ढोंगी-पाखण्डी है कौन ?

एक गुरु किसी सभा में प्रवचन दे रहे थे। समझा रहे थे कि शराब पीना ना केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, आर्थिक व सामाजिक रूप से भी क्षति पहुंचता है।
दो शराबी उस गुरु के प्रवचन से बहुत प्रभावित हुए। वहीं से उनकी कुछ किताबें भी खरीद ली और दोनों एक पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ने लगे।
थोड़ी बहुत पढ़ने के बाद गुरु पर उनकी श्रद्धा और बढ़ गयी और तय किया कि आज शाम गुरुजी से मिलने उनके घर जाएँगे। उनके शिष्य बनेंगे और दारू हमेशा के लिए छोड़ देंगे।
गुरुजी गाँव से दूर एक छोटी सी कुटिया में अकेले रहते थे। तो दोनों दो-दो पैग लगाकर गुरुजी से दीक्षा लेने पहुँच गए। लेकिन दारू छोडने की खुशी मनाने के लिए एक दारू की बोतल साथ लेना नहीं भूले। क्योंकि खुशी तो तभी मनाई जा सकती है, जब दारू हो, बिना दारू के खुशी कैसे मनायी जा सकती है ?
जब गुरुजी की कुटिया में पहुँचे, तो देखा गुरुजी तंदूर में चिकन भून रहे हैं और हाथ में दारू से भरी गिलास ले रखी है।

दोनों शराबियों को बड़ा गुस्सा आया गुरु के ढोंग-पाखण्ड पर। धड़-धड़ाते हुए भीतर पहुँचे और गुरुजी का कॉलर पकड़ लिया एक ने और दूसरा स्मार्ट फोन से विडियो बनाने लगा।
एक चिल्लाया; “दुनिया को मूर्ख बना रहा है ढोंगी-पाखण्डी ? खुद तो दारू और चिकन डकार रहा है और दुनिया को दारू के नुकसान बता रहा है ?
आज तेरी विडियो वाइरल कर देंगे और दुनिया को बता देंगे तेरा दोगलापन, तेरा ढोंग-पाखण्ड…. दूसरा चिल्लाया।
गुरुजी शांत भाव से बोले; “पहले तो मेरा गिरेबान छोड़, क्योंकि संस्कारी बच्चों को शोभा नहीं देता बड़ों के गिरेबान पर हाथ डालते हुए। और बाकी सब बातें बाद में होंगी, पहले यह बताओ कि यहाँ आए क्यों थे ?
एक ने बोला कि हम तो आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर आपसे दीक्षा लेकर आपका शिष्य बनने आए थे, लेकिन यहाँ तो आपका कुछ और ही रूप देखने मिल रहा है ?
“ओह तो यह बात है ! तुम लोग मुझे गुरु बनाने आए हो, लेकिन क्या तुमने मुझसे पूछा कि मैं तुम्हें शिष्य बनाना चाहता हूँ कि नहीं ? क्या तुम लोगों ने स्वयं से प्रश्न किया कि तुमलोग मेरे शिष्य बनने योग्य हो या नहीं ?”
“अरे यह सब कौन पूछता है और कौन सोचता है ? हर गुरु को शिष्य की आवश्यकता होती है और हम शिष्य बनने आए हैं, तो आप मना कैसे का सकते हो ? और वैसे भी अब हम आपके शिष्य बनना भी नहीं चाहते क्योंकि ढोंगी-पाखण्डी के शिष्य बनकर समाज में बदनाम नहीं होना हमें।” दूसरा शराबी बोला।
“तो अब यह स्पष्ट हो गया कि तुम पहले भी मेरे शिष्य नहीं थे और अभी भी नहीं हो…है कि नहीं ?” गुरुजी ने पूछा
“बिलकुल सही कहा आपने।” दोनों ने एक स्वर में कहा
“तो अब यह बताओ कि जब मेरा और तुम्हारा कोई सम्बन्ध ही नहीं है, आज तुम लोगों ने पहली बार मेरा प्रवचन सुना, मैं आज तुम लोगों से पहली बार मिल रहा हूँ, तो तुम्हें अधिकार किसने दे दिया मुझे ढोंगी-पाखण्डी कहने का ? मैंने कौन सा ढोंग-पाखण्ड कर दिया ? क्या समाज को शराब की बुराइयों से सावधान करना ढोंग-पाखण्ड है ?” गुरुजी ने कई प्रश्न एक साथ कर दिये।
“नहीं समाज को शराब की बुराई बताना ढोंग-पाखण्ड नहीं है। ढोंग-पाखण्ड है बुराई बताकर स्वयं उसका सेवन करना।” पहले शराबी ने उत्तर दिया
तो फिर इस प्रकार तो डॉक्टर भी ढोंगी-पाखण्डी हुए, क्योंकि वे भी शराब को बुरा बताते हैं और स्वयं शराब पीते हैं ? फिर तो वह सरकार भी ढोंगी-पाखण्डी है जो शराब को बुरा बताती है, लेकिन स्वयं शराब के ठेके चलाती है ? फिर तो वह समाज भी ढोंगी-पाखण्डी है, जो शादी-ब्याह में तो शराब परोसता है, लेकिन शराब और शराबियों को कोसता है ? फिर तो वह शराब निर्माता भी ढोंगी-पाखण्डी है जो शराब की बोतल पर लेबल चिपकाता है कि शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, लेकिन शराब बनाकर बेचता भी है ? क्या इन सभी में से किसी का गिरेबान पकड़ कर बोला कि तुम लोग ढोंगी-पाखण्डी हो ?” गुरुजी ने प्रश्न किया।
एक शराबी बोला, “दूसरों के दोष गिनाने से अपने पाप कम नहीं हो जाते। अपनी बात करिए क्या आप ढोंग-पाखण्डी नहीं हैं ?”
