भारतवर्ष में वन संरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 के अंतर्गत जंगल और जमीन पर सरकारी पूंजीवादियों का कब्जा !

वन संरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 के तहत सरहद से 100 किमी तक संरक्षित वनप्रदेश का रणनीतिक कर, आदिवासियों की जमीनों पर कब्जा कर नए-नए खाद्यान्नों की उत्पत्ति को ही सरकारी विकास मानती है?
विश्व भर के आदिवासी क्षेत्र ही प्राकृतिक आधारित जीवन शैली अपना कर आत्मनिर्भर और स्वतंत्र है, न कि पूंजीवादी सरकारी आधार पर गुलाम है।
इसीलिए आदिवासी पिछड़े वर्ग ही पूंजीवादी सरकारों की आंख के कांटे हैं। इसीलिए भारतवर्ष में उनके जंगल जमीन पर कब्जा जमाने हेतु, हाल फिलहाल 2023 के इन्हीं महीनों में कानून पारित कर दिए गए हैं। जिससे कोई जागरुक व्यक्ति उनके विरुद्ध खड़ा न हो सके, उनके विरुद्ध कोई आंदोलन न कर सके?
इस मैप के सहारे देख सकते हैं आप की 2022 से मैप के कार्य रिक्त स्थान के जंगलों की कटाई पूरी तरह कर दी गई है, ध्यान से देखें। जिससे यह पूंजीवादी सरकारी व्यवस्था भारतवर्ष को रेगिस्तान बनाकर, पर्यावरण नष्ट कर, मानवता को फार्मा माफियाओं पर आधारित कर सके।
Maps Global Forest Change, Deforestation, Growth
https://earthenginepartners.appspot.com/science-2013-global-forest
इसीलिए नए कानून पारित कर दिए गए जिससे आदिवासियों के विरुद्ध कोई आंदोलन न कर सके?
और यह सारे भेड़ों के गुलाम समाज को डिग्री धारी बनाकर धर्म रिलिजन संप्रदायों और संगठनों में अटका कर भटकाकर जय कार्य लगवा रहे हैं कि तुम्हारी सुरक्षा परमात्मा करेगी?
और इधर आदिवासियों के सारे जंगल जमीन पर कब्जा जमाया जा रहा और सारा पढ़ा लिखा डिग्री धारी अशिक्षित भेड़ों का समाज समाधि में लुप्त है?
उन्हें पूंजीवादी सरकारी व्यवस्था के वेतन भोगी, गुलामी के आदि पूरी तरह से शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक रूप से गुलाम हो चुका है, बच्चा क्या है इन भेड़ों के समाज के पास?
सारे पर्यावरण नष्ट कर, रेगिस्तान बना इन्हें मंगल ग्रह पर रॉकेट से भेजेंगे। रिसर्च करने यह सारी पूंजीवादी शैतानी व्यवस्था के सहयोगी भेड़ों के गुलाम समाज को?
इसीलिए इन्हें धरती पर जहरीले खेती कर, जेनेटिक मिनिफाइड करवा जहर खिला रहे हैं। क्योंकि इन भेड़ों को दिमाग में ऐसे भी भूसा भरा हुआ है?
चाहे धनिया के पाउडर में गोबर की लीद पड़ जाए खा लेंगे ये, चाहे गाय के दूध में यूरिया दाल कर इनको पिला रहे हैं पूंजीवादी सरकारी व्यवस्था।
इन्हें इसीलिए तो पूंजीवादी सरकारी व्यवस्था पढ़-लिखकर डिग्री धारी बनाया था जहर खिलाने के लिए, और का भी रहे हैं गोबर बड़े मजे से मसाले के रूप में धनिया के पाउडर में घोड़े के लिद खाने के लिए ही इस धरती पर जन्म लिए थे?
इसीलिए आदिवासियों के जंगल स्वाहा हो जाए उन पूंजीवादी शैतानी सरकारी व्यवस्थाओं के द्वारा, मुंह से चू न करेंगे?
इन भेड़ों के भगवान नया अवतार लेंगे वहीं पर्यावरण को सही करेंगे उसके इंतजार में है? इनके सद्विप्र आएंगे दूसरे प्लानेट से अवतार लेकर वही इस सृष्टि को बचावेंगे?
इसीलिए तब तक घोड़े के लिद भरी धनिया के मसाले के पाउडर मिला रहे, जहरीले अनाज खिला रहे, मरे कॉकरोच से तैयार किया गया किटकेट के चॉकलेट अपने बच्चों को खिला रहे हैं, ऐसी बहुत सारे कीड़े से बने हुए अनाज अपने बच्चों को खिला रहे हैं साइलेंट जहर दिए जा रहे हैं पूंजीवादी व्यवस्था के द्वारा लेकिन मजे में खा रहे हैं?
