नियति: एक रूसी लोककथा

मृत्यु के देवता ने अपना एक दूत पृथ्वी पर एक मरणासन्न स्त्री की आत्मा को लाने भेजा। देवदूत ने धरती पर आकर उस स्त्री को देखा तो चिंता में पड़ गया, क्योंकि दो छोटी-छोटी जुड़वां बच्चियों में से एक उस मरणासन्न स्त्री के स्तन से लगी चूस रही है और दूसरी रोते-रोते सो गयी है और उसके आँसू उसकी आँखों के पास सूख गए हैं। दो नन्हीं जुड़वां बच्चियां और स्त्री मर रही है, जिन्हें देखने वाला कोई नहीं है। स्त्री का पति पहले मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है।
उस देवदूत को यह खयाल आया कि इन छोटी-सी बच्चियों का क्या होगा, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया।
उसने जाकर मृत्यु के देवता को कहा, “मैं उसे ला न सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन आप जानते हैं कि दो जुड़वां बच्चियां हैं–छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृतप्राय माँ के स्तन से लगी है और एक रोते-रोते सो गयी है। मेरा हृदय उसे उठा न सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को जीवन के कुछ और दिन दे दिए जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं क्योंकि उन्हें देखने वाला कोई नहीं है।”
इस पर कुपित मृत्यु के देवता ने कहा, “तू उससे ज्यादा समझदार हो गया है जिसकी मर्जी से जीवन और मौत होती है। तूने यह पाप कर दिया, अब तुझे इसकी सजा मिलेगी। सजा यह है कि तुझे पृथ्वी पर जाकर रहना पड़ेगा और जब तक तू अपनी मूर्खता पर तीन बार न हँस लेगा, तब तक यहां वापस न आ सकेगा।”
यमदूत दंड भोगने को राजी हो गया लेकिन फिर भी उसे लगा कि वह सही है तो हँसने का मौका कैसे आएगा?
उसे धरती पर छोड़ दिया गया।
चमार और देवदूत
सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे और एक चमार कुछ रुपए इकट्ठे करके अपने बच्चों के लिए गरम कपड़े, कंबल आदि खरीदने शहर जा रहा था। तभी उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को जमीन पर पड़े-पड़े सर्दी से ठिठुरते हुए देखा। यह पृथ्वी पर फेंक दिया गया वही देवदूत था। चमार ने उससे बातें कीं तो मालूम हुआ कि इस आदमी के पास न तो कुछ खाने-पीने को था और न ही घर या कोई छप्पर था जहां वह रह सकता।
उस अनजान आदमी पर चमार को दया आ गयी तो उसने बाजार जाकर अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के बजाय इसके लिए कंबल और कपड़े खरीद लिये।
फिर वह चमार बोला, “अब तुम कहां जाओगे, मेरे साथ ही चलो। अगर मेरी पत्नी नाराज हो, चिल्लाए तो तुम परेशान मत होना। थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।
चमार उस देवदूत को लेकर घर लौटा तो उसकी पत्नी एकदम क्रोधित हो गयी। बहुत चीखी-चिल्लायी लेकिन दोनों शांत रहे परन्तु देवदूत को यह सोचकर हँसी आ गई कि इस घर की मालकिन को मालूम ही नहीं है कि उसका पति जिसको घर में ले आया है, उसके आते ही यहां कितनी खुशियां आ जाएंगी। यह तो बस इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के गरम कपड़े नहीं आये। जो नहीं मिला उस पर सिर धुन रही है, जो उसके सामने खड़ा है उसका उसे अंदाजा ही नहीं है। वह नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है। घर में देवदूत आ गया है। जिसके आते ही हजारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे। तो देवदूत हँसा।
चकित होकर चमार ने उससे पूछा, “तुम क्यों हँसते हो?”
