क्रांतिकारी गुरुओं के शिष्य और अनुयायी कर क्या रहे हैं आज ?

क्या जानने का प्रयास किया है कभी कि क्रांतिकारी, बलिदानी गुरुओं के शिष्य और अनुयायी कर क्या रहे हैं आज ?
क्या जानने का प्रयास किया है कभी कि गुरुओं के द्वारा स्थापित संप्रदाय, समाजों में हो क्या रहा है वर्तमान में ?
क्या जानने का प्रयास किया है कभी कि विभिन्न गुरुओं द्वारा स्थापित समाजों, संप्रदायों, पंथों में परस्पर अंतर क्या है ?
समय ही नहीं मिला होगा जानने समझने का किसी को। क्योंकि सभी व्यस्त हैं अपनी-अपनी दुनिया में।
यदि कभी समय मिले तो अवश्य जानने का प्रयास करिएगा।

संक्षेप में बता देता हूँ कि सिवाय खान-पान, पूजा-पाठ, नामजाप, स्तुति-वंदन और पूजनीय ग्रन्थों के अंतर के और कोई अंतर नहीं मिलेगा। सभी गुरुओं के शिष्य और अनुयायी वही कर रहे हैं, जो गुरुओं के जन्म लेने से पहले कर रहे थे।
अर्थात माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी, गुलामी, चापलूसी और दलाली। सभी दड़बों की भेड़ों को समझा दिया गया है कि माफियाओं का विरोध मत करना वरना संजीव भट्ट और जस्टिस लोया वाली दुर्गति हो जाएगी। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट भी डरा हुआ है माफियाओं से, सभी को अपनी और अपनों की जान प्यारी है।
सभी दड़बों की भेड़ों को समझाया जा रहा है कि तुम तो केवल ध्यान, भजन, कीर्तन, नामजाप करते रहो, गुरुजी फिर से जन्म लेंगे, नहीं तो ईश्वर अवतार लेंगे, नहीं तो सुपर ह्यूमन आएंगे माफियाओं और देश के लुटेरों से रक्षा करने। तबतक माफियाओं के द्वारा निर्मित मंदिरों, तीर्थों में चढ़ावा चढ़ाओ, उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाओ और अपने ही देश को लूटने और लुटवाने में सहयोगी बनो।
यही कारण है कि ध्यान, भजन, कीर्तन और नामजाप करने वाला समाज कभी भी माफियाओं और देश के लुटेरों का विरोध नहीं कर पाया। और यही कारण है कि चाहे कोई किसी भी पंथ या संप्रदाय का सदस्य हो, चाहे कोई किसी भी गुरु का शिष्य या अनुयायी हो, चाहे कोई श्री आनन्दमूर्ति, जिददु कृष्णामूर्ति, ओशो, ठाकुर दयानन्द देव (1881-1937) जैसे महान क्रांतिकारी गुरुओं के अनुयायी ही क्यों हों, माफियाओं और देश के लुटेरों के गुलाम भेड़ों में रूपांतरित हो चुके हैं। अब ये लोग भक्तिमार्गी इस्कॉन की तरह नाचने, गाने के सिवाय और कुछ करने लायक नहीं रह गए।
सारा आध्यात्म और धर्म यही सिखाने में व्यस्त है कि नाचो, गाओ, खुशियाँ मनाओ, सकारात्मकता फैलाओ क्योंकि तुम लुट रहे हो, देश लुट रहा है, विश्व लुट रहा है। और लूट के माल से तुम्हें कमीशन के रूप में फ्री की बिजली, फ्री का पानी, फ्री का राशन, फ्री का इन्टरनेट डेटा मिल रहा है।
भले इन फ्री की चीजों के बदले गुलामी मिल रही हो….धार्मिक और आध्यात्मिक लोग गुलामी स्वीकारने के लिए तैयार हैं। और ये गुलाम ढोंग करते हैं क्रांतिकारियों को पूजने का, गुरुओं के अनुयायी होने का….. जबकि इनकी भक्ति माफियाओं के प्रति होती है, अपने ही देश को, अपने ही समाज को लूटने और लुटवाने वालों के प्रति होती है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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