घर का खाना, माँ के हाथ का बना खाना…अब इतिहास की बातें हो जाएंगी

घर का खाना, माँ के हाथ का बना खाना….. जल्दी ही ये सब इतिहास की बातें हो जाएंगी। क्योंकि अब जोमेटो का खाना, होमडिलिवरी का खाना खाने ट्रेंड चल पड़ा है।
और ऐसा होना स्वाभाविक ही है, क्योंकि अब घर संभालने वाली स्त्रियाँ नहीं, ऑफिस, कंपनी और व्यापार संभालने वाली स्त्रियों का युग शुरू हो चुका है।
कोई कितना ही कहे कि जो स्त्री ऑफिस, कंपनी और सरकारें संभालती हैं, वह घर भी बहुत अच्छा संभाल सकती हैं, कहीं से गले नहीं उतरती। क्योंकि दोनों क्षेत्र बिलकुल एक दूसरे के विपरीत है।
प्राचीनकाल में जब स्त्रियाँ घर संभालती थीं, तब माँ के हाथ का बना खाना, घर का खाना ना केवल सुपाच्य पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होता था, बल्कि भोजन के बाद एक महान तृप्ति और आनन्द का अनुभव होता था।
भोजन के बाद ऐसा लगता था मानो दुनिया का सारा सुख प्राप्त हो गया हो। दोपहर के भोजन के बाद थोड़ी देर की नींद मिल जाये तो समझो स्वर्ग मिल गया।
तब लोग कम बीमार पड़ते थे, कई गांवों में तो बरसों तक डॉक्टर्स के कदम नहीं पड़े थे। लेकिन आज जब घरेलू स्त्रियाँ दुर्लभ हो गईं हैं, तो माँ के हाथ का खाना, घर का खाना से अधिक स्वादिष्ट हो गए बाहर का खाना, ज़ोमेटो का खाना।
फिर शहरों में तो अब परिवार भी लुप्त हो रहा है। अब तो एकल परिवार के नाम पर स्त्री और पुरुष एग्रीमेंट करके साथ रहते हैं। मकान भी दिन भर खाली रहता है, केवल रात में सोने के लिए दोनों आते हैं।

अब थकेहारे लौटे पति-पत्नी में से जो भी भोजन बनाएगा, उसमें वह प्रेम, वह शांति, वह तृप्ति कैसे डाल पाएगा ? तो फिर घर का खाना भी बाहर के खाने जैसा ही होगा ?
फिर भोजन बनाना और परोसना दोनों ही कला और विज्ञान का संगम है। भोजन बनाने वाले को यह ज्ञान होना अनिवार्य है कि घर के किस व्यक्ति को किस प्रकार का भोजन देना चाहिए। भोजन में जो भी मसाले, तेल आदि का प्रयोग किया जा रहा है, उसका शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है।
लेकिन इतना सब चिंतन-मनन करने का समय होता किसके पास है ?
विज्ञापन बनाने वाले बता ही देते हैं कि कौन सा तेल खाने से हार्ट अटैक आता है और कौन सा तेल खाने से बूढ़ा भी जवान हो जाता है। यह और बात है कि विज्ञापन देखकर तेल खरीदने वालों के घरों में अधिकांश डॉक्टर और अस्पतालों की दया और कृपा पर जीवित हैं, न कि भोजन के कारण।
~ विशुद्ध चैतन्य
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