कितना योग्य व्यक्ति है कि माफियाओं ने इसे अपना गुलाम चुन लिया है।
यदि आपके पास थोड़ी सी भी भूमि है, उस भूमि में आप अपने लिए सुंदर मकान और सुंदर बगीचा बना लेते हैं, तो आप चैन का जीवन जी सकते हैं।
~ विशुद्ध चैतन्य



Support Vishuddha Chintan