“बिलकुल भी नहीं !” जिनके विषय में तुम लोग बात भी नहीं करना चाहते, असल ढोंगी-पाखण्डी तो वे लोग हैं, ना कि मैं। क्योंकि मैं किसी को शराब नहीं बेच रहा, मैं किसी को शादी-ब्याह में शराब नहीं परोस रहा, मैं शराब का कोई ठेका नहीं चला रहा और न शराब का समर्थन कर रहा हूँ और ना ही कभी कहा कि मैं शराब नहीं पीता। मैं तो समाज को यह समझा रहा हूँ कि शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तो मैं ढोंगी-पाखण्डी कैसे हो गया ?”
“अरे वाह !!! दुनिया को कह रहे हो, शराब पीना हानिकारक है और स्वयं पी रहे हो छुप-छुपके। क्या यह ढोंग-पाखण्ड नहीं है ? क्या यह दोगलापन नहीं है ?” दूसरा शराबी आँखें तरेर कर पूछा
“प्रत्येक व्यक्ति का अपना निजी जीवन होता है। वह अपने व्यक्तिगत जीवन में कैसे जीता है, क्या खाता है, क्या पीता है उससे किसी को कोई मतलब नहीं होना चाहिए। शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और मैं पी रहा हूँ तो यह मेरी समस्या है दूसरों की नहीं।” गुरुजी बोले
“ये लो कर लो बात !!!” पहला शराबी बिलबिला कर बोला। “अरे जिस उपदेश को अपने जीवन में नहीं उतार सकते, अपने आचरण में नहीं ला सकते, उस उपदेश का लाभ क्या ? इंसान को चाहिए कि पहले स्वयं को सुधारे, फिर दूसरों को सुधारने निकले।”
“बिलकुल सही कहा आपने। लेकिन शराब का विरोधी समाज ने क्या स्वयं को सुधारा ? जब कोई विदेशी अतिथि आता है, तब सरकारें उन्हे शराब परोसती है, क्या समाज ने उस सरकार का बहिष्कार किया कभी ? क्या शराब विरोधी समाज ने उन नेताओं, उन राजनैतिक पार्टियों का विरोध किया कभी जो शराब का समर्थन करती हैं, या जिनकी पार्टियों में शराब परोसी जाती है ?” गुरुजी ने प्रश्न किया
“अरे फिर आप दूसरों पर उंगली उठाने लगे ? यहाँ बात आपकी हो रही है…..”
“जब मुझे किसी पर उंगली उठाने का अधिकार नहीं, तो फिर तुम्हें यह अधिकार किसने दिया मुझपर उंगली उठाने का ? मैं अपने घर पर हूँ और अपने घर पर मैं क्या कर रहा हूँ, क्यों कर रहा हूँ, क्या खा रहा हूँ, क्या पी रहा हूँ, यह सब पूछने का अधिकार किसने दिया तुम्हें ? केवल इसलिए कि तुम्हारे मन में आया कि मेरा शिष्य बनना है, तो तुम्हें यह अधिकार प्राप्त हो गया कि तुम मेरे घर आकर मेरे गिरेबान पर हाथ डाल दो और मुझे ढोंगी-पाखण्डी कहो ? स्वयं तुम लोग दारू पीकर आए हो, साथ में दारू की बोतल लाये हो और वह भी मुझसे दीक्षा लेने ? और मुझे नैतिकता का पाठ सिखा रहे हो ? दूसरों के गिरेबान पर हाथ डालने से पहले स्वयं के गिरेबान पर झांककर तो देख लेते ? यदि तुम्हें वास्तव में इतना ही ज्ञान था नैतिकता का तो मेरे पास आते ही क्यों शिष्य बनने ?” गुरुजी अब गुस्से में बोले
“हम तो भटके हुए हैं, हमें ज्ञान नहीं है, इसीलिए तो आपके पास आए थे ज्ञान प्राप्त करने। हमने तो संकल्प लिया था कि दीक्षा लेने के बाद हम शराब छोड़ देंगे और यह बोतल भी इसीलिए लाये थे कि शराब छोडने की खुशी में पार्टी करेंगे।” पहले शराबी ने उत्तर दिया।
बहुत बढ़िया ! शराब छोडने की खुशी में शराब !!! कितने उच्च विचार के साथ आए हो !!!