लेकिन भेड़ों का गुलाम समाज अपने ही जातिवाद, धर्म, रिलिजन, संप्रदाय और संगठनों में अटका-भटका जयकारे लगाने में बिजी है, साथ ही उन्हें पूंजीवाद सरकारों के बनाई व्यवस्था में उनकी ही नौकरी कर, आज हर तबके का आदमी, उनके दलाल और सहयोगी होकर जिंदगी काट रहे।
उनसे हटकर अराजनीतिक व्यवस्था अपने समाज में बनाने की इनकी औकात नहीं, क्योंकि उनकी गुलामी और सहयोगी करना आसान जो है।
जिसके कारण हर एक आदिवासी समुदाय आज अकेले अपनी पीड़ा सह रहा, हर रोज आदिवासी क्षेत्र से भगाए जा रहे उन पूंजीवादी सरकारों द्वारा, मारे जा रहे हैं, उनके जमीन कब्जे किए जा रहे, उस पूंजीवादी सरकारी नौकरी करने वाला हर एक व्यक्ति दलाल माना जाएगा। पूंजीवाद का सहयोग करने वाला क्रांतिकारी नहीं। बल्कि काले अंग्रेजों के गुलाम भेड़ों का समाज बनकर रह गया है?
जो भी इन आदिवासी समूह को सपोर्ट करता है, उसे पूंजीवादी सरकारें नक्सलाइट घोषित कर देती है। या हिंदू विरोधी घोषित कर देती है इस तरह से षड्यंत्र कर आदिवासियों के साथ अत्याचार किया जा रहा और भेड़ों के गुलाम समाज के मथ्थे कुछ भी नहीं पड़ रहा?
और सारे रिलिजन, संप्रदाय अपने ही संगठनों में विभेदों में बंटकर रह गए हैं, उन्हें उन आदिवासी मानवता की पीड़ा और कष्ट पर दया भी नहीं आ रही। यह कैसी आध्यात्मिकता, धार्मिकता और नैतिकता है?
अगर यह सारे जंगल काट दिए गए ना तो किस दुनिया में रहोगे? अपने बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं भेड़ों के गुलाम समाज को? सारे जंगल अगर काट दिए गए आदिवासियों के तो सांस कहां लोगे फार्मा माफियाओं के गैस ऑक्सीजन सिलेंडर द्वारा?
अगर जंगल नष्ट हो गए तो पूरी मानवता नष्ट हो जाएगी। तुम्हारी धार्मिकता और नैतिकता आध्यात्मिकता जो इतने समय से कर रहे हो, उसे मानवता का उत्थान होना चाहिए था पर नहीं पूरी तरह ढोंग पर आधारित है तुम्हारी आध्यात्मिक!
बकसोहा के वनों में बहुत सारे प्राकृतिक आयुर्वेदिक दावों का भंडार है, महुवा और आँवले के फल, इन्हें बीन और बेचकर जंगल और इर्द-गिर्द, क़रीब 10,000 लोग पेट भरते हैं। गाँववासी कहते हैं कि महुवा-आँवला मिलाकर बाज़ार में बेचने पर एक साधारण परिवार भी सालाना 60,000-70,000 रुपये कमा लेता है।
“हम सभी जाते हैं जंगल में बीनते तभी ख़र्च चलता है. कट जाएगा तो फिर हम लोग क्या करेंगे? हमारे पास कोई खेती-बाड़ी तो है नहीं कि उसमें धंधा चलाकर बच्चे पाल सकें. हम तो जंगल के भरोसे पर हैं.
बक्सवाहा में कुछ ऐसे भी लोग मिले जिन्हें हीरों में न पहले दिलचस्पी थी, न आज है।
“आदिवासी जनजाति कहते हैं जंगल खुदेगा तो जो धूल उड़ेगी, वो ही मिलेगी हमें। हीरे थोड़ी मिलने वाले हैं हमें। जितने शहरी इलाक़े के गुलाम हैं उन्हें ही नौकरी मिलेगी, न कि हमें, हमें तो सिर्फ़ बस उसकी धूल मिलेगी”।
हजारों सालों पहले भारतवर्ष के जंगल रोमांचक और खतरों से भरा था। अनेक पेड़ पौधे और पशु पक्षियों का भंडार हुआ करता था, आज धीरे-धीरे बहुत सारे पशु पक्षी पेड़ पौधों की प्रजातियां हर जीव जंतु लुप्त हो रहे और लुप्त हो गए। घने जंगल और ऊंचे ऊंचे पहाड़ों के कारण यह देश धरती का सबसे सुंदरतम स्थान था।
तप और ध्यान करने के लिए प्राचीन काल में भारत सबसे उपयुक्त स्थान हुआ करता था। भारत के कई हजारों साल पहले वैदिक सभ्यता और ऋषि-मुनियों के काल में भारतवर्ष में अरण्य जंगल हुआ करते थे। सब कुछ धीरे-धीरे पूंजीवादी शैतानी सरकारी व्यवस्था द्वारा धीरे-धीरे सब कुछ नष्ट किए जा रहे हैं, आप इस मैप के आधार पर 2022 के जंगल के खाली रिक्त स्थानों को देख समझ सकते हैं।
सरिता प्रकाश 🙏✍️🧐🌱🐞🐝🦋🕸️🐜🐌🐟🐧🦃🦚🦩🦆🦢🕊️🦜🦉🦅🐥🐤🐣🐔🐓🐦🐄🐎🐎🐸🐼💚
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