उसने कहा, “बाद में बता दूंगा, जब मैं तीन बार हँस लूंगा, तब।”
देवदूत ने एक हफ्ते में ही चमार का सब काम सीख लिया और वह इतने बढ़िया जूते बना देता कि उसके बनाए जूते काफी प्रसिद्ध हो गए। इससे चमार ने चंद महीनों के भीतर ही काफी धन कमा लिया। साल पूरा होते-होते उसकी ख्याति दूर-दूर तक पहुंच गयी कि उसके जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं था। बड़े-बड़े धनी लोगों के जूते वहीं बनने लगे। इससे खूब धन बरसने लगा।
एक दिन राजा का एक सेवक आया और उसने साथ लाया चमड़ा देते हुए कहा, “इस चमड़े से राजा के लिए जूते बनाने हैं। यह बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं। कोई भूल-चूक नहीं करना और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं।”
रूस में किसी आदमी के मरने पर उसको स्लीपर पहना कर मरघट तक ले जाते थे। तभी चमार ने भी देवदूत को समझाया, “स्लीपर मत बना देना। जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फँसेंगे।”
देवदूत काम में जुट गया लेकिन जब चमार ने देखा कि जूते नहीं बल्कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आग-बबूला हो गया। वह लकड़ी उठा कर उसको यह कहते हुए मारने को तैयार हो गया कि तू हमारी फाँसी लगवा देगा। जबकि तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर नहीं, जूते बनाने हैं, तूने फिर भी स्लीपर बना दिये?”
देवदूत फिर खिलखिला कर हँसा।
तभी राजा के महल से भागता हुआ एक आदमी आया। उसने कहा, “जूते नहीं, स्लीपर बनाने हैं क्योंकि राजा की मृत्यु हो गयी है।”
भविष्य अज्ञात है और मनुष्य अतीत के आधार पर निर्णय लेता है। राजा जीवित था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो अब स्लीपर चाहिए।
राजा का नौकर स्लीपर लेकर चला गया तो चमार उस देवदूत के पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा कि मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे बुरा-भला कहा, डांटा। देवदूत बोला, “कोई हर्ज नहीं। मैं अपना दंड भोग रहा हूं।”
चमार ने फिर पूछा कि हंसी का कारण क्या था तो उसने वही जवाब दिया कि जब वह तीन बार हँस लेगा तभी बताएगा।
देवदूत सोचने लगा कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है। इसीलिए तरह-तरह की आकांक्षाओं को लेकर लोग व्यर्थ परेशान होते हैं। इच्छाएं कभी पूरी न होंगी, क्योंकि जो हम चाहते हैं, वह हमारे वश में नहीं। नियति के अनुसार ही सबकुछ घटना तय है और लोग व्यर्थ ही बीच में हाय-तौबा मचाते हैं। मरने का वक्त करीब आ रहा है और लोग अनंतकाल तक जीने की इच्छा करते हैं। जरूरत स्लीपर की है और हम जूते बनवाते हैं। इसीलिए मुझे क्या पता था कि उन बच्चियों का भविष्य कैसा होगा? मैं नाहक बीच में आया।
देवदूत और धनवान महिला
समय बीतता गया। एक दिन एक बूढ़ी धनवान महिला अपने साथ दो युवा लड़कियों को लेकर वहां आयीं। उसने कहा कि जल्दी ही उन दोनों की शादी होने वाली है और उन दोनों के लिए जूते बनाने हैं।
देवदूत पहचान गया कि ये वे ही दो लड़कियां हैं, जिनको वह उनकी मरणासन्न माँ के पास छोड़ गया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है। वे दोनों स्वस्थ हैं, सुंदर हैं।
फिर उसने बूढ़ी स्त्री पूछा, “आप कौन है?”
