महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी से त्रस्त लोगों से आप दान की आशा कैसे कर लेते हैं ?

पूछा है प्रश्न मुझसे M Kumar ने; “इतनी भयंकर बेरोजगारी, महंगाई, और भ्रष्टाचार को देखते हुए आप लोगों से दान की आशा कैसे कर लेते हैं ?”
सार्थक प्रश्न पूछा है आपने। जिस देश में डायन महंगाई विकास की मौसी बन गयी हो, उस देश में दान की आशा कैसे कर सकता हूँ मैं ?
जिस देश में प्रतिवर्ष लाखों लोगों की नौकरियाँ जा रही हों, लाखों छोटे व्यापारियों, दूकानदारों का व्यापार ठप्प हो रहा हो ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों के कारण, उस देश में दान की आशा कैसे कर सकता हूँ ?
जिस देश की जनता, नेता, और खिलाड़ी नीलामी में बिक जाते हों गरीबी के कारण, उसे देश में दान की आशा कर कैसे सकता हूँ ?
जिस देश की जनता पाँच किलो फ्री के राशन पर पल रही हो, उस देश में दान की आशा कर कैसे सकता हूँ ?
जिस देश में दान करते समय भी नेता चुनावी लाभ देखते हों, उस देश में दान की आशा कर सके सकता हूँ ?
सही कहा आपने मुझे दान की आशा रखनी ही नहीं चाहिए ऐसे बर्बाद हो चुके देश में किसी से भी।
दान लेना और देना भारतीय नहीं पूर्वी देशों की संस्कृति है
पहले मैं मानता था कि संन्यासियों, साधु-संतों द्वारा दान या भिक्षा मांगना भारतीय संस्कृति का अंग है। लेकिन फिर Sudhir Sankrityayan जैसे विद्वान इतिहासकारों से जानकारी मिली कि यह भारतीय नहीं Thailand जैसे पूर्वी देशों की संस्कृति है। वहाँ दान देने वाला अनुगृहीत होता है दान देकर। दान देने वाला स्वयं को धन्य मानता है कि ईश्वर की कृपा से वह दान करने योग्य हुआ। आज ना केवल अपने परिवार का भरण-पोषण कर पा रहा है, बल्कि इतना अतिरिक्त धन, अनाज उसके पास है कि वह दान कर सके।
चूंकि दान लेना या देना भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है, आयातित संस्कृति है, इसलिए यहाँ दान देने वाला बिलकुल वैसे ही अकड़ता है, जैसे विदेशी भाषा जानने वाला अकड़ता है, विदेशी कपड़े और विदेशी डिगरियों को धारण करने वाला अकड़ता है।
जिसने दान तो क्या किसी को भीख भी ना दिया हो अपने जीवन में वह भी प्रवचन करने लगता है कि हमारी तरह माफियाओं और लुटेरों की कंपनी में मेहनत, मजदूरी करके कोल्हू ले बैल की तरह कमाओ। क्योंकि चाकरी, मजदूरी और गुलामी ही भारतीय संस्कृति है।
भारतीय हमेशा विदेशियों के मोहताज रहे कि वे आएं देश को लूटने, गुलाम बनाने तो गुलाम बनकर, मेहनत, मजदूरी करके कमाने का सौभाग्य प्राप्त हो। यही कारण है कि शताब्दियों तक गुलाम रहा भारत विदेशियों और माफियाओं का।
भारत में तो केवल माफियाओं, लुटेरों, डकैतों, गुंडों-बदमाशों को हफ्ता/ रंगदारी और सरकारी वेतन/पेंशन भोगियों को रिश्वत, कमीशन देने की प्रथा रही है। भारत में तो माफियाओं के गुलाम राजनेताओं, राजनैतिक पार्टियों और सरकारों को दान देने की प्रथा रही है। और दान हो या चन्दा, डंडे मारकर वसूले जाते हैं माफियाओं के पालतू गुंडों बदमशों के द्वारा। माफियाओं का कर्जा चुकाने के लिए आपकी सेलेरी से पैसे कट जाएँगे। बैंक में पैसे रखने का भी शुल्क देना होगा, ना रखने का भी शुल्क देना होगा, निकालने का भी शुल्क देना हो।
अब वापस लौटते हैं प्रश्न पर;
आप लोगों से दान की आशा कैसे कर लेते हैं ?
