प्राकृतिक जीवन शैली और अप्राकृतिक जीवन शैली का अंतर
प्राकृतिक जीवन शैली और अप्राकृतिक जीवन शैली दो बिलकुल विपरीत जीवन शैलियाँ हैं। प्राकृतिक जीवन शैली आपको प्रकृति से जोड़ती है और स्वतन्त्रता प्रदान करती हैं। जबकि अप्राकृतिक अर्थात आधुनिक (Modern) अर्थात शहरी जीवन शैली आपको प्रकृति से दूर करती है और परतंत्रता प्रदान करती है।
प्राकृतिक जीवन शैली शांति प्रदान करती है, जबकि अप्राकृतिक जीवन शैली आपको एक ऐसी दौड़ में दौड़ा देती है, ऐसे चक्रव्युह में उलझा देती है, जिससे व्यक्ति आजीवन नहीं निकल पाता।
प्राकृतिक जीवन शैली में कमाने की होड नहीं है, जबकि अप्राकृतिक जीवन शैल आपको कोल्हू का बैल बना देती है। आजीवन व्यक्ति कमाता रहता है और वह कमाई आपके पास नहीं ठहरती।
आप हज़ार करोड़ कमा लो, तब भी आपको चैन की नींद नहीं मिलेगी क्योंकि कमाने की लत लग जाती है और जितना भी कमा लो, कम ही लगेगा। फिर वह कमाई खर्च होगी, आडंबरों में, दिखावों में।
कभी ठंडे दिमाग से सोचिए कि आप जितना कमा रहे हैं, वह सब जा कहाँ रहा है, उससे आपके मानसिक, शारीरिक स्वास्थ्य, पर्यावरण और प्रकृति को क्या लाभ हो रहा है ?
जैसे जैसे आयु बढ़ती जाती है, समझ बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे व्यक्ति अप्राकृतिक जीवन शैली से मुक्त होकर वापस प्रकृति में लौटने के लिए बेचैन होने लगता है। लेकिन जो आयु बढ़ने के साथ समझदार नहीं हो पाते, वे जीवन भर दौड़ते रहते हैं बिना यह विचार किए कि कितना भी दौड़ो, अंत में मिट्टी में ही मिल जाना है।
जो कमाया, वह सब किसी और का हो जाएगा, जिस धन, सम्पदा के लिए दूसरों का जीवन नर्क बनाया, वह सब छूट जाना है। क्योंकि खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही जाना है।
मैं कमाने के विरुद्ध नहीं हूँ, ना ही आर्थिक रूप से समृद्ध होने के विरुद्ध हूँ और ना ही आधुनिक संसाधनों, तकनीकियों के विरुद्ध हूँ। मैं केवल इतना ही चाहता हूँ कि माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी या गुलामी करने की बजाय, व्यक्ति स्वतन्त्रता को महत्व दे और माफियाओं के विरुद्ध निर्भीकता से खड़े हों।
जब तक व्यक्ति या समाज माफियाओं और देश के लुटेरों की दासता (गुलामी) को ही अपनी नियति मानकर जीएगा, तब तक वह इंसान नहीं बन पाएगा। और जब तक इंसान नहीं बनेगा, तब तक धर्म समझ में नहीं आएगा और ना ही समझ में आएगा ईश्वर।