कहीं कोई सांपनाथ तो कहीं कोई नागनाथ….
चुनावी सीजन के फूल तो राजनीति में, गेरुवा के गुलशन गुलशन से ही उनके भेड़ों में खिलते हैं और राजनीति में दमकते हैं। और उन पूंजीवाद के गुलशन-गुलशन के फूल तो उन राजनीतिज्ञ के चमन-चमन से खिल कर, पुरोहितवाद में जा बरसते हैं और उन भेड़ों में जा दमकते हैं और फिर राजनीतिज्ञ चांद सितारों में जा चमकते हैं…
और फिर राजनीतिज्ञ और पुरोहितवाद गुलफाम गुलफाम हो, सभी फल फूल बाग-बाग हो रहे होते हैं…
ऐसे भगोड़ों के देश में भगवा डालकर, रोड पर झंडा लेकर दौड़ने से कोई हिंदू नहीं हो जाता…
वैसे ही जिनका पैसा, रुपैया, धन, दौलत अंतरराष्ट्रीय पूंजीवादी सरकारों के मोहल्तों पर चलती हो, वह देश पूरी तरह गुलामी का पट्टा लगा, कोई हिंदुत्व राष्ट्र नहीं बन जाता, तक उनके नए-नए एजेंडे चलते हैं…
यह तो चुनावी जुमले का सीजन है इसीलिए गमले में गेरुआ के फूल लगते हैं और राजनीति में गेरुवा के फूल तो उनकी गुलशन गुलशन तो उनके भेड़ों से ही खिलते हैं…
यह तो हिंदू जातिवाद के एजेंडे में अपने आप में धर्म ठेकेदारों और राजनीति का अड्डा है…
जहां परमात्मा को लेकर विभेद पैदा हो जाए, वहां कोई धर्म नहीं बल्कि आध्यात्मिक भी नहीं, वहां तो बस ढ़ोंग का गंदा खून है…
जहां परमात्मा हर रूप में कण-कण में बसते हो, वहां परमात्मा और धर्म सिर्फ बाजारों के मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे में बिकने कि चीज बन जाए, वहां तो उस परमात्मा को भी ऐसी मानव जाति खटकते हैं, ऐसे लोग कई इस जीवन में दर बदर भटकते हैं…
दुर्भाग्य है उसे देश का जहां धर्म के नाम पर हिंदुत्व के नाम पर, जहां धार्मिक स्थलों से तो खूंखार खतरनाक से खतरनाक गेरुधारी जहरीले सांप निकलते हैं…
वहां कहीं भी धर्म नहीं भटकते, परमात्मा नहीं भटकते, क्योंकि वहां तो आत्मा ही नहीं, जहां हिंदू राष्ट्र के नाम मानव जाति को भटकाते हैं, वहां तो कहीं कोई सांपनाथ तो कहीं कोई नागनाथ बनकर निकलते हैं…
जिस देश में धर्म और जाति के नाम पर खुब बवंडर मचते हैं, और देश के हिंदुत्वों से हिंदुराष्ट्र बनते है, वहां तो सिर्फ राजनीतिज्ञों के झंडे के नीचे तो एजेंडे और षड्यंत्र रचते हैं…
जिस देश में मां और देवी माता की पूजा की हो, वहीं देश की मां–बहन स्त्रियों की नग्नता का प्रदर्शन तो बेशर्मी की हदें पार कर चुकी है, उस देश के कोने कोने में हिंदुत्व की झंडे में शैतान ही नजराते हैं…
जिस देश में अहम् को पूर्ण करने हेतू, मां की नग्नतायें मंजूर है, पर हिंदू राष्ट्र पहले है, उस देश की धरती और मिट्टी में धर्म तो बिल्कुल ही नहीं, इंसानियत भी नहीं बल्कि इंसानियत के धर्म की हार हुई है।…
जिस देश में धर्म के नाम पर लड़ रहे आध्यात्मिक के नाम पर लड़ रहे, वहीं स्त्रियों की नग्नता की हास्परिहास हो हो, वहां उनकी दिव्य शक्तियों और आध्यात्मिकता, धार्मिकता और नैतिकता की हार हुई है…
जिस देश में मां, बहू, और पूंजीवादी व्यवस्था के बड़ी-बड़ी कंपनियों के प्रोडक्ट को बेचने हेतु, अपने ही शरीर की नुमाइश करने को उतारू होती हो, उस देश की मर्दों को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए…
उन परिवारों के पुरुषों को रत्ती भर भी पता नहीं चल पाता, कि एक स्त्री जब घर से बाहर निकाल बाजार को निकलती है, तो उस गंदगी भरी सड़ी पुरुष समाज के बाजार में एक मां बेटी किस तरह उन गंदी नजरों की शिकार होती है और दिनदहाड़े नीलाम होती है…
ऐसे पुरुष समाज हिजड़ो के बाजार हैं जो अपने मां-बहन और बेटियों को पूंजीवादी सरकारी नौकरियां में भेज कर, पैसे धन दौलत गाड़ी बंगले के लिए अपनी बेटियों को उनके लिए नुमाइशी करवाते हो…
ऐसे पुरुष समाज में बहन, बेटी और स्त्रियों की सरेआम उन पुरुष बाजार में, उनकी कंपनियों में अपनी ही बेटी बहनों की नीलामी करवाते हैं…
जिस देश में टीवी, सीरियल, यूट्यूब और रिल के माध्यम से मां, बहन, बेटियों की परवान रोज चढ़ती हो, उस देश की माता की पूजा और देवी की पूजा से नकारात्मकता नहीं मिट सकती, वहां अध्यात्म नहीं ढोंग है, उस अध्यात्म में खोट है…
कलयुगी भारतवर्ष की हिंदू राष्ट्र के राम और रावण के नाम पर, रोज सीता और द्रौपदी के चीर हरण कर मानव जाति मुखदर्शी होते, पूरी मानवता को बली का बकरा बनाते है, यह तो ब्रिटिश की गुलामी से बद्तर काले अंग्रेजों की राजनीति है, न कि मानव जाति की पारंगत मानव धर्म की अग्रगति और प्रगति…?
सरिता प्रकाश