मानव निर्मित विधि-विधानों की पुस्तकें हैं, लेकिन सनातन धर्म की कोई पुस्तक नहीं है !

गौतम बुद्ध आए और “बुद्धम शरणम गच्छामी” का मन्त्र दे गए जपने के लिए।
नानक आए और “एक ओंकार सतनाम” मन्त्र दे गए जपने के लिए।
ठाकुर दयानन्द देव आए और “जय-जय दयानन्द, प्राण गौर नित्यानन्द” मन्त्र दे गए जपने के लिए।
श्री आनन्दमूर्ति जी आए और “बाबा नाम केवलम” मन्त्र दे गए जपने के लिए।
इसी प्रकार जितने भी गुरु आए सभी कोई न कोई मन्त्र जाप दे गए जपने के लिए। और इनके नाम पर अलग अलग संप्रदाय, पंथ भी बने और सभी अपने अपने गुरुओं, पंथों को महान बताते घूम रहे हैं।
ओशो आए तो उन्होंने भी एक कम्यून बनाया नाचने, गाने और ध्यान करने वालों का। सभी ओशो संन्यासी अपनी मस्ती में नाच गा रहे हैं, झूम रहे हैं।
क्या अलग अलग गुरुओं द्वारा स्थापित किए गए पंथों में कोई भिन्नता है ?
सिवाय पूजा-पाठ, कर्मकाण्ड और ड्रेस कोड के कोई भिन्नता मुझे तो नजर नहीं आती। सभी माफियाओं और लुटेरों के गुलाम हैं, सभी इस्कॉन की तरह जय-जय, स्तुतिवन्दन, भजन कीर्तन मंडली से अधिक और कुछ नहीं। हाँ इनमें से कोई भंडारा भी कर रहा, कपड़े भी बाँट रहा हो, दान-दक्षिण भी कर रहा हो, तो भी दूसरों से स्वयं को अलग या महान दिखाने के लिए कर रहा होगा। लेकिन उससे देश या समाज का कोई भला तो हो नहीं रहा।
कोई माफियाओं के गुलाम बाबाओं, नेताओं, वैज्ञानिकों, डॉक्टर्स, सरकारों, राजनैतिक पार्टियों, संगठनों, संस्थाओं का अंधभक्त है, तो कोई किसी ना किसी गुरु, पीर, फकीर, पैगंबर, अवतार द्वारा स्थापित सम्प्रदाय, समाज, पंथ और आसमानी, हवाई, ईश्वरीय किताबों का अंधभक्त।
माफिया देश को लूट रहे हैं और जनता ताली-थाली, बर्तन बजाकर नाच रही है। स्तुति-वंदन, भजन-कीर्तन, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास….सब कुछ चल रहा है। केवल नहीं चल रहा तो माफियाओं और देश को लूटने और लुटवाने वालों का विरोध और बहिष्कार।
यदि अंधविश्वास मिट जाए, तो संस्थाएं, पार्टियां, संगठन, सरकारें बिखर जाएं
अंधविश्वास की शक्ति का अनुमान लगाना असंभव है। यदि अंधविश्वास मिट जाए, तो पारिवारिक सम्बन्ध बिखर जाए।
यदि अंधविश्वास मिट जाए, तो संस्थाएं, पार्टियां, संगठन, सरकारें बिखर जाएं।
यदि अंधविश्वास मिट जाए, तो शिक्षण संस्थाएं, धार्मिक संस्थाएं, आध्यात्मिक संस्थाएं, तीर्थ और धार्मिक स्थल सभी ध्वस्त हो जाएं।
ये अंधविश्वास की ही शक्ति है कि झूठ पर टिके नेता, बाबा, पार्टियां, गोदी मीडिया और सरकारों का वर्चस्व समस्त विश्व में स्थापित है। और सच और धर्म का साथ देने वाले अंधेरों में गुम हैं।
ये अंधविश्वास की ही शक्ति है कि प्रायोजित महामारी से आतंकित होकर फरार हो चुके ईश्वर/अल्लाह, देवी, देवताओं के मंदिर, मस्जिद, दरगाह, तीर्थों पर आज भी भीड़ जमा होती है स्वार्थियों, लोभियों की।
ये अंधविश्वास की ही शक्ति है कि प्रायोजित महामारी काल में फार्मा माफियाओं के आदेश में फर्जी इलाज कर निर्दोषों को बेमौत मारने और लूटने वाले अस्पतालों और डॉक्टर्स के पास भीड़ घटने की बजाए, बढ़ती ही जा रही है।
अंधविश्वास की इसी महान शक्ति के कारण आज तक विश्व अंधविश्वास से मुक्त नहीं पाया।
और जब तक वैज्ञानिक, राजनैतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, जातिवादी अंधविश्वासों से ग्रस्त है, तब तक किसी नए पंथ, नए सम्प्रदाय, नयी पार्टी और नयी सरकार की आवश्यकता नहीं है। अब हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध होने की भी आवश्यकता नहीं है, और ना ही आवश्यकता है कॉंग्रेसी, भाजपाई, सपाई, बसपाई होने की। क्योंकि किसी भी दड़बे में चले जाओ, करना तो वही है, जो सदियों से करते चले आ रहे हो। अर्थात माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी, गुलामी, स्तुति-वंदन और जय-जय।
और जब यही सब करना है, तो उसके लिए दड़बे में जाकर अपनी स्वतन्त्रता, निजता और मौलिकता खोकर माफियाओं के गुलाम ठेकेदारों के अधीन होने की आवश्यकता क्या है ?
जितने भी धार्मिक ग्रंथ हैं, जितने भी कानून की किताबें हैं, वे सभी केवल निर्बलों, निर्धनों, असहायों को रटाने, पढ़ाने और उपदेश देने के लिए होते हैं। जो आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक रूप से समृद्ध व शक्तिशाली हैं, उनपर ये सब लागू नहीं होते। माफियाओं और लुटेरों को ना तो नाम जाप करना पड़ता है, ना ही मंदिर, मस्जिद, देवी-देवताओं की परिक्रमा करना पड़ता है, ना काँवड़ उठाना पड़ता है। क्योंकि उनके एक आदेश पर सभी मंदिर, मस्जिद, तीर्थ के ठेकेदार ताला लगाकर फरार हो जाते हैं, ईश्वर/अल्लाह, देवी देवता मास्क लगाकर हिमालय की कन्दराओं या सागर की गहराई में दुबक जाते हैं।
सिवाय मनुष्यों के दुनिया का कोई भी प्राणी किताब पढ़कर धार्मिक नहीं बनता, वह जन्मजात धार्मिक होता है। सिवाय मनुष्य के कोई भी प्राणी ना तो बलात्कार करता है, ना ही प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाकर पूरे विश्व को बंधक बनाकर सामूहिक बलात्कार करता है, न ही कत्ल-ए-आम करता है।
इसीलिए अपनी एक अलग दुनिया बसाओ और एकान्त में रहो और स्वतन्त्र जीवन जियो अपनी मस्ती में। क्योंकि सनातन धर्म की कोई किताब नहीं है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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