जातिवाद, आरक्षण, मंदिर और धर्म की आढ़ में धन और सत्ता के लिए दौड़

एक ग्रुप में आरक्षण और मंदिर को लेकर चर्चा हो रही थी मेरी। दलितों का कहना था कि मंदिरों में केवल ब्राह्मणों को ही पुजारी बनने का अधिकार है, किसी को और नहीं। हजारों वर्षों से ब्राह्मणों का आरक्षण है पुजारी पद पर और अब जब अंबेडकर साहब ने हमें भी आरक्षण का अधिकार दिया, तो आपको परेशानी हो होने लगी ?
एक ने कहा कि दलित को मंदिर का पुजारी बनाकर दिखाओ तो हम तुम्हें मिठाई देंगे।
अब प्रश्न यहाँ यह उठता है कि जिन्हें ना धर्म की समझ हो, जिन्हें ना वर्ण की समझ हो, जिनमें ईश्वर के प्रति कोई आस्था ना हो, जिनमें मंदिर के प्रति कोई आस्था ना हो, जो स्वयं को नास्तिक कहते हों, जो जीवन भर मंदिर, ब्राह्मण, पुजारी को कोसते रहते हों, उन्हें मंदिर का पुजारी बनाएगा कौन और क्यों ?
और फिर प्रश्न यह भी उठता है कि जब ईश्वर पर ही आस्था नहीं, मंदिर पर ही आस्था नहीं, तो फिर मंदिर का पुजारी बनना ही क्यों चाहते हैं ?
स्वाभाविक है कि मंदिर का पुजारी होना इनके लिए बिलकुल वैसा ही जैसे किसी कंपनी में कलर्क होना, यूपीएससी क्लियर करके सरकारी नौकर होना। इन्हें नौकरी चाहिए फिर चाहे वह पुजारी की ही क्यों न हो। भले ईश्वर के प्रति कोई निष्ठा न हो, भले स्वयं को नास्तिक घोषित कर रखा हो, लेकिन पुजारी बनना है।
पुजारी का अर्थ होता है पूजा-पाठ करने वाला। अब किसी बड़े मंदिर का पुजारी क्यों होना है ?
ईश्वर तो सर्वत्र है, कहीं भी मंदिर बना लो और बन जाओ पुजारी। अपने ही घर में मंदिर बनाकर पूजा-पाठ शुरू कर दो, हो गए पुजारी। इसके लिए किसी दूसरे के मंदिर में जाने की आवश्यकता क्या है ?
वास्तविकता यह है कि पुजारी भी बनना है तो पैसे कमाने के लिए, न कि ईश्वर को जानने समझने के लिए।
जिसे देखो वह मंदिर की तरफ दौड़ रहा है। बड़े बड़े मंदिर बनाए जा रहे हैं….. करोड़ों लोग मंदिर की तरफ दौड़ रहे हैं…..क्या इन्हें ईश्वर कोई प्रेम है या ईश्वर के प्रति इनकी कोई आस्था या भक्ति है ?
नहीं कोई आस्था या भक्ति नहीं होती इनकी ईश्वर और मंदिर के प्रति। केवल स्वार्थ इन्हें खींच ले जाता है मंदिर। ये मंदिरों में लाखों रुपए चढ़ा आएंगे लेकिन किसी जरूरतमंद की सहायता नहीं कर पाएंगे। क्योंकि मंदिर के पुजारियों ने आश्वासन दिया हुआ है कि यदि ईश्वर को रिश्वत और कमीशन चढ़ाओगे तो, तुम्हारे बिगड़े हुए काम, अटके हुए काम बन जाएँगे, कमाई कई गुना बढ़ जाएगी। लेकिन किसी जरूरत मंद की सहायता करोगे तो ब्याज भी नहीं मिलेगा।
तो नास्तिक भी मंदिर दौड़ रहा है नौकरी पाने के लिए। पुजारी बनने के लिए वह वेद, पुराण, ज्योतिष, तंत्र सबकुछ रटने के लिए तैयार है।
क्यों चाहे पुजारी की नौकरी ?
रोटी के लिए, धन के लिए, समाज में सम्मानित दिखने के लिए।
मंदिर बनाए जा रहे हैं और बनवाने वालों को मंदिर में आने वाले चढ़ावों और कमाई में रुचि है न कि ईश्वर में। मंदिर बनाने वाले जानते हैं कि ईश्वर उनका गुलाम है। जब मन करेगा प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाकर मंदिर, तीर्थ बंद करवा देंगे। और जब मन करेगा नए नए शुल्क लगाकर मंदिर से कमाई बढ़ा लेंगे।
इसीलिए ही मैं कहता हूँ कि मंदिर जाने का अब कोई लाभ नहीं। क्योंकि मंदिर में अब माफियाओं का गुलाम रिश्वतखोर, कमीशनखोर भगवान बैठे हुए हैं। और ये भगवान झोलाछाप डॉक्टर जितना भी साहसी नहीं है। प्रायोजित महामारी काल में झोला-छाप डॉक्टर्स ने सरकारी फर्मानों को अनसुना करके अनगिनत लोगों की जान बचाई। उन्हें फार्मा माफियाओं के षडयंत्रों का शिकार होने से बचाया। लेकिन सर्वशक्तिमान ईश्वर/अल्लाह फरार हो गए थे अपने भक्तों को मरता हुआ छोड़कर।
और जब फार्मा माफियाओं ने प्रतिबंध हटाया, तब वापस लौट आए मंदिरों में चढ़ावा, कमीशन, रिश्वत बटोरने के लिए और झूठा भ्रम फैलाने के लिए कि हम सर्वशक्तिमान हैं, हमें चढ़ावा, कमीशन, रिश्वत चढ़ाओगे तो हम तुम्हें संकटों से बचाएंगे, तुम्हारे दुख दूर करेंगे।
क्या किसी ने पूछा मंदिरों और ईश्वर/अल्लाह के ठेकेदारों से कि प्रायोजित महमारी काल में फरार क्यों हो गए थे ईश्वर/अल्लाह मंदिर, मस्जिदों में ताला लटकाकर ?
नहीं पूछेंगे क्योंकि कायरता खून में समा गयी। क्योंकि अब मंदिरों, तीरथों में ब्राह्मण और क्षत्रिय नहीं केवल वैश्य और शूद्र पाये जाते हैं। और इनका ईश्वर धन है, सत्ता है, कुर्सी है, रोटी है। लेकिन ढोंग करेंगे ईश्वर की भक्ति है, ईश्वर के प्रति आस्था का। ईश्वर, मंदिर-मस्जिद, ईशनिन्दा, बेअदबी के नाम पर कुत्ते-बिल्लियों की तरह लड़ेंगे केवल यह सिद्ध करने के लिए इन्हें ईश्वर और उनकी किताबों से अत्याधिक प्रेम है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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