कुछ लोग समय से पहले बूढ़े हो जाते हैं
कुछ लोग समय से पहले ही बूढ़े हो चुके हैं। उनकी मनःस्थिति अब उन वृद्धों जैसी है, जो कब्र में पैर लटकाए बैठे हैं मृत्यु की प्रतीक्षा में। ऐसे लोगों को ध्यान की गहराइयों में डूबे रहने का मन करता है, ऐसे लोगों को ईश्वर, बाबा या नेताओं की स्तुति-वंदन, भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज में डूबे रहने में आनन्द मिलता है। ऐसे लोगों को कपिलशर्मा शो, कॉमेडी शो, सास-बहू के झगड़े वाले सीरियल में ही आनंद मिलता है, ऐसे लोग दिन भर टीवी में हिन्दू-मुस्लिम डिबेट देखकर मन बहलाते रहते हैं।
मानसिक रूप से वृद्ध हो चुके ऐसे सभी सज्जन और सज्जनियों से मेरा विनम्र निवेदन है कि मुझे ब्लॉक कर दें। क्योंकि जैसे-जैसे मेरी आयु बढ़ रही है, जैसे-जैसे मेरे बाल सफ़ेद होते जा रहे हैं मैं अधिक से अधिक युवा होता जा रहा हूँ। और युवा देश के हितों को महत्व देता है, किसी नेता, पार्टी, संगठन या संस्था को नहीं। यदि देश के हितों के विरुद्ध कोई कार्य करता है, तो युवा विरोध करता है। यदि कोई साम्प्रदायिक द्वेष या घृणा फैलाता है, तो युवा विरोध करता है। जबकि वृद्धों को इन सब विषयों में कोई रुचि नहीं होती। वे तो ध्यान की गहराईयों में डूबे हुए होते हैं।
मैं अब ओशो को भी पढ़ना सुनना पसंद नहीं करता, क्योंकि ओशो ने जो संप्रदाय बनाया, वह भी इस्कॉन की तरह नाचने-गाने वालों का सम्प्रदाय बनाया। ओशो के अनुयाइयों को भी कोई मतलब नहीं देश के लुटने पिटने से। क्योंकि उन्हें तो ओशो ने यही सिखाया है कि तुम्हारा जन्म ध्यान में डूबे रहने के लिए हुआ। तुम्हारा जन्म तो नाचने, गाने और उत्सव मनाने के लिए हुआ है। तो जब देश लुट रहा हो, बर्बाद हो रहा हो, तुम खूब नाचो गाओ, उत्सव मनाओ या फिर ध्यान की गहराइयों में डूब जाओ।
मेरी रुचि दुनिया के किसी भी सम्प्रदाय में नहीं है, क्योंकि सभी संप्रदाय के अनुयायी “मैं सुखी तो जग सुखी” के सिद्धान्त में जी रहे हैं। सभी अपने-अपने गुरुओं, आराध्यों को परमपुरुष, परमेश्वर मानकर स्तुति-वंदन, कीर्तन भजन, पूजा-पाठ में लिप्त हैं। क्योंकि इनका जन्म देश के हितों के लिए आवाज उठाने के लिए नहीं, बल्कि अपने आराध्यों की स्तुति-वंदन करने के लिए हुआ है।
कुछ सम्प्रदायों में तो यह मान्यता है कि वे लोग किरायेदार हैं इस दुनिया में। दुनिया का बेड़ागर्क हो रहा है, तो होने दो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। कई देश इसी मान्यता के चलते बर्बाद हो गए और उन देशों के नागरिक दूसरे देशों में जाकर किरायेदार बन गए।
लेकिन मैं किरायेदार नहीं हूँ इस पृथ्वी पर और न ही मेरा जन्म ईश्वर की स्तुति-वंदन, भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ करने के लिए हुआ है। यदि ईश्वर को मुझसे यही सब करवाना होता, तो पृथ्वी पर आने ही नहीं देता। अपने पास ही रखता और कहता यहीं बैठ और मेरी स्तुति-वंदन कर, मेरी प्रशंसा कर। कह मुझसे कि तू ही महान है, तू ही दुनिया का रखवाला है, तुझसे बड़ा और कोई नहीं। कहता मुझसे मेरे सहस्त्रनामों का जाप कर, कहीं मैं भूल ना जाऊँ कि मेरे कौन-कौन से नाम हैं। कहता मुझसे कि रोज़ मुझे 56 भोग खिला, ठंड के महीने में कम्बल ओढ़ा, गर्मी के मौसम में बढ़िया कंपनी का पंखा या एसी चला। बीमार पड़ जाऊँ तो गोल्डमेडलिस्ट डॉक्टर से मेरा इलाज करवा। कहता मुझसे कि जो भी मुझसे मिलने आए, उससे दर्शन करने के शुल्क ले, कोई रिश्वतखोर कमीशन देने आए, तो उसे वीवीआईपी गेट से अंदर लेकर आ। 5100/- रुपए से कम देने वाले को बाहर ही बाहर विदा कर देना।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं बल्कि मुझे पृथ्वी पर भेज दिया। क्यों ?
क्योंकि वे मुझसे पूजा-पाठ, स्तुति वंदन नहीं करवाना चाहते थे। वे जानते हैं कि दुनिया के सभी धार्मिक, आध्यात्मिक गुरुओं ने अपने अपने दड़बे के भक्तों को पुजा, पाठ, स्तुति-वंदन में व्यस्त कर रखा है और शैतानों वंशज माफिया और देश व जनता के लुटेरे पूरी पृथ्वी को प्रायोजित महामारी से आतंकित कर बंधक बनाकर लूट-पाट कर रहे हैं। इसीलिए भेजा है मुझे कि विरोध करूँ शैतानों और नरपिशाचों का और ऐसे लोगों को खोजूँ, जो देशभक्त हों, जो देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध आवाज उठाने का साहस कर सकते हों। उन्हें जगाऊँ, उन्हें होश में लाऊँ कि जागो मोहन प्यारे अब भोर हुई, कब तक सोते रहोगे ?
~ विशुद्ध चैतन्य