जातिवाद और असमानता से मुक्ति के लिए अनिवार्य हो जाति-प्रमाण-पत्र और जातिगत आरक्षण

जातिवाद का विरोध और समानता का अधिकार का शोर ऐसा मचा हुआ है, लगता है अब जल्दी ही जातिवाद मुक्त हो जाएगा भारत और समानता आ जाएगी समस्त भारतवर्ष में 2024 समाप्त होने से पहले। ऐसे शोर में कुछ प्रश्न और संशय उठता है मेरे मन में:
क्या जातिवाद मिटाने के लिए हर व्यक्ति को जातिप्रमाण पत्र और जातिगत आरक्षण का अधिकार लागू नहीं होना चाहिए ?
क्या समान नागरिकता की तरह आर्थिक असमानता मिटाने के लिए समान शिक्षा, समान जाति, समान आरक्षण का अधिकार नहीं होना चाहिए ?
क्या देश के सभी नागरिकों को समान वेतन, समान पेंशन, समान सेक्यूरिटी, समान सुविधाओं का अधिकार नहीं होना चाहिए ?
क्या सभी नागरिकों के पास एक समान वाहन, मकान नहीं होना चाहिए ?
मेरा मानना है कि जब तक अदानी, अंबानी का मकान और फुटपाथ पर पड़े बेरोजगारों का मकान एक समान नहीं होगा, तब तक असमानता नहीं मिटाया जा सकता।
जब तक देश के सभी नागरिकों के पास एक समान कार, एक समान मकान, एक समान बैंक बेलेन्स नहीं होगा, तब तक असमानता नहीं मिटाया जा सकता।
जब तक कंगना राणावत और कामवाली बाई की सेक्यूरिटी समान नहीं होगी, असमानता नहीं मिटाया जा सकता।
देश में कुछ लोग विवाहित हैं और कुछ लोग अविवाहित….यह भेदभाव भी मिटाना होगा। सभी को विवाहित होना अनिवार्य कर देना चाहिए, जो विवाहित नहीं होता उसे देशद्रोही माना जाए।
हाइट भी सभी की समान होनी चाहिए। जो लंबा है, उसे काटकर छोटा किया जाये, और जिसकी हाईट कम है उसे खींच कर लंबा किया जाये, तभी समानता आएगी।
जातिवाद से मुक्त और समानता के नाम पर बहुत से संप्रदाय बने, बहुत से संगठन बने, बहुत से पंथ बने, बहुत सी पार्टियां बनी, क्या उनके अपने दड़बों में समानता देखने मिलती है ?
क्या उन दड़बों में समान शिक्षा, समान बैंक बेलेन्स, समान वाहन की व्यवस्था लागू है ?
और जब अपने ही संप्रदाय, पार्टी, समाज, पंथ में समानता स्थापित नहीं कर पाये, तो समस्त विश्व में समानता स्थापित करने के सपने देखना क्या मूर्खता नहीं है ?
आपकी क्या राय है ?
जहां तक मेरी बात है, मैं तो समानता की दौड़ में दौड़ रहे समाज से बिलकुल दूर किसी ऐसे निर्जन स्थान में अकेले जीना चाहता हूँ पशु-पक्षियों के साथ। क्योंकि वे समानता की दौड़ नहीं दौड़ रहे, बल्कि अपनी-अपनी मौलिकता में जी रहे हैं।

और अकेले इसलिए जीना चाहता हूँ, क्योंकि जहां भी एक से दो हुए, वहीं समानता की पिंपणी बजाने वाले पहुँच जाएँगे समानता लाने के लिए। जिसके कारण दो लोग भी हों, तो आपस में लड़ पड़ेंगे समानता के लिए वैसे ही, जैसे पति-पत्नी लड़ते रहते हैं मरते दम तक समानता की लड़ाई।
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