आज तकनीकी इतनी एडवांस हो चुकी है कि मजदूरों पर निर्भरता घटने लगी है

2020 की एक खबर है कि आस्ट्रेलिया में ऊंटों को भारी संख्या में मारा जा रहा है। कारण बताया गया कि गर्मी और पानी की कमी कारण भारी संख्या में गांवों और शहरों की तरफ आ रहे हैं।

A five-day cull started on Wednesday, as Aboriginal communities in the region have reported large groups of camels damaging towns and buildings.
“They are roaming the streets looking for water. We are worried about the safety of the young children”, says Marita Baker, who lives in the community of Kanypi. Some feral horses will also be killed
अब ऊंटों की क्या गलती है ?
जब इन्सानों को ऊंटों की आवश्यकता थी, तो उनका इस्तेमाल किया और अब उनकी जरूरत नहीं है तो शूट कर रहे हैं।
बस यही स्थित है आज मानवों की।
आज तकनीकी इतनी एडवांस हो चुकी है कि मजदूरों, गुलामों की आवश्यकता घटने लगी है। अब मशीनें और रोबॉट्स वही सारे काम बड़ी कुशलता से कर रहे हैं, जो कभी मजदूरों और गुलामों से करवाए जाते थे।
हाल ही में एक खबर पढ़ी की 25 वर्ष से कम आयु के 42% डिग्रीधारी युवा बेरोजगार भटक रहे हैं। इन युवाओं और उन ऊंटों में क्या अंतर है ?
वे ऊँट भी बेरोजगार हैं इसलिए शहर भाग रहे हैं और ये युवा भी बेरोजगार हैं इसलिए शहर भाग रहे हैं।
जैसे ऊंटों को शूट किया जा रहा है, वैसे ही मानवों को भी मारा जा रहा है प्रायोजित सुरक्षा कवच और हरितक्रांति योजना द्वारा जहरीला अनाज, फल व सब्जियाँ परोसकर। डिब्बा व पैकेट बंद भोज्य पदार्थो में भी कैमिकल का प्रयोग हो रहा है, जिससे इंसान बीमारियों से मुक्त नहीं हो पा रहा।
वहीं समृद्ध लोग #organic कृषि से प्राप्त अनाज, फल, सब्जियों का प्रयोग कर रहे हैं। ऑर्गनिक अनाज, फल व सब्जियाँ आम नागरिकों के पहुँच के बाहर है और उनमें इतनी अक्ल भी नहीं है कि अपने घर के गमलों में ही कैमिकल फ्री सब्जियाँ उगा लें। क्योंकि उनका जन्म तो हुआ है माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी और गुलामी करने के लिए। और चाकरों और गुलामों को एक ही चीज सिखाई जाती है और वह है अपनी विवेक बुद्धि को गिरवी रखकर आदेशों का पालन करना। जब तक आदेश नहीं मिलेगा वे यह भी नहीं सोच सकते कि जैविक भोज्य पदार्थ प्राप्त करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है, न कि कैमिकल युक्त भोज्य पदार्थ।
फिर बच्चे पैदा करने का शौक भी ऐसा है कि जिनके बच्चे पैदा नहीं हो रहे होते, वे मंदिर, तीरथों से लेकर टेस्ट ट्यूब बेबी तक की दौड़ लगाते हैं। भले घर में खाने को दाना न हो, लेकिन बच्चे पैदा नहीं किए तो इन्हें स्वर्ग नहीं मिलने वाला।
सदैव स्मरण रखें: उन्हें जीने का कोई अधिकार नहीं है, जिनके पास विवेक बुद्धि न हो, जो केवल मजदूरी करने, गुलामी करने के लिए जन्म लेते हैं, उनकी स्थिति आस्ट्रेलियाई ऊंटों जैसी हो जाती है।
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