ऐसी शिक्षा का कोई महत्व नहीं जो मानव को स्वतन्त्रता से अनभिज्ञ बनाता है

शिक्षा चाहे आध्यात्मिक हो, चाहे धार्मिक हो, चाहे वैज्ञानिक हो, चाहे स्कूली हो, अशिक्षा ही मानी जाएगी, यदि शिक्षा व्यक्ति को चिंतन-मनन करने योग्य नहीं बनाता। उस शिक्षा का कोई महत्व नहीं है, जो शिक्षा व्यक्ति को इतना भी शिक्षित नहीं बना पाती कि सही और गलत का अंतर समझ सके।
ऐसी शिक्षा का कोई महत्व नहीं जो मानव को स्वतन्त्रता से अनभिज्ञ बनाता है।
ऐसी शिक्षा जो व्यक्ति की चिंतन-मनन (सोचने समझने) की क्षमता छीन ले, और माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी व गुलामी करने और गुलाम समाज व सरकारों द्वारा निर्मित भेड़चाल में चलने के लिए विवश कर दे, वह शिक्षा नहीं अशिक्षा है।
अधिकांश लोग मेरे लेख को नकारात्मक (Negative) मानसिकता के व्यक्ति द्वारा लिखा लेख ही मानते हैं। क्योंकि उनकी शिक्षा उन्हें सिखाती है कि भले देश लुट रहा हो, विरोध मत करो। सकारातमक सोचो, अच्छे दिनों के सपने देखो, जो हो रहा है अच्छा हो रहा है सोचो और सहयोगी हो जाओ माफियाओं और लुटेरों के।
जो सहयोगी हो गए, वे सुखी समृद्ध जीवन जी रहे हैं।
जब भारत में स्वतन्त्रता संग्राम छिड़ा हुआ था, युवा क्रान्तिकारी, स्वतन्त्रता सेनानी अपने प्राणों की आहुतियाँ दे रहे थे, तब भी बहुत से सकारात्मक सोच के लोग फिरंगियों का साथ दे रहे थे अपने ही देश को लूटने और लुटवाने में। और उन्हें समाज व सरकार में बहुत मान-सम्मान प्राप्त था।
बहुत से लोगों के लिए फिरंगियों की चाकरी और गुलामी करना बड़े गर्व व सम्मान की बात थी। लोग फिरंगी सेना और पुलिस में शामिल होकर अपने ही देश की जनता पर लाठियाँ भाँजना, गोलियां बरसाना देश की सेवा मानते थे। जालियाँवाला हत्याकांड में शामिल पुलिस क्या विदेशी थे ?
नहीं वे सभी फिरंगियों के चाकर और गुलाम स्वदेशी ही थे।
तो शिक्षा क्या दी जा रही है, वह शिक्षा मानव को क्या बना रही है, उसपर चिंतन-मनन करने की योग्यता नहीं है, तो अभी आप मानव नहीं, मवेशी ही हैं। मानव होने की योग्यता अभी आप लोगों में विकसित नहीं हुई है।
आज भी लोग बड़े शान से सेना में भर्ती होते हैं, बड़े शान से पुलिस में भरते होते हैं, यूपीएससी टॉप करके सरकारी अधिकारी बनते हैं। लेकिन क्या कभी सोचा है कि चाकरी और गुलामी कर किसकी रहे हैं ?
झूठी शान और वेतन, पेंशन के लोभ में अपने ही देश को लूटने और लुटवाने वालों की चाकरी और गुलामी करना यह प्रमाणित करता है कि मानव अभी भी अशिक्षित ही है।
और डिग्रियाँ बटोरने के बाद भी यदि मानव अशिक्षित और माफियाओं का गुलाम है, तो इसका सीधा सा अर्थ है कि शिक्षा प्रणाली और शिक्षाविद दोनों ही अयोग्य हैं, या फिर सुनियोजित षड्यंत्र है इन्सानों को गुलाम बनाए रखने का।
~ विशुद्ध चैतन्य
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