सृष्टि की रचना क्या धार्मिक ग्रंथो के आधार पर हुई है ?
जब माफियाओं और देश के लुटेरों के सामने नतमस्तक हो चुके आस्तिकों, धार्मिकों, आध्यात्मिकों का समाज अपने अपने धार्मिक ग्रन्थों को महान बताता है, सभी समस्याओं का समाधान बताता है, तो प्रश्न अवश्य उठता है कि सृष्टि की रचना धार्मिक ग्रन्थों के आधार पर हुई है, या समस्त प्राणियों की रचना धार्मिक ग्रन्थों के आधार पर हुई है, या मानवों की रचना धार्मिक ग्रन्थों के आधार पर हुई है, या समाजों की रचना धार्मिक ग्रंथो के आधार पर हुई है, या सरकारों की रचना धार्मिक ग्रंथो के आधार पर हुई है ?
यदि सृष्टि की रचना धार्मिक ग्रंथो के आधार पर हुई है, तो फिर किस धार्मिक ग्रंथ के आधार पर हुई है ?
यदि वेद, पुराण, उपनिषद के आधार पर हुई है, तो फिर कोई मांसाहारी, कोई शाकाहारी, कोई अंडाहारी, कोई दुग्धाहारी क्यों है ?
सभी शाकाहारी या मांसाहारी क्यों नहीं ?
यदि कुरान के आधार पर हुई है, तो फिर सभी प्राणी नमाज़ी क्यों नहीं, सभी प्राणी मुसलमान क्यों नहीं ?
यदि बाइबल के आधार पर हुई है सृष्टि की रचना, तो फिर सभी प्राणी ईसाई क्यों नहीं, सभी प्राणी पोर्क और बीफ क्यों नहीं खाते ?
क्यों कुछ प्राणी केवल घास खाते हैं, तो कुछ केवल फल खाते हैं, तो कुछ मांस खाते हैं और कुछ सर्वभक्षी होते हैं ?
क्यों कुछ प्राणी केवल कुरान पढ़ते हैं, तो कुछ केवल वेद, पुराण पढ़ते हैं, कुछ केवल बाइबल पढ़ते हैं ?
क्यों दुनिया के सभी आस्तिक, नास्तिक, धार्मिक और आध्यात्मिक समाज माफियाओं और देश के लुटेरों के सामने नतमस्तक रहते हैं, उनकी चाकरी और गुलामी करने को अपना सौभाग्य मानते हैं ?
क्या सोचा है कभी किसी ने कि ऐसे धार्मिक ग्रन्थों को पूजने और रटने का औचित्य क्या है, जिसे ढोने वाला समाज स्वयं उन धार्मिक ग्रंथो का अनुसरण नहीं करता ?
ऐसे धार्मिक ग्रन्थ जिन्हें पढ़कर ना समाज सुधरा, न सरकारें सुधरी ना पुलिस और प्रशासन सुधरा, उन्हें ईश्वरीय ग्रन्थ मानकर ढोने का औचित्य क्या है ?
जो मानव समाज माफियाओं और देश के लुटेरों के गुलामों के सामने नतमस्तक रहता हो, उस समाज और मवेशियों के समाज में अंतर क्या है ?
क्या आप जानते हैं कि:
दुनिया के जितने भी धार्मिक उत्सव हैं, सभी व्यावसायिक उत्सव ही होते हैं। और जितने भी मंदिर, तीर्थ और धार्मिक स्थल हैं, सभी व्यावसायिक पर्यटन केंद्र ही हैं।
जितने भी क्रान्तिकारी गुरु, पैगंबर, मसीहा, अवतार और बुद्ध आए, वे सभी असफल हो गए मानवों को मानव बना पाने में। क्योंकि मानव तो आज भी भेड़ ही है, मवेशी ही है और माफियाओं और देश के लुटेरों के बनाए भेड़चाल में आँख मूँदे दौड़े चले जा रहे हैं।
कहते हैं लोग कि बहुत से लोग बुद्धत्व को उपलब्ध हो गए। लेकिन किसी को पता नहीं चला।
कहते हैं लोग कि बहुत से भक्त परब्रम्ह को उपलब्ध हो गए। लेकिन पता नहीं चला।
कहते हैं बहुत से लोग मोक्ष को उपलब्ध हो गए। लेकिन पता नहीं चला।
बहुत से लोग शास्त्रों, वेद, पुराण, गीता, उपनिषद, कुरान, बाइबल के प्रकांड विद्वान हो गए। लेकिन पता नहीं चला।
ऐसे ही बहुत से लोग अमीर हो गए लेकिन पता नहीं चला।
बहुत से लोग आईएएस, आईपीएस हो गए लेकिन पता नहीं चला।
बहुत से लोग धार्मिक हो गए लेकिन पता नहीं चला।
क्या कभी सोचा है कि ऐसा कुछ भी हो जाने से क्या लाभ देश को जिस होने से माफियाओं और देश के लुटेरों को पता ही ना चले ?
मजा तो तब है जब कुछ ऐसा हो जाओ, जिससे माफियाओं और देश के लुटेरों की साँसे अटक जाये, कार्डियक अरेस्ट आ जाये, या स्विस बैंक में जमा लूट का माल वापस जनता को मिल जाये !!!
बाकी कोई बुद्ध हो गया, पैगंबर हो गया, अवतार हो गया, भगवान हो गया, आईएएस हो गया, आईपीएस हो गया, मंत्री हो गया, प्रधानमंत्री हो गया, अमेरिका का प्रेसिडेंट हो गया……कोई फर्क नहीं पड़ता मेरी सेहत पर। क्योंकि इनके होने न होने से माफियाओं और देश के लुटेरों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
और जिनके होने ना होने से माफियाओं और देश के लुटेरों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता, उनके होने न होने का कोई महत्व नहीं मेरे लिए।