शास्त्र-ज्ञानी, ध्यानी और डिग्रीधरियों से समाज और देश को क्या लाभ ?

अपने-अपने गुरुओं, अपने-अपने नेताओं, अभिनेताओं, बाबाओं की भक्ति के नशे में धुत्त समाज यह देख ही नहीं पा रहा कि उनके आराध्यों ने जो भी शिक्षा-दीक्षा दी है, उससे समाज और देश को कोई लाभ नहीं हुआ।
यदि आपको ऐसा लगता है कि आपके गुरुओं, आराध्यों ने समाज और देश का कोई भला किया है, तो आइये समझने का प्रयास करते हैं।
आप मानते हैं कि गुरु/आराध्य महान थे, क्योंकि उन्होंने फिरंगियों, मुगलों से लड़ाई लड़ी, अपने प्राणों की आहुतियाँ दी।
लेकिन लड़ाई तो अनगिनत लोगों ने लड़ी अपने परिवार के लिए, अपने समाज के लिए, अपने देश के लिए। और लड़ाई में अनगिनत मारे भी जाते हैं….तो इसमें महानता वाली बात क्या हो गयी ?
आप मानते हैं कि आपके आराध्य ने चाँद के दो टुकड़े कर दिये, सूरज को निगल लिया। इसमें महानता वाली क्या बात हो गयी ?
ऐसे तो अमेरिका ने सोवियत संघ के टुकड़े-टुकड़े कर दिये, फिरंगियों ने भारत के दो टुकड़े कर दिये, इन्दिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिये। धर्म व जातियों के ठेकेदारों ने समाज के कई टुकड़े कर दिये और भू-माफिया ना जाने कितने गरीबों के खेत, जमीन निगल लिए और डकार तक नहीं ली ?
आप मानते हैं कि आपके आराध्यों ने शास्त्र लिखे, धार्मिक ग्रंथ लिखे, नैतिकता, सात्विकता की शिक्षा दी। इसमें कौन सी महानता हो गयी ?
नैतिकता, सात्विकता, जीवन दर्शन, जीवन शैली पर तो चाय की दुकान पर निठल्ले बैठे ना जाने कितने लोग प्रतिदिन ज्ञान की वर्षा कर रहे होते हैं।
और सबसे बड़ी बात यह कि उनके बलिदानी होने से, उनके ज्ञानी होने से, उनके गुरु या आराध्य हो जाने से, उनकी पूजा-अर्चना, नामजाप, स्तुति-वंदन करने से, उनके नाम की कलश यात्राएं, रथ-यात्राएं निकालने से, उनके नाम के मंदिर, तीर्थ बनाने से समाज का क्या भला हुआ ?
क्या समाज उन्हीं की तरह त्यागी, बलिदानी हो गया ?
क्या समाज उन्हीं की तरह देशभक्त हो गया ?
क्या समाज उन्हीं की तरह सत्यवादी, धार्मिक और आध्यात्मिक हो गया ?
क्या समाज उन्हीं की तरह अधर्म, अत्याचार, शोषण और लूट-पाट का विरोधी हो गया ?
क्या समाज देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों का विरोध करने योग्य हो गया ?
क्या समाज गरीबों, असहायों का सहयोगी, हितैषी हो गया ?
क्या समाज धूर्त, मक्कार, बिकाऊ नेताओं का बहिष्कार करने योग्य हो गया ?
क्या समाज माफियाओं और लुटेरों को अपने समाज से बहिष्कृत करने योग्य हो गया ?
ऐसा क्या परिवर्तन कर दिया आपके आराध्यों ने अपने समाज, सम्प्रदाय, पंथ में जिससे दो समाजों में अंतर दिखाई पड़े ?
केवल यही हुआ ना कि यदि आपके आराध्य शाकाहारी थे, तो उन्होंने अपने समाज के अनुयायियों को शाकाहारी बना दिया।
यदि आराध्य प्याज, लहसुन नहीं खाते थे, तो अपने अनुयायियों को भी प्याज लहसुन खाने से रोक दिया।
यदि आराध्य सूअर का मांस नहीं खाते थे, तो सूअर का मांस को हराम घोषित कर दिया।
यदि आराध्य कुर्ता-पायजामा, या धोती-कुर्ता पहनते थे, सर पर टोपी या पगड़ी पहनते थे, तो अपने अनुयायियों को भी वही पहना दिया।
यदि आराध्य अपने साथ कृपाण या तलवार रखते थे, तो अपने अनुयाइयों को भी वही पकड़ा दिया।
यदि आराध्य अपने साथ कमण्डल और लाठी रखते थे, तो अपने अनुयायियों को भी वही पकड़ा दिया।
यदि आराध्य निर्वस्त्र रहते थे, तो अपने अनुयायियों को भी निर्वस्त्र कर दिया।
लेकिन यह सब करने के बाद भी क्या समाज धार्मिक और आध्यात्मिक हो पाया ?
क्या माफियाओं और देश के लुटेरों का विरोध करने का साहस कर पाया ?
अपने समाज पर नजर डालिए। आप पाएंगे कि सिवाय परम्पराओं को ढोने के और कुछ नहीं कर पाये। परम्परा भी केवल इसलिए ढो रहे हैं, ताकि समाज से, झुंड से गिरोह से, भीड़ से अलग-थलग न कर दिये जाएँ। वरना तो परम्परा भी ढोना बंद करके स्वयं को नास्तिक घोषित करके मुक्त जीवन जीने लगें।
क्या सीखा गुरुओं से उनके शिष्यों ने ?
भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ, नाम-जाप, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास और मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जीने के अलावा और क्या सीखा ?
अपने अपने दड़बों और गुरुओं को महान बताते वालों के समाज में सिवाय पहनावा, पूजा-पाठ की विधि, वैवाहिक व सामाजिक संस्कारों की भिन्नता के और कोई भिन्नता है ?
सभी माफियाओं के चाकर और गुलाम हैं आज और चाकरी करके बड़े गर्व का अनुभव करते हैं। क्यों ?
क्योंकि श्रमिक वर्ग से हैं तो श्रम ही जीवन है। श्रम करना है कोल्हू के बैल की तरह बिना फल की चिंता किए। ना पहले कभी अधर्म, अन्याय, अत्याचार और शोषण का विरोध किया, ना विदेशी आक्रांताओं का विरोध किया, ना ही अपने ही देश के माफियाओं और लुटेरों का विरोध किया….क्योंकि श्रमिक और वैश्य वर्ग विरोध नहीं कर सकते। वे ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर के सिद्धान्त पर जीते हैं। अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता के सिद्धान्त पर जीते हैं ऐसे गिरोहों के ठेकेदार और उनके भक्त।
गुरुओं ने भले अच्छी-अच्छी शिक्षाएं दी हों, लेकिन उन शिक्षाओं का लाभ क्या जब माफियाओं और लुटेरों की गुलामी करने के लिए विवश होना पड़े ?
~ विशुद्ध चैतन्य
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