मेरा शराब पीना तुम्हें बुरा लगा, लेकिन जो तुमलोग खुले आम शराब पीकर सड़कों पर भटकते हो, वह सही है ? शराब यदि वास्तव में बुरी चीज होती, तो पूरे विश्व की सरकारें शराब के ठेके बंद करवा देती। शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, यदि शराब की अति कर दी जाए। शराब से मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है यदि शराब की मात्रा अधिक हो जाए। लेकिन यदि औषधि के रूप में कोई ले तो यह टॉनिक का कार्य करती है। और फिर भी यदि मान लिया जाये कि शराब पीना बुरा है, तो कोई व्यक्ति यदि अपने घर में, अपने एकांत में शराब पी भी रहा है, तो उससे सामाजिक/राजनैतिक समारोहों पर शराब परोसने वाले समाज या सरकार को आपत्ति क्यों है ?
सच तो यह है कि समाज जिसे बुरा कहता है, वह इसलिए नहीं कि वह उस बुराई के विरुद्ध है। बल्कि इसलिए बुरा कहता है, क्योंकि स्वयं को अच्छा दिखाना होता है। उदाहरण के लिए समाज रिश्वतख़ोरी और भ्रष्टाचार को बुरा कहता है। लेकिन रिश्वतखोर और भ्रष्ट अधिकारियों और सरकारों से उसे कोई परहेज नहीं होता। इसीलिए भ्रष्ट नेता, मंत्री, सरकार बार-बार सत्ता में आते हैं। वही जनता उनकी जय जय करती है, जो उन्हें भ्रष्ट, बेईमान, रिश्वतखोर बताती है। लेकिन मैं ऐसा नहीं हूँ। मैं दोगला नहीं हूँ। मैं जो हूँ वही हूँ और मुझे कुछ भी छुपाने की आवश्यकता है क्योंकि मुझे समाज या सरकार से कोई मान-सम्मान नहीं चाहिए। मुझे समाज और सरकार की तरह दोगला होने की भी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मुझे किसी का वोट या प्रशंसा भी नहीं चाहिए। मेरा अपना निजी जीवन जैसे मैं चाहता हूँ, वैसे जीता हूँ। और मैं किसी दूसरे के निजी जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करता।
समाज भी ताकतवर लोगों के निजी तो क्या सामाजिक जीवन में भी हस्तक्षेप नहीं करता। फिर भले ताकतवर लोग पूरे देश को बंधक बनाकर लूटें और लुटवाएँ। फिर भले फर्जी महामारी का आतंक फैलाकर पूरे विश्व को बंधक बनाकर सामूहिक बलात्कार करे जनता का, किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी। लेकिन एक अकेला व्यक्ति अपने घर में अपनी तरह से जी रहा है, तो आप जैसे लोग घर पहुँच जाएँगे ढ़ोगी-पाखण्डी की उपाधि देने ?
अब जाओ और घर जाकर ठंडे दिमाग से चिंतन-मनन करो कि ढोंगी-पाखण्डी मैं हूँ, या तुम लोगो, या तुम्हारा समाज, या तुम्हारा नेता, या तुम्हारी राजनैतिक पार्टियाँ, या तुम्हारी सरकार, या तुम्हारे सरकारी अधिकारी, या तुम्हारे तथाकथित पंथ, सम्प्रदाय, धार्मिक और आध्यात्मिक गुरु ?
चिंतन-मनन करो कि क्या तुम्हारा पंथ, तुम्हारा सम्प्रदाय, तुम्हारा समाज वास्तव में धार्मिक है या धार्मिक होने का ढोंग कर रहा है ?
चिंतन मनन-करो कि नामजाप करने वाले, पूजा-पाठ करने वाले, रोज़ा-नमाज करने वाले लोग वास्तव में धार्मिक हैं या केवल ढोंग-पाखण्ड कर रहे हैं ?
क्या आपका समाज जिस नैतिकता और धार्मिक की दुहाई देता है, उसे स्वयं अपने आचरण में लाता है ?
क्या तुम्हारा समाज अधर्म और अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाता है, या अधर्मियों, अत्याचारियों की चाकरी करता है, गुलामी करता है ?
तुम्हारा समाज, तुम्हारा पंथ, तुमहरी सरकार ही जब ढ़ोगी-पाखण्डी है और उनका विरोध करने का साहस नहीं, तो फिर मुझे सुधारने का साहस कैसे कर लिया ?
और अंत में फिर कह देता हूँ कि मैं कोई ढोंग या पाखण्ड नहीं कर रहा और ना ही कुछ भी अनैतिक या अधर्म कर रहा हूँ। और मेरा विश्वास न हो, तो जाकर संविधान खोलकर पढ़ लो। प्रत्येक व्यक्ति को उसकी निजता, मौलिकता और स्वतन्त्रता के साथ जीने का अधिकार है।

गुरुजी के इतने लंबे अधार्मिक प्रवचन के बाद उन दो शराबियों ने क्या उत्तर दिया होगा, उपरोक्त सभी में से ढोंगी-पाखण्डी कौन है और कैसे वह आप कॉमेंट बॉक्स पर बता सकते हैं।
~ विशुद्ध चैतन्य
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