स्वविवेक का महत्व: गुरुओं से भी मुक्त हो जाओ

अधिकांश गुरुओं ने कहा कि गीता पढ़ो, बाइबल पढ़ो, वेद, उपनिषद, कुरान पढ़ो। लेकिन कुछ ही गुरुओं ने कहा कि स्वयं को दड़बों से मुक्त करो, स्वयं गुरुओं से भी मुक्त करो, प्रकृति (Nature) को पढ़ो, स्वयं को पढ़ो, स्वयं को जानो।
जिन गुरुओं ने स्वयं को गुरुओं से भी मुक्त होने के लिए कहा, वे हैं ओशो और जे कृष्णमूर्ति।
जो गुरु और शिष्य वेद, पुराण, गीता, कुरान, बाइबल से चिपके रहे, जो अपने-अपने गुरुओं से चिपके रहे, वे माफियाओं और देश के लुटेरों के गुलामी से मुक्त नहीं हो पाये। उनमें इतना भी साहस विकसित नहीं हो पाया कि गलत को गलत कह सकें, माफियाओं और लुटेरों का विरोध कर सकें। बल्कि प्रायोजित महामारी काल में तो माफियाओं और लुटेरों के सामने पूर्णतः नतमस्तक और समर्पित हो गए थे और भूल गए थे अपने आराध्य ईश्वर/अल्लाह को।
केवल वही लोग विरोध करने का साहस कर पाये, जो दड़बों और गुरुओं से स्वयं को अलग करने का साहस कर पाये। जिन्हें स्वयं पर विश्वास था, जिन्हें अपने शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता पर विश्वास था, जिन्हें अपने आराध्य ईश्वर/अल्लाह और गुरुओं की दी हुई शिक्षाओं पर विश्वास था, वे माफियाओं और लुटेरों के षडयंत्रों का विरोध करने में सक्षम हुए।
इसलिए मुझे जे कृष्णमूर्ति और ओशो की शिक्षाएं अधिक व्यवहारिक लगती हैं, बजाए गीता, बाइबल, वेद, पुराण और कुरान के। क्योंकि इन्हें पढ़ने वाले कायर और भेड़-बत्तख बन जाते हैं, अपनी विवेक बुद्धि का प्रयोग करना भूल जाते हैं और गुलाम बन जाते हैं माफियाओं और देश के लुटेरों के।
जे कृष्णमूर्ति पूरे जीवन बोलते रहे, दुनिया को समझाते रहे। जब जीवन के अंतिम दिनों में किसी ने उनसे पूछा कि अब तक कितने लोगों को आप जागृत कर पाये ?
तो उनका उत्तर था एक भी नहीं। पूरे जीवन में एक भी व्यक्ति को जागृत नहीं कर पाया।
ओशो पूरे जीवन बोलते रहे, लेकिन जीवन के अंतिम दिनों में उनहोंने कहा कि मैंने कम्यून बनाकर बहुत बड़ी गलती कर दी। मैंने अपने आसपास भेड़ों की भीड़ इकट्ठी कर ली। ये भेड़ें कल मेरे नाम का मंदिर बना लेंगे, ओशोलिंग स्थापित कर लेंगे और ओशो ओशो करके नाचते फिरेंगे, मेरे नाम पर धंधा करेंगे। मैं तुम लोगों से स्वयं को भी छीन रहा हूँ। मैं अब ओशो नहीं केवल रजनीश हो गया हो गया हूँ। अब केवल मूर्ख ही ओशो ओशो करके नाचेगा।
राजीव दीक्षित जीवन भर लोगों को माफियाओं और देश के लुटेरों के प्रति जागृत करते रहे। लेकिन एक भी व्यक्ति को जागृत नहीं कर पाये। केवल भीड़ ही इकट्ठी हुई उनके भी आसपास भेड़ों की। जो उनके नाम की जय जय करती फिरती है लेकिन माफियाओं और देश के लुटेरों का विरोध करने का साहस नहीं कर सकती।
इसीलिए जे कृष्णमूर्ति का कथन बिलकुल सही है कि गुरुओं से भी मुक्त हो जाओ। क्योंकि गुरुओं से चिपका हुआ व्यक्ति केवल भेड़ बन सकता है इंसान नहीं बन सकता। वह गुरुओं की स्तुति वंदन कर सकता है, आदेशों का पालन कर सकता है, लेकिन गलत को गलत कहने का साहस नहीं कर सकता। क्योंकि वह स्वयं से अनभिज्ञ है। उसमें इतनी भी विवेक बुद्धि विकसित नहीं हो सकती कि सही और गलत का निर्णय स्वयं ले सके।
और इसीलिए कहता हूँ कि मुझे सलाह न दिया करें कि क्या करना है और कैसे करना है। क्योंकि जो अभी स्वयं प्राइमरी स्कूलों और नर्सरी राइम्स की किताबों में अटके हुए हैं, वे इस योग्य नहीं कि मुझे कोई सलाह दें।
इसे आप मेरा अहंकार कहें, तो भी मुझे बुरा नहीं लगेगा। क्योंकि जो स्वयं अपने गुरुओं, धार्मिक ग्रंथो, पंथों और डिग्रियों के अहंकार के नशे में धुत्त हों, उन्हें मैं यदि अहंकारी नजर आता हूँ, तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। लेकिन मैं अब खुश हूँ कि कम से कम स्वयं को भेड़ों की भीड़ से अलग रख पाने में सफल हुआ।
बहुत से लोग पूछते हैं कि दुनिया भर का मीन-मेख निकालते रहते हो समाज और सरकारों में, लेकिन क्या कोई समाधान है आपके पास ?
तो मेरा उत्तर है कि हजारों वर्षों से जो गुरुओं, ईश्वर/अल्लाह और धार्मिक ग्रन्थों को पूजने के बाद भी समाधान नहीं खोज पाये, उन्हें मेरे दिये समाधान भी कोई काम नहीं आने वाले। करना तो माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी और गुलामी ही है। फिर समाधान का क्या आचार डालना है ?
फिर धार्मिक ग्रंथो का रट्टा लगाने वाले कहते हैं कि सभी समस्याओं का समाधान हमारी धार्मिक ग्रन्थों में है, दुनिया में जितने भी आविष्कार और समाधान खोजे गए, वे सब हमारे धार्मिक ग्रंथो से ही खोजे गए….तो खोज निकालिए समाधान अपने धार्मिक ग्रंथो से माफियाओं और देश के लुटेरों से मुक्ति पाने का, मुझसे क्यों पूछ रहे हैं ?
गुरुओं से चिपके हुए शिष्य, धार्मिक ग्रन्थों को सीने से चिपटाए हुए भक्त और पंथ, संप्रदाय नामक दड़बों में कैद अनुयायी मुझे स्कूल के उन छात्रों जैसे लगते हैं, जो स्कूल के टीचर, स्कूल की किताबों से चिपके हुए हैं और स्कूल त्यागने को तैयार नहीं। लेकिन सपने देख रहे हैं मुक्त जीवन जीने की।
ऐसे लोग स्कूल से पढ़कर आगे बढ़ने की बजाए, वापस स्कूल में ही सिमट कर रह जाते हैं आजीवन।
जे० कृष्णमूर्ति कहते हैं कि गुरुओं से भी मुक्त हो जाओ। तभी स्वयं को जान पाओगे।
ओशो ने कहा था यदि मैं भी सत्य के मार्ग में बाधक होता हूँ, तो मुझे भी त्याग देना। लेकिन सत्य को खोजना, सत्य को जाने बिना दुनिया से विदा मत लेना।
~ विशुद्ध चैतन्य
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