क्रांतिकारी गुरुओं की हत्या अक्सर शिष्य ही करते हैं
ओशो ने कहा था, “अक्सर गुरुओं की हत्या शिष्य ही करते हैं !” और यह बिलकुल सच है कि क्रांतिकारी गुरुओं की हत्या अक्सर शिष्य ही करते हैं। और क्रांतिकारी गुरुओं की हत्या करने की प्रथा प्राचीनकाल से अनवरत चली आ रही है।
क्रांतिकारी गुरु की हत्या का सबसे प्रथम प्रयास तब होता है, जब शिष्य अपने गुरु को सिखाने लगते हैं कि कैसे जीना चाहिए, कब उठना चाहिए, कब बैठना चाहिए।
दूसरा प्रयास तब होता है जब क्रांतिकारी गुरुओं की दी हुई शिक्षाओं को आत्मसात करने की बजाय उनकी नकल बनने का प्रयास करने लगते हैं। गुरु ऐसे चलते थे, गुरु ऐसे कपड़े पहनते थे, गुरु ऐसे बोलते थे।
तीसरा प्रयास तब होता है, जब क्रांतिकारी गुरुओं की शिक्षाओं को रटने और रटाने का कार्यक्रम शुरू हो जाता है, ना कि समझने और समझाने का कार्यक्रम।
और चौथा और अंतिम प्रयास तब होता है, जब क्रांतिकारी गुरुओं के नाम पर बने संप्रदाय वैश्यों और माफियाओं के अधीन सौंपकर शिष्य और अनुयायी ध्यान-भजन, नामजाप, स्तुति-वंदन, पूजा-पाठ, व्रत-उपवास, यम-नियम में मस्त हो जाते हैं।
शिष्य और भक्त अपने क्रांतिकारी गुरु को अंतिम विदाई दे रहे होते हैं और कहते हैं, “अब आप विदा लीजिये इस दुनिया से अब हमें आपकी कोई आवश्यकता नहीं है। अब नामजाप करेंगे, आपके नाम पर धंधा करेंगे, नोट छापेंगे, व्यपार खड़ा करेंगे या फिर माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी और गुलामी करके देश को लूटने व लुटवाने में उनके सहयोगी बनेंगे।
मेरा विश्वास न हो तो अपने-अपने गुरुओं के नाम पर बने दड़बों पर नजर डाल लीजिये। भले अत्याचार, अन्याय और शोषण के विरुद्ध लड़ते हुए मारे गए गुरु, लेकिन गुरु द्वारा स्थापित सम्प्रदाय आज भेड़ों और भेड़ियों का दड़बा बन गया, जिसमें कोई एक व्यक्ति अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध लड़ भी रहा होता है, तो दड़बे के बाकी सदस्य अत्याचारियों के साथ मिलकर दावत उड़ा रहा होता है, या फिर ताली, थाली और बर्तन बजाकर नाच रहा होता है, ध्यान, भजन कीर्तन में डूबा होता है।
अपने ही समाज के किसी गरीब, शोषित, पीड़ित की सहायता करना तो दूर, उल्टे उसे सिखाने लगते हैं कि ध्यान करो, भजन करो और भूल जाओ अन्याय, अत्याचार और शोषण को।
दुनिया के सभी क्रांतिकारी गुरुओं की हत्या कर दी गयी उन्हीं के अपने शिष्यों के द्वारा और उनकी शिक्षाओं का अंतिम संस्कार कर दिया उनके भक्तों और अनुयायियों ने नामजाप, भजन-कीर्तन, स्तुति-वंदन का शोर करके।
भक्त और अनुयायी समझते हैं कि हम तो अपने गुरु की शिक्षा-दीक्षा को बचाए रखने के लिए किताबें छापते हैं, सभाएं करते हैं, गुरुओं की जयंती और मनाते हैं, नामजाप करते हैं, स्तुति-वंदन करते हैं……फिर गुरु की हत्या हो भी गयी तो क्या फर्क पड़ता है ?
गुरु की शिक्षा और विचार का प्रचार-प्रसार हो रहा है और फिर गुरु के मरने के बाद अनुयायी और भक्त भी तो बढ़ रहे हैं। कमाई भी बढ़ रही है गुरु के नाम से….तो गलत क्या हो रहा है ?
गलत यह हो रहा है कि किसी भी गूरु की शिक्षा यदि समाज को कायर और गुलाम होने के लिए प्रेरित कर रहा है, तो उसका अर्थ यह है कि वह गुरु माफियाओं का एजेंट रहा होगा। और यदि ऐसा नहीं है, तो फिर समाज माफियाओं और देश के लुटेरों के विरुद्ध आवाज उठाने की बजाय यदि उनकी चाकरी और गुलामी कर रहा है, तो निश्चित मानिए कि गुरु की ना केवल हत्या हो चुकी है, बल्कि उनके बलिदान को भी भुला दिया गया।
गुरु केवल व्यक्ति नहीं होता, गुरु विचार भी होता है। गुरु अपने मौलिक विचारों के कारण गुरु होता है। पूजने और पुजवाने वाले गुरुओं से सदैव सावधान रहिए। क्योंकि वे गुरु हैं ही नहीं। वे या तो व्यापारी हैं, या फिर ठग।
वास्तविक गुरु कभी नहीं चाहेगा कि उनके शिष्य या अनुयायी माफियाओं की चाकरी या गुलामी करके अपने ही देश व समाज को लूटने और लुटवाने में सहयोगी बनें। और यदि आपका गुरु कहता है कि माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी और गुलामी शान से करो, अपना ईमान बेचो, अपना जमीर बेचो और देश को लूटो और लुटवाओ…तो निश्चित मानिए कि आप ऐसे गुरु के चंगुल में फंस चुके हैं, जो गुरु के रूप में माफियाओं और देश के लुटेरों का एजेंट है।