शक्ति-सम्पन्न व्यक्ति यदि मूक-दर्शक बना रहे, तो सजा का अधिकारी है !

शर-शैया पर पड़े भीष्म से भी किताबी आस्तिकों, आध्यात्मिकों और धार्मिकों ने कोई सीख नहीं ली। केवल धार्मिक ग्रन्थों का रट्टा लगाते और लगवाते रहे, पूजा, पाठ, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास, भजन-कीर्तन और ध्यान को धार्मिक अनुष्ठान मानकर ढोते रहे। लेकिन ना तो आस्तिक हो पाये, ना आध्यात्मिक हो पाये, ना ही धार्मिक हो पाये।
बुद्ध के अनुयायी हों, या ओशो के या अन्य किसी भी बाबा, महंत, मंडलेश्वर, शंकराचार्य के अनुयायी और भक्त। सभी की स्थिति कौरव सभा में द्रौपदी चीर हरण के मूक-दर्शकों जैसी हो चुकी है। (विस्तृत लेख का लिंक कॉमेंट बॉक्स में)
कहते हैं लोग कि हमारा क्या दोष, हमने तो किसी पर कोई अत्याचार नहीं किया, हमने तो किसी का शोषण नहीं किया, हमने तो किसी पर अन्याय नहीं किया, तो फिर हमें सजा क्यों मिल रही है ?
भीष्म ने भी कौरव सभा में कोई अन्याय नहीं किया था, कोई अत्याचार नहीं किया था, कोई शोषण नहीं किया था, केवल मूक-दर्शक बना बैठा था। और उसी मूक-दर्शक बने बैठे रहने का परिणाम था कि भीष्म को शर-शैया मिली। कारण और भी रहे होंगे शास्त्रों के विद्वानों के अनुसार, लेकिन मैं इसे ही प्रमुख कारण मानता हूँ।
भीष्म को शर-शैया पर पड़े-पड़े अपने उन सभी प्रियजनों को मरते हुए देखना पड़ा, जिनकी सुरक्षा का दायित्व लिया था। उस हस्तिनापुर को उजड़ते हुए देखना पड़ा, जिसकी रक्षा करने की प्रतिज्ञा ली थी उनकी रक्षा की। द्रौपदी की तरह असहाय वह सबकुछ नष्ट होते हुए देखना पड़ा, जिसकी रक्षा की प्रतिज्ञा ली थी।
ठीक इसी प्रकार जब दंगा होता है, जब युद्ध होता है, जब प्रायोजित महामारी के आतंकी पूरे विश्व को बंधक बनाकर नागरिकों को लूटते और लुटवाते हैं, बेमौत मरने के लिए विवश करते हैं, तब जो सामर्थ्यवान, शक्तिसम्पन्न व्यक्ति मूक दर्शक बना तमाशा देख रहा होता है, उसे भीष्म की तरह सजा भुगतना पड़ता है।
हर वह शक्तिशाली, सामर्थ्यवान व्यक्ति (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) सजा का अधिकारी होता है, जो माफियाओं और देश को लूटने और लुटवाने वालों का सहयोगी, समर्थक या दास होता है, जो अधर्म, अन्याय, अत्याचार का विरोध करने की बजाय मूक-दर्शक बना वेतन, पेंशन और कमीशन भोग रहा होता है।
जब दंगा होता है, तो बाहर से आए भाड़े के अपराधी, हत्यारे मार-काट करते हैं आपके मोहल्ले में, आगजनी करते हैं और फिर गधे के सर से सींग की तरह गायब हो जाते हैं। बर्बाद होता है आपका मोहल्ला, आपका परिवार और कलंकित होता है आपका समाज कि फलाना समाज और फलाना समाज के बीच दंगा हुआ। फलाने संप्रदाय, फलाने जाति के लोगों ने फलाने के घरों में आग लगाई, स्त्रियों से बलात्कार किया, किसी को ज़िंदा जलाया।
कलंकित कौन हुआ ?
आपका समाज, आपका सम्प्रदाय, आपका मोहल्ला। अपराधियों पर कोई आंच नहीं आयी। कल पकड़े भी गए तो , गुजरात दंगा काण्ड, गोधराकाण्ड, पुलवामा-काण्ड के अपराधियों की तरह बेदाग बचकर निकल जाएंगे। और जिनका घर उजड़ा, जिनका परिवार उजड़ा वे सर पीट रहे होंगे कि हमारा क्या दोष था, हमने किसी का क्या बिगाड़ा था।
शूद्रों को पाप नहीं लगता भले वे उत्पात करें, या मूक दर्शक बने बैठे रहें। क्योंकि वे तो दास हैं और पूर्वजन्मों के अपराधों और मूकदर्शक बने रहने की सजा ही भुगत रहे हैं। इसीलिए उनका जीवन पालतू मवेशी और कोल्हू के बैल जैसी होती है। उन्हें तो केवल आदेशों का पालन करना होता है बिना कोई प्रश्न किए। वे तो केवल हाँके जाएँगे माफियाओं और देश को लूटने और लुटवाने वालों के द्वारा। उन्हें तो मरना और मारना होगा मालिकों के आदेशों पर बिना कोई प्रश्न किए भाड़े के गुंडों और हत्यारों की तरह।
लेकिन पाप लगता है उन्हें जो ब्राह्मण होते हैं, जो क्षत्रिय होते हैं, जो वैश्य होते हैं। क्योंकि उनके पास विवेक-बुद्धि थी सही और गलत को समझने की। उनके पास सामर्थ्य था, शक्ति था अधर्म का विरोध करने की। फिर भी भीष्म और कर्ण की तरह मूक दर्शक बने देश व जनता का चीर हरण देखते रहे। इसलिए उन्हीं की तरह असहाय अपनी और अपने परिजनों की मृत्यु देखने के लिए विवश होना पड़ता है।
अभी भी समय है। यदि आप वास्तव में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हैं, तो विरोध कीजिये माफियाओं और देश के लुटेरों का। अन्यथा घातक परिणाम भुगतना पड़ेगा भीष्म और कर्ण की तरह।
~ विशुद्ध चैतन्य
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