आध्यात्मिक गुरुओं को सैक्स और मांसाहार से सर्वाधिक घृणा क्यों है ?

आध्यात्मिक, धार्मिक, सात्विक लोगों की शिक्षाओं पर ध्यान दें, तो पाएंगे कि उन्हें सैक्स और मांसाहार से सर्वाधिक घृणा है। चाहे कोई भी दार्शनिक, आध्यात्मिक गुरु रहा हो, यहाँ तक कि ओशो को भी यदि सुनें तो पाएंगे कि वे भी सैक्स और मांसाहार के विरुद्ध थे।
अर्थात जो व्यक्ति सैक्स और मांसाहार से मुक्त हो जाता है, वही वास्तव में आध्यात्मिक, सात्विक, धार्मिक, नैतिक कहलाने का अधिकारी होता, फिर चाहे वह जनता को लूटे, देश को लूटे या पूरे विश्व को फर्जी महामारी के आतंकियों का बंधक बनवा दे, वह परम पूजनीय ही माना जाएगा।
अब प्रश्न यह कि यदि सैक्स इतना ही घृणित है और आध्यात्मिक मार्ग पर इतना ही बाधक है, तो फिर विवाह सम्मानित क्यों है ?
क्या विवाहित लोग सैक्स नहीं करते ?
यदि मांसाहार इतना ही घृणित है तो फिर मांसाहारियों द्वारा निर्मित वस्तुओं और आविष्कारों का प्रयोग करते क्यों हैं शाकाहारी लोग ?
क्यों गर्व होता है जब मांसाहारी देशों में नौकरी मिल जाती है, या फिर शाकाहारियों के बच्चे मांसाहारी देशों में सेटल हो जाते हैं ?
क्यों गर्व होता है शाकाहारियों, फलाहारियों, दुग्धाहारियों को जब किसी को शेर कहा जाता है और क्यों अपमानित महसूस होता है जब गधा कहा जाता है ?
क्यों शाकाहारी लोग मांसाहारी राजनेताओं, मंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों से मिलकर गौरवान्वित होते हैं, क्यों उनके स्वागत में दुनिया भर का आडंबर करते हैं ?
सबसे बड़ी बात यह कि कि जब सैक्स इतना घृणित है, निंदनीय है, तो फिर माता-पिता का सम्मान क्यों, जिनके कुकर्मों के कारण जन्म हुआ उन आध्यात्मिक गुरुओं का जो सैक्स और मांसाहार के घोर विरोधी है ??
और आश्चर्य होता है मुझे यह देखकर कि जो सैक्स और मांसाहार के घोर विरोधी हैं, उन्हें माफियाओं और देश के लूटने और लुटवाने वालों से कोई आपत्ति नहीं। बल्कि उनके चरणों पर लोटते नजर आते हैं, उनके एक आदेश पर प्रायोजित महामारी का प्रायोजित सुरक्षा कवच चेपने के लिए शिविर लगाना शुरू कर देते हैं, जनता को फर्जी महामारी से आतंकित करके बंधक बनाने के अभियान में उनके सहयोगी बन जाते हैं।
अर्थात सैक्स और मांसाहार आध्यात्मिक उत्थान में बाधक है, जबकि माफियाओं और देश को लूटने व लुटवाने वालों की चाटुकारिता, चापलूसी और गुलामी से ईश्वर प्रसन्न होता है, सीधे मोक्ष के द्वारा खोल देता है ?
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