उस बूढ़ी औरत ने बताया कि ये मेरी पड़ोसिन की लड़कियां हैं। इनकी माँ गरीब औरत थी, उसकी छाती में दूध भी न था। दो जुड़वां बच्चियों को जन्म देकर इन्हें दूध पिलाते-पिलाते मर गयी। मुझे इन पर दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं और मैंने इन बच्चियों को पाल लिया। अब इनका राजा के परिवार में विवाह हो रहा है।
देवदूत फिर सोच में पड़ गया। अगर इनकी माँ जिंदा रहती तो ये बच्चियां गरीबी, भूख और दरिद्रता में बड़ी होतीं। माँ मर गयी, इसलिए ये बच्चियां धन-वैभव में पलीं और अब उस बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही मालकिन हैं। जूतों का ऑर्डर देकर वे तीनों चली गईं।
अब देवदूत जोर से तीसरी बार हँसा और चमार को अपने हँसने कारण बताते हुए कहा, “नियति बड़ी है और हम उतना भी नहीं समझ पाते, जितना देखते हैं। जो नहीं देख पाते, उसका विस्तार बहुत है। हम जो देख पाते हैं, उससे भी हम कोई सही-सही अंदाजा नहीं लगा सकते कि क्या होने वाला है। इसे थोड़ा समझना जरूरी है क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो अहंकार हँसता है लेकिन अपनी मूर्खता पर हँसी तभी आ सकती है जब भीतर में अहंकार न हो। मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हँस लिया हूं और मेरा दंड पूरा हो गया। इसलिए अब मैं जाता हूं।”
सारा आध्यात्म और सारे धर्म इसी रूसी कहानी पर आधारित
यह कथा मैंने बचपन में पढ़ी थी श्रेष्ठ रूसी लोकथाएं नामक किताब में। सारा आध्यात्म और सारे धर्म इसी रूसी कहानी पर आधारित है। सभी यही सीखा रहे हैं कि कोई मरता है तो मरने दो, कोई भूखा-प्यासा तड़पता है तो तड़पने दो, किसी के साथ अन्याय हो रहा है तो होने दो…तुम तो केवल ध्यान करो, भजन करो, नाचो गाओ, खुशियाँ मनाओ क्योंकि तुम्हारे अपनों के साथ यह सब नहीं हो रहा।

इस रुचि लोककथा में मृत्यु का देवता है माफिया और देश के लुटेरे। देवदूत हैं आईएएस, आईपीएस अधिकारी।
अधिकारियों को भी यही समझाया जाता है कि आदेश देने वाला सर्वाधिक समझदार होता है वह भूत-भविष्य सबकुछ जानता है और केवल मानवों के कल्याण के लिए कार्य करता है।
इसीलिए ईडी, सीबीआई, सीआईडी, आईटी को केवल विपक्षी दलों के नेताओं के घरों पर छापा मारना होता है। क्योंकि जो सत्ता में हैं वे देश की भलाई कर रहे हैं और जो विपक्ष में है वे देश को लूट खसोट रहे हैं।
तो देवदूतों को यह नहीं देखना है कि किसी गरीब घर में बुलडोजर चला, या किसी गरीब की मौत हो गयी एंब्लूलेन्स में क्योंकि नेता जी को उस रास्ते से गुजरना था। और यदि देवदूत गरीबों न्याय दिलाना चाहता है तो उसे सस्पेंड कर दिया जाता है जेल भेज दिया जाता है संजीव भट्ट की तरह, मौत के घाट उतार दिया जाता है जस्टिस लोया की तरह।
देवदूत को उस चमार की तरह नहीं होना चाहिए जो एक असहाय व्यक्ति को देख करुणा से भर जाता है और उसे कंबल आदि देकर घर ले आता है।
ना ही देवदूत को उस धनवान बूढ़ी महिला की तरह होना चाहिए जो पड़ोसन की दुधमुंही अनाथ जुड़वाँ बच्चियों को गोद ले लेती है, उनका पालन पोषण करके एक अच्छा जीवन देती हैं।
जब भी कोई अधर्म, अन्याय, अत्याचार, शोषण के विरुद्ध आवाज उठाता है, तो उसे भी वही सजा मिल जाती है, जो देवदूत को मिली। जो संजीव भट्ट को मिली, जो जस्टिस लोया को मिली, जो जीसस को मिली, जो देश के कई स्वतंत्र ईमानदार पत्रकारों को मिली, जो स्वतन्त्रता सेनानियों को मिली।
~ विशुद्ध चैतन्य
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