सत्य तो यह है कि मैं किसी से भी दान की आशा या अपेक्षा नहीं रखता। क्योंकि मैंने बड़े-बड़े नेता और अमीर देखें हैं, जिनके जेब से उतना भी नहीं निकलता, जितना किसी गरीब के जेब से निकल जाता है दान के लिए। एक रिक्शा चलाने वाला, एक रेहड़ी लगाने वाला जितना दान कर देता है, उतना कोई अमीर नहीं कर सकता यदि उनकी आय के अनुपात में देखा जाये।
अर्थात 500 रुपए रुपये दिहाड़ी कमाने वाला भी कभी-कभी अपनी एक दिन की कमाई दान कर सकता है, लेकिन अमीर व्यक्ति अपनी एक दिन की कमाई दान नहीं कर सकता। वह उतना ही दान कर सकता है, जितना एक गरीब व्यक्ति दान कर सकता है।
यहाँ हम दान पर चर्चा कर रहे हैं, व्यापार या भीख पर नहीं। क्योंकि दान और भीख, व्यापार में बहुत अंतर होता है।
जब आप दान मांगते हैं किसी से ऐसे व्यक्ति से, जिससे मिलने की आशा हो, तो आप दान नहीं भीख माँग रहे हैं।
दान मांगते या देते समय किसी से कोई अपेक्षा नहीं होनी चाहिए
जब उनसे मांगा जाता है जिनपर विश्वास हो, जो अपने हों या बहुत निकट परिचित हों, उसे सहयोग मांगना कहा जाता है। क्योंकि परिवार, मित्र, सगे-संबंधियों से सहयोग मांगा जाता है दान या भीख नहीं। और जो मित्र, पारिवारिक सदस्य, सगे-संबन्धित सहयोग करते समय यह भाव रखते हैं कि वे दान दे रहे हैं, या भीख दे रहे हैं, तो वे आपके अपने नहीं हैं। उनसे जितनी दूरी बना सकें उतनी बना लें।
दान मांगते या देते समय किसी से कोई अपेक्षा नहीं होनी चाहिए। क्योंकि हर व्यक्ति दान नहीं कर सकता, भले वह टाटा-बिरला का रिश्तेदार ही क्यों ना हो, भले वह अरबों की संपत्ति का मालिक ही क्यों ना हो। दान केवल ईश्वरीय प्रेरणा से ही कोई कर सकता है स्वतः नहीं। दान वही कर सकता है जिसमें करुणा है लेकिन वह भी हर किसी को नहीं करेगा। केवल उसे ही करेगा जिसे दान करने के लिए ईश्वर प्रेरित करेगा।
और ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि दान कोई भीख या व्यापार नहीं है, जो गणित लगाकर दिया जाये। दान करने का भाव आत्मीय भाव है, भीतर से जागृत होता है और उन्हीं के भीतर जागृत होता है, जो ईश्वरे के प्रति अनुगृहीत हैं। जो यह मानते हैं कि जो कुछ भी उन्हें प्राप्त हुआ वह उसकी मेहनत और ईश्वर के सहयोग से प्राप्त हुआ।
इसीलिए वह दान करते समय लाभ-हानि का गणित नहीं लगाएगा। वह दान करते समय यह भाव भी नहीं रखेगा, कि दान पाने वाले से उसे कोई लाभ होगा या नहीं होगा, कोई पुण्य मिलेगा या नहीं मिलेगा। वह केवल सहयोगी होना चाहता है किसी का इसीलिए दान कर रहा है। और वह सहयोगी इसलिए होना चाहता है क्योंकि ईश्वर उसका सहयोगी है। वह जानता है कि ईश्वर मेरा सहयोगी है, तो मुझे कभी धनाभाव होगा नहीं। जब ईश्वर मेरा सहयोगी है, तो भला मैं किसी दूसरे का सहयोगी क्यों ना बन जाऊँ ?
ईश्वर मुझसे कोई सौदा नहीं करता मेरा सहयोग करते समय, तो मैं क्यों करूँ किसी से सौदा दान करते समय ?
और अक्सर ऐसा होता है कि कोई गरीब, कोई भिखारी दान दे बैठता है। और दान देते समय उसके चेहरे पर खुशी का भाव देखने मिलेगा, विवशता या दुःख का भाव नहीं। ना ही उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत होगा कि वह आप पर कोई एहसान कर रहा है। जबकि अमीर लोग जब दान करेंगे तो ऐसा जताएँगे कि पूरी दुनिया को वे ही पाल रहे हैं।
अब चूंकि दान करना या लेना भारतीय संस्कृति नहीं है, इसलिए भारतीय दानी किसी गरीब, असहाय को दान नहीं करते। बल्कि उन्हें दान करते हैं, जिनसे उन्हें व्यापारिक, सामाजिक, राजनैतिक लाभ प्राप्त हो रहा हो, या होने वाला हो। देखा होगा आपने कि जो कभी किसी को फूटी कौड़ी दान नहीं करते, वे भी राजनेताओं, राजनैतिक पार्टियों को दान कर बैठते हैं। कुछ तो इतने महान होते हैं कि सीधे जगन्नाथ ईश्वर को ही दान करते हैं।
जो ईश्वर को दान करते हैं, वे वास्तव में महान हैं। क्योंकि ईश्वर उन्हीं के कारण दो वक्त की रोटी खा पा रहा है। यदि वे लोग ईश्वर को दान नहीं करेंगे, तो ईश्वर भूखों मर जाएगा। ईश्वर को दान नहीं करेंगे तो ईश्वर के सर पर छत भी नहीं होगा, मंदिर/मस्जिद नहीं बनेगा और ईश्वर बेघर भटकना पड़ेगा। तो ऐसे लोग मेरी नजर में ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली और धनवान हैं।
आप स्वयं विचार करिए जिनके दान पर ईश्वर पल रहा हो, वह स्वयं कितना महान होगा ?
लेकिन ऐसे महान दानी लोगों से भी किसी गरीब को दान नहीं मिल पाएगा। इसीलिए ही दान मांगते समय मैं कभी भी कोई अपेक्षा नहीं रखता। सोशल मीडिया पर अपनी समस्या लिख देता हूँ, जिसकी अंतरात्मा जागेगी, जिसे ईश्वर से प्रेरणा मिलेगी वह दान कर देगा। फिर चाहे वह कोई भी हो, यदि दान करने का भाव उसके भीतर जागृत हो रहा है, तो निश्चय ही उसके भीतर कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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