“गण के तंत्र” गुलामी में तब्दील, अधर्म की पराकाष्ठा पर स्वतंत्रता की विजय है?
“गण के तंत्र” गुलामी में तब्दील, अधर्म की पराकाष्ठा पर स्वतंत्रता की विजय है!
पूंजीवाद के गुलाम नौकरी के पट्टा पहना स्वतंत्रता की बात करते हैं?
पूंजीवादी सरकारी व्यवस्था मानवता को किस तरह गुलामी का पट्टा पहना अपना शिकार करती है?
परमात्मा ने हमें प्रकृति के स्वतंत्र व्यवस्था में हमें पूरी तरह प्रकृति के साथ घुलमिल कर स्वतंत्र जीने की पद्धति दी है, पर अब सारी मानवता गुलामी जीवनशैली अपनाकर अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता की बात करते हैं?
लेकिन आज समाज में पूंजीवादी सरकारी व्यवस्था किसी न किसी को कंट्रोल करने में लगा है। पूरी तरह गुलाम बनाकर, भेड़, बकरी और मुर्गी के बाड़ें में डालकर कैद करने में लगा है और भेड़ों की समाज स्वतंत्रता की बात करता है?
यह सारी पूंजीवादी व्यवस्था किसानों के अनाज के मूल्य को दबाकर और उससे छीनकर, बड़े-बड़े मॉल्स के आधार पर जहरीले अनाज परोस रहा, हर एक परिवार के दिनचर्या के जहरीली चीज परोस पूरी मानवता को गुलाम बना रखा है। और गुलाम भेड़ों का समाज देश की स्वतंत्रता की बात करता है?
और जो भी उनके गुलाम दलाल और सहयोगी इस पर इस पर कार्य कर रहे हैं आर्मी, डीएम, डीएसपी, एसपी, पुलिस बनकर सरकारों के सहयोगी बने हुए हैं। या पूंजीवादी कंपनियों के गुलाम बने हुए हैं, उन सबों से पूरे विश्व में गुलामी करवा रहे हैं। क्योंकि इनके ऊपर भी कोई इनको कंट्रोल कर रहा होता है। यहां कोई भी क्षत्रिय नहीं है सारे के सारे नौकर गुलाम शुद्र है।
फिर भी लोग झूठी स्वतंत्रता की झंडा फहरा दिल को आसानी से तसल्ली दे लेते हैं कि मेरा देश स्वतंत्र हुआ था।
क्योंकि यह पावर और पैसे के आधार पर उस चक्रव्यूह में फंसे होते हैं, जैसे जूता सिलने वाला मोची, या सड़क छाप नाई और वैसे ही पूंजीवादी सरकारी व्यवस्था के गुलाम का जीवन चक्र एक दूसरे से पूर्ण होता है। वैसे ही इन सारे गुलामों की खानापूर्ति होती है, और बात करते हैं स्वतंत्रता की?
ऐसे लोग पूंजीवादी सरकारी व्यवस्था के विरोध नहीं कर सकते, पीछे, मुंह भी तो नहीं खोल सकते हैं तो फिर ऐसी गुलामी भरी झूठी स्वतंत्र जिंदगी का क्या फायदा?
क्योंकि पैसे के आधार पर किसी को भी गुलाम बना देना भेड़, बकरी और मुर्गा बना देना आसान काम है। नौकरी के गुलामी का पट्टा गले में बांध, वह जब चाहे अपना शिकार कर सकते हैं। ऐसी गुलामी भरी जिंदगी को लोग स्वतंत्र देश मानते हैं?
जिसके कारण उनके जीवन की बेसिक चीजें छीन ली जाती है, उनका स्वतंत्रता का अधिकार, निजता का अधिकार, उनकी मौलिकता का अधिकार खत्म कर दी जाती है। उस देश के पूंजीवादी सहयोगी तबके के गुलाम खुद को स्वतंत्र देश का नागरिक मानते हैं?
पूंजीवादी सरकारी व्यवस्था मानवता को गुलामी की नौकरी का पट्टा गले में पहना कर, बली का बकरा बना, अपनी उल्लू सीधा कर रही होती। और सारे गुलाम तबके के लोग खुद को स्वतंत्र देश की स्वतंत्र नागरिक मानते हैं?
ऐसे ही सारी रिलीजन और संप्रदाय ढ़ोंगवादी, धार्मिकता अध्यात्मिकता के आधार पर, बड़े-बड़े व्यवसाय केंद्र खोलकर पूरी मानवता को डरा डरा कर गुलाम बना भेड़, बकरी और सूअर बना दिया जाता है। और भेड़ों का गुलाम समाज उस देश का उचित तबके का स्वतंत्र नागरिक मानता है?
