उपयोगी प्राणी बन जाओ या फिर सहयोगी प्राणी बन जाओ !

मानव के पास दो विकल्प होते हैं जीने के लिए। पहला और सर्वमान्य विकल्प है उपयोगी प्राणी बन जाओ और दूसरा है सहयोगी प्राणी बन जाओ।
उपयोगी प्राणी बनने के लिए आपको योग्यता के मानकों पर खरा उतरना पड़ता है। अर्थात कुछ परीक्षाएँ, प्रतियोगिताएं पास करने होते हैं, कुछ विशेषताएँ विकसित करने होते हैं और यह प्रमाणित करना होता है कि आप एक उपयोगी प्राणी हैं गाय, भैंस, भेड़, बकरियों की तरह।
प्रमाणित करना होता है कि आप इतने उपयोगी हैं कि विवेक-बुद्धि का आजीवन उपयोग नहीं करेंगे, केवल दूसरों के आदेशों के अनुसार कार्य करेंगे। फिर भले उन आदेशों से अपने ही देश और अपने ही गांवों का बेड़ागर्क क्यों ना हो रहा हो।
और ऐसे उपयोगी प्राणियों की सूची में आपको देश के प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करने वाले मेधावी युवक-युवतियाँ सहजता से देखने मिल जाएँगे।
दूसरा विकल्प है सहयोगी प्राणी होना। सहयोगी प्राणी होने के लिए आपको केवल तीन बंदरों की तरह आँख, कान, मुँह बंद करके जीना है। तीन बंदरों की तरह आँख-कान मुँह बंद करके जीने की अनिवार्यता तो उपयोगी प्राणियों पर भी लागू होती है।
सहयोगी प्राणी होने के लिए आपको कोई प्रतियोगी परीक्षा पास नहीं करना पड़ता, केवल सर झुकाकर जीना होता है बिना कोई विरोध किए। यदि आप महंगाई का भी विरोध करेंगे, तो केवल तभी जब आपका मालिक आपको कहे विरोध करने के लिए। अन्यथा आपको आजीवन पता नहीं चलना चाहिए कि महंगाई बढ़ रही है।
महंगाई विकास की मौसी दिखनी चाहिए तब तक, जब तक आपके प्रिय नेता की पार्टी सत्ता में हैं। लेकिन जैसे ही आपके प्रिय नेता की पार्टी सत्ता से बाहर हुई, महंगाई डायन दिखाई देनी चाहिए। बस इतना सा काम है और आप सहयोगी प्राणी हो गए।
उपयोगी और सहयोगी प्राणियों का बड़ा सम्मान होता है, एवार्ड्स मिलते हैं, पुरुसकार मिलते हैं, आप सांसद या विधायक हैं, तो कुछ करें या ना करें, अच्छी ख़ासी सेलरी और दुनिया भर की सुविधाएं मिलती हैं। शर्त केवल इतनी सी है कि मूक-बघिर का जीवन जीयें, या फिर पालतू कुत्ते का जीवन जीयें।
माफियाओं और लुटेरों के लिए उपोगी और सहयोगी प्राणियों की सूची में यदि आप नहीं आते, तो फिर आप इस दुनिया में अकेले हैं। आपके अपने भी आपको पहचानने से इनकार कर देंगे। जो लोग देश को लूटने और लुटवाने वालों को करोड़ों का डोनेशन देने में संकोच नहीं करते, वे आपको फूटी कौड़ी नहीं देंगे। और यदि जरूरत पर आपने मांग लिया किसी से, तो आजीवन भिखारी, मुफ्तखोर कहेंगे।
क्योंकि उनहोंने जो भी कमाया होता है वह देश को लूटने और लुटवाने वालों के लिए सहयोगी या उपयोगी होकर, कोल्हू का बैल बनकर कमाया होता है। और कोई भी अपनी खून पसीने के कमाई कम से कम उन्हें तो नहीं देगा, जो माफियाओं और देश को लूटने और लुटवाने वालों के विरुद्ध होगा।
और आप सभी को यह जानकर आश्चर्य होगा कि मैं उपरोक्त दोनों ही सूची के अंतर्गत नहीं आता। क्योंकि मैं विद्रोही हूँ। और मैंने अपने जीवन में ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया, जिससे माफियाओं और देश के लुटेरों के गुलाम समाज में किसी भी प्रकार का सम्मान प्राप्त कर सकूँ। मैंने अपने जीवन में ऐसा कोई काम नहीं किया कि भेड़ों, गुलामों, जोंबियों का समाज मेरी प्रशंसा करे।

दुःख अवश्य है कि अपने पूरे जीवन में किसी को अपना नहीं बना पाया, लेकिन यही नियति है मेरी। क्योंकि माफियाओं और देश के लुटेरों के लिए उपयोगी और सहयोगी होने की बजाय विद्रोही होना चुना है मैंने।
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