कर्मयोग नहीं है कर्मवाद

अधिकांश लोग कर्मवाद और कर्मयोग को एक ही मानते हैं। जबकि कर्मवाद और कर्मयोग में जमीन आसमान का अंतर होता है।
कर्मवाद क्या है ?
कर्मवाद बिलकुल वैसा ही वाद है, जैसा गांधीवाद, अंबेडकरवाद, पेरियारवाद, पैगंबरवाद, समाजवाद, साम्यवाद….आदि। कर्मवादी लोग दीमक, चींटियों और मधुमक्खियों की तरह मेहनती होते हैं और केवल कर्म करते रहते हैं वेतन, पेंशन, दिहाड़ी के एवज में।
कर्मवादी लोगों को जो भी कार्य दिया जाता है, वे उसे करने लगते हैं बिना विचारे कि इससे लाभ होगा या हानी होगा।
कर्मवादी लोगों की बहुत डिमांड रहती है, क्योंकि ये अत्यंत उच्च कोटी के मजदूर, गुलाम, नौकर, सेवक होते हैं। सेना और पुलिस में भी कर्मवादियों का बहुत सम्मान होता है, क्योंकि इनसे किसी निर्दोष की हत्या करवा लो, या पूरी की पूरी बस्ती बर्बाद करवा लो, या पूरे देश को बंधक बनाकर फर्जी सुरक्षा कवच चेपवा लो, ये बिना कोई प्रश्न किए कर देंगे।
कर्मवादी लोगों को सरकारी नौकरियों में बड़ी रुचि रहती है, इसीलिए बड़ी मेहनत से पढ़ाई करते हैं नौकरी पाने के लिए, ना कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए।
आज समस्त विश्व जो बर्बाद हुआ जा रहा है, वह इन्हीं कर्मवादियों के कारण हो रहा है।
जबकि कर्मयोग पर चलने वाले कर्म तो करते हैं, लेकिन विवेक बुद्धि का प्रयोग करते हुए करते हैं। कर्मयोगियों को नौकर या गुलाम नहीं बनाया जा सकता, न ही राजनैतिक पार्टियों की जयकारा मंडली में शामिल किया जा सकता है। कर्मयोगी वे लोग होते हैं, जो कर्म के साथ विवेक बुद्धि का प्रयोग करते हैं।
और जो कर्म के साथ विवेक-बुद्धि का प्रयोग करते हैं, उनसे माफियाओं और उनका गुलाम समाज दूरी बनाए रखना पसंद करता है। क्योंकि कर्मवादियों के लिए यह विश्वास कर पाना असंभव है कि कर्म के साथ बुद्धि-विवेक का भी प्रयोग किया जा सकता है।
सत्य तो यह है कि कर्मवादियों के लिए बुद्धि-विवेक नामक चीज पर विश्वास करना बिलकुल वैसा ही है, जैसे नास्तिकों का पुनर्जन्म, पूर्वाभास, टेलिपैथी आदि पर विश्वास करना।
क्या लाभ ऐसे कर्म और ऐसे कर्मवाद का ?
कभी सोचा है आपने कि जो अपना नहीं, उसके लिए आप दिन रात मेहनत करते हैं, लेकिन जो अपना है, उसके लिए आपके पास समय ही नहीं ?
नाम दूसरों का दिया हुआ।
पहचान दूसरों का दिया हुआ है।
धर्म/मजहब/रिलीजन दूसरों के द्वारा थोपा हुआ।
नौकरी दूसरों की दी हुई और दूसरों के लिए किया जाने वाला कर्म।
पैसा कमाया तो दूसरों के लिए। (इस सत्य का पता तब चलता है जब आप वसीयत लिखवाते हैं और उसमें आपका नाम नहीं होता)
गाड़ी खरीदी, तो दूसरों को दिखाने के लिए।
मकान खरीदी तो दूसरों को दिखाने के लिए।
शादी-विवाह करते हैं कुछ लोग, तो दूसरों को दिखाने या खुश करने के लिए। जैसे कि माता-पिता चाहते थे शादी कर लो तो कर ली, अब ढो रहे हैं मन मारकर।
शादी विवाह में खर्चा किया तो दूसरों को दिखाने के लिए कर्जा लेकर।
यानि जो कुछ भी कर रहे हैं, सब दूसरों के लिए, अपने लिए तो सोचने तक का समय नहीं।
क्या लाभ ऐसे कर्म का, जिससे स्वयं का कोई लाभ न हो रहा हो ?
ये नाम, ये शोहरत, या दौलत, ये गाड़ी, बंगला, रिश्ते-नाते….सब यहीं छूट जाने हैं। जाते समय क्या लेकर जाओगे अपने साथ और क्या बताओगे ऊपर जाकर कि क्यों गए थे पृथ्वी पर ?
नदियों, तालाबों, सागरों में कूड़ा फेंकने ?
जंगलों, खेतों को नष्ट करके कंक्रीट का जंगल खड़ा करने ?
~ विशुद्ध चैतन्य
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