और यह सारी पूंजीवाद सरकारी व्यवस्था के दलाल पंडित, पुरोहित, मुल्ला मौलवी, पादरी, महंत कथावाचक अपने-अपने कथा के माध्यम से कहते हैं बाल काट दो भगवान को चढ़ा दो, कोई कहता है सर ढक लो, कोई कहता है बुर्का पहन लो, नहीं तो आपको पाप लगेगा, परमात्मा नाराज होंगे। ऐसे पूंजीवादी व्यवस्था के सहयोगी गण गुलाम दलाल खुद को देश के स्वतंत्र नागरिक मानते हैं?
पर परमात्मा की प्रकृति व्यवस्था में जिसने पेड़ पौधे, पशु पक्षी, जीव जंतु, तारे, नक्षत्र, धरती, आकाश, सूरज को पूरी तरह स्वतंत्र जीने की व्यवस्था दी है, उनको क्या प्रभाव पड़ी है कि आप क्या पहने, क्या न पहने? पर यह सारी पूंजीवादी गुलामों के दलाल खुद को स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक मानते हैं?
पर प्रकृति की स्वतंत्र व्यवस्था में आपने प्रकृति के जीव प्राणियों को कितना कष्ट दिया, उस पर प्रकृति अपने नियम कानून बना रखे हैं। मानवता का हनन, धरती का खनन क्या जा रहा और किस आधार पर स्वतंत्र विकासशील मानव मानते हैं?
और यह सारे रिलीजन और संप्रदाय धर्म के नाम पर गुमराह कर मानवता पर दबाव देकर अपनी बदसलूकी करता है इसीलिए आप सब जागरूक होवें। यह स्वतंत्रता नहीं बल्कि गुलामी की पराकाष्ठा है!
इस धरती पर ‘धर्म’ कोई रिलीजन संप्रदाय नहीं। बल्कि ‘धर्म’ तो निस्वार्थ एक मां भी अपने बच्चे की सेवा करती है, पेड़ पौधे भी निस्वार्थ फल देते हैं, वे अपने धर्म कर्म से सृष्टि को सकारात्मक ऊर्जा निस्वार्थ दे रही। जिस तरह एक मां भी अपने बच्चे की निस्वार्थ जीवन भर सेवा और प्रेम दे धर्म को पूर्ण कर रही है। न कि धर्म के नाम पर शोषण और अत्याचार करती हैं।
मानव को अपनी बुद्धिमता और क्षमताओं को यूज करना चाहिए कि किस तरह पूंजीवादी सरकारी व्यवस्था मानवता को अंदर से खोखला करती जा रही है। न कि स्वतंत्र मानव जाति विकसित कर रही?
हमारी शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और अर्थनैतिक विकास के लिए कृषि के उद्योग के दर्जा पर हमें मजबूत और स्वतंत्र होना चाहिए था!
न कि पूंजीवादी व्यवस्था आधारित “गण के तंत्र” को गुलाम तंत्र में तब्दील कर अधर्म की पराकाष्ठा पर स्वतंत्रता की विजय है?
उसके लिए हमें बिना पूंजीवादी सरकारी व्यवस्था के अपनी आत्मनिर्भर स्वतंत्र जीने की व्यवस्था अपनानी चाहिए, जिससे हमें कोई जहरीली अनाज और जहरीली दवा खिलाकर गुलाम बना भेड़, बकरी मुर्गी न बना सके, बल्कि हम प्रकृति के साथ जुड़कर पूरी तरह स्वतंत्र हो सके।
इसीलिए हमारी अपनी छोटी सी जमीन होनी चाहिए, जिसमें हम अपने परिवार के लिए अपनी स्वास्थ्यादायक प्राकृतिक अनाज की पूर्ति कर स्वतंत्र हो सकें, और स्वस्थदायक प्राकृतिक दवाओं के पेड़ पौधे लगाकर, अपनी स्वास्थ्य और समाज को स्वास्थ्य देकर उन्हें भी पूंजीवादी सरकारी जहरीले गुलामी से निकाल आत्मनिर्भर बना सके।
बिल्कुल यही पहचान और नजरिया हमें जागरुक बना, स्वतंत्र बनने की क्षमता देती है और परमात्मा की और प्रकृति की पूरी कायनात हमें हर तरह से स्वतंत्र होने को मदद करती है। जब हम पूरी मानवता के लिए शुभ दृष्टि और शुभ विचार रखते हैं तभी हमारी आजादी पूर्ण होती है!
सरिता प्रकाश 🙏✍️🌱💧🐝🐞🪲🦋🐛🐝🪲🐧🦆🦃🦚🦩🦢🦤🕊️🦜🦅🐸