स्वयं का जाना ज्ञान अविश्वसनीय दूसरों का जाना ज्ञान विश्वनीय क्यों माना जाता है ?

कहते हैं लोग मुझसे कि खुद के ज्ञान को परमसत्य मत मानो।
मैं स्वयं का जाना ज्ञान को परमसत्य नहीं मान सकता, लेकिन आप लोग दूसरों का जाना ज्ञान को परमसत्य माने बैठे हैं, तो क्यों ?
क्या केवल इसलिए कि दूसरों के ज्ञान में खुद कि कोई जवाबदेही नहीं होती ?
जिसे आप लोग ईश्वरीय ग्रंथ माने बैठे हैं वह ईश्वरीय ग्रंथ नहीं है, लेकिन आप माने बैठे हैं कि पूर्वजों ने कहा है तो सही ही कहा होगा। और यदि आपके उस ईश्वरीय, आसमानी, हवाई किताबों की आलोचना कर दे कोई, तो ईशनिन्दा हो जाती है, मारने काटने निकल पड़ते हो ?
आज ओशो के प्रवचन का एक रिफरेंस पोस्ट किया, तो ओशो के भक्त चले आए कहने कि ओशो ने ऐसा नहीं कहा कभी। लेकिन यही ओशो के भक्त और संन्यासी कभी प्रायोजित सरकारी महामारी और उसकी फर्जी सुरक्षा कवच के विरुद्ध चूँ तक नहीं कर सके थे।
मेरी समस्या तो यह है कि यदि आपका पंथ सही है, तो फिर बाकी पंथ गलत होने चाहिए थे। यदि आपका कुरान सही है, तो फिर गीता, बाइबल गलत होने चाहिए थे ? यदि हिंदुइज़्म सही है तो इस्लाम गलत होना चाहिए, यदि इस्लाम सही है तो बौद्ध गलत होना चाहिए और यदि सभी सही हैं, तो फिर गलत क्या है ?
यदि झूठ बोलना गलत है, तो झूठ बोलने वाले नेता, वकील, मार्केटिंग मैनेजर सम्मानित क्यों हैं ?
यदि रिश्वतलेना, घोटाले करना गलत है, तो फिर रिश्वतखोर घोटालेबाज सरकारी अधिकारी, नेता मंत्री सम्मानित क्यों हैं ?
मुझे बताइये कि सही क्या है ?
और जो गलत है, उसका विरोध करने का साहस क्यों नहीं है समाज में ?
और यदि गलत का विरोध करने का साहस नहीं, तो फिर ये नैतिक, अनैतिक, पाप-पुण्य की नौटंकी किसी गरीब, बेबस लाचार पर ही क्यों थोपी जाती है ?
बहुत से लोग साइंटिफिक सोच का होने का दावा करते हैं। लेकिन ये साइंटिफिक सोच वाले आज तक मुझे उत्तर नहीं दे पाये कि जो महामारी राजनैतिक रैलियों में जाने से डरती है, वही महामारी स्कूलों में पहुँच जाती है, मंदिरों, मस्जिदों, तीर्थों में पहुँच जाती है। यहाँ तक कि शादी ब्याह में दावत उड़ाने तक पहुँच जाती है। ऐसा क्यों ?
आज तक साइंटिफिक सोच के विद्वान नहीं बता पाये कि सरकारी महामारी सरकारी टाइमटेबल पर ही शहर घूमने क्यों निकलती थी, बाकी समय कहाँ आराम करती थी ?
किसी भी साइंटिफिक सोच के विद्वान ने लिखित गारंटी नहीं दी कि प्रायोजित महामारी का सुरक्षा कवच लेने से प्रायोजित महामारी से सुरक्षा मिलेगी, लेकिन फिर भी आँख मूँद कर चेपे चले जा रहे हैं, केवल इसलिए क्योंकि नाले की गैस से चाय बनाने वाले साइंटिस्ट ने कह दिया, इसलिए परमसत्य हो गया।
~ विशुद्ध चैतन्य
Support Vishuddha